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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 84
    ऋषिः - सप्तऋषय ऋषयः देवता - मरुतो देवताः छन्दः - निचृदार्षी जगती स्वरः - निषादः
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    ई॒दृक्षा॑सऽएता॒दृक्षा॑सऽऊ॒ षु णः॑ स॒दृक्षा॑सः॒ प्रति॑सदृक्षास॒ऽएत॑न। मि॒तास॑श्च॒ सम्मि॑तासो नोऽअ॒द्य सभ॑रसो मरुतो य॒ज्ञेऽअ॒स्मिन्॥८४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ई॒दृक्षा॑सः। ए॒ता॒दृक्षा॑सः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सु। नः॒। स॒दृक्षा॑स॒ इति॑ स॒ऽदृक्षा॑सः। प्रति॑सदृक्षास॒ इति॒ प्रति॑ऽसदृक्षासः। आ। इ॒त॒न॒। मि॒तासः॑। च॒। सम्मि॑तास॒ इति॒ सम्ऽमि॑तासः। नः॒। अ॒द्य। सभ॑रस॒ इति॒ सऽभ॑रसः। म॒रु॒तः॒। य॒ज्ञे। अ॒स्मिन् ॥८४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईदृक्षास एतादृक्षासऽऊ षु णः सदृक्षासः प्रतिसदृक्षासऽएतन । मितासश्च सम्मितासो नोऽअद्य सभरसो मरुतो यज्ञे अस्मिन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ईदृक्षासः। एतादृक्षासः। ऊँऽइत्यूँ। सु। नः। सदृक्षास इति सऽदृक्षासः। प्रतिसदृक्षास इति प्रतिऽसदृक्षासः। आ। इतन। मितासः। च। सम्मितास इति सम्ऽमितासः। नः। अद्य। सभरस इति सऽभरसः। मरुतः। यज्ञे। अस्मिन्॥८४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 84
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    पदार्थ -
    हे (मरुतः) ऋतु-ऋतु में यज्ञ करने वाले विद्वानो! जो (ईदृक्षासः) इस लक्षण से युक्त (एतादृक्षासः) इस पहिले कहे हुओं के सदृश (सदृक्षासः) पक्षपात को छोड़ समान दृष्टि वाले (प्रतिसदृक्षासः) शास्त्रों को पढ़े हुए सत्य बोलने वाले धर्मात्माओं के सदृश हैं, वे आप (नः) हम लोगों को (सु, आ, इतन) अच्छे प्रकार प्राप्त हों (उ) वा (मितासः) परिमाणयुक्त जानने योग्य (सम्मितासः) तुला के समान सत्य झूठ को पृथक्-पृथक् करने (च) और (अस्मिन्) इस (यज्ञे) यज्ञ में (सभरसः) अपने समान प्राणियों की पुष्टि पालना करने वाले हों, वे (अद्य) आज (नः) हम लोगों की रक्षा करें और उनका हम लोग भी निरन्तर सत्कार करें॥८४॥

    भावार्थ - जब धार्मिक विद्वान् जन कहीं मिलें, जिनके समीप जावें, पढ़ावें और शिक्षा देवें, तब वे उन सब लोगों को सत्कार करने योग्य हैं॥८४॥

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