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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 82
    ऋषिः - सप्तऋषय ऋषयः देवता - मरुतो देवताः छन्दः - आर्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
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    ऋ॒तश्च॑ स॒त्यश्च॑ ध्रु॒वश्च॑ ध॒रुण॑श्च। ध॒र्त्ता च॑ विध॒र्त्ता च॑ विधार॒यः॥८२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तः। च॒। स॒त्यः। च॒। ध्रु॒वः। च॒। ध॒रुणः॑। च॒। ध॒र्त्ता। च॒। वि॒ध॒र्त्तेति॑ विऽध॒र्त्ता। च॒। वि॒धा॒र॒य इति॑ विऽधार॒यः ॥८२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतश्च सत्यश्च धु्रवश्च धरुणश्च । धर्ता च विधर्ता च विधारयः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतः। च। सत्यः। च। ध्रुवः। च। धरुणः। च। धर्त्ता। च। विधर्त्तेति विऽधर्त्ता। च। विधारय इति विऽधारयः॥८२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 82
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जो (ऋतः) सत्य का जानने वाला (च) भी (सत्यः) श्रेष्ठों में श्रेष्ठ (च) भी (ध्रुवः) निश्चययुक्त (च) भी (धरुणः) सब का आधार (च) भी (धर्त्ता) धारण करने वाला (च) भी (विधर्त्ता) विशेष करके धारण करने वाला अर्थात् धारकों का धारक (च) भी और (विधारयः) विशेष करके सब व्यवहार का धारण कराने वाला परमात्मा है, सब लोग उसी की उपासना करें॥८२॥

    भावार्थ - जो मनुष्य विद्या, उत्साह, सज्जनों का सङ्ग और पुरुषार्थ से सत्य और विशेष ज्ञान को धारण कर, अच्छे स्वभाव को धारण करते हैं, वे ही आप सुखी हो सकते और दूसरों को कर भी सकते हैं॥८२॥

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