Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 2/ मन्त्र 31
    सूक्त - भृगुः देवता - मृत्युः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मारोगनाशन सूक्त

    इ॒मा नारी॑रविध॒वाः सु॒पत्नी॒राञ्ज॑नेन स॒र्पिषा॒ सं स्पृ॑शन्ताम्। अ॑न॒श्रवो॑ अनमी॒वाः सु॒रत्ना॒ आ रो॑हन्तु॒ जन॑यो॒ योनि॒मग्रे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मा: । नारी॑: । अ॒वि॒ध॒वा: । सु॒ऽपत्नी॑: । आ॒ऽअञ्ज॑नेन । स॒र्पिषा॑ । सम् । स्पृ॒श॒न्ता॒म् । अ॒न॒श्रव॑: । अ॒न॒मी॒वा: । सु॒ऽरत्ना॑: । आ । रो॒ह॒न्तु॒ । जन॑य: । योनि॑म् । अग्रे॑ ॥२.३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा नारीरविधवाः सुपत्नीराञ्जनेन सर्पिषा सं स्पृशन्ताम्। अनश्रवो अनमीवाः सुरत्ना आ रोहन्तु जनयो योनिमग्रे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमा: । नारी: । अविधवा: । सुऽपत्नी: । आऽअञ्जनेन । सर्पिषा । सम् । स्पृशन्ताम् । अनश्रव: । अनमीवा: । सुऽरत्ना: । आ । रोहन्तु । जनय: । योनिम् । अग्रे ॥२.३१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 2; मन्त्र » 31

    पदार्थ -
    (इमाः) यह [विदुषी] (नारीः) नारियाँ (अविधवाः) सधवा [मनुष्योंवाली] और (सुपत्नीः) धार्मिक पतियोंवाली होकर (आञ्जनेन) यथावत् मेल से और (सर्पिषा) घी आदि [सार पदार्थ] से (सं स्पृशन्ताम्) संयुक्त रहें। (अनश्रवः) बिना आसुओंवाली, (अनमीवाः) बिना रोगोंवाली, (सुरत्नाः) सुन्दर-सुन्दर रत्नोंवाली (जनयः) माताएँ (अग्ने) आगे-आगे (योनिम्) मिलने के स्थान [घर, सभा आदि] में (आ रोहन्तु) चढ़ें ॥३१॥

    भावार्थ - जो विदुषी स्त्रियाँ ब्रह्मचर्य आदि शुभ गुणवाली होती हैं, वे अपने विद्वान् सुयोग्य कुटुम्बियों, पतियों और पुत्र आदि के साथ शरीर और आत्मा से स्वस्थ रहकर बहुत धनवती और सुखवती होकर अग्रगामिनी बनती हैं ॥३१॥ यह मन्त्र आगे है−अ० १८।३।५७। और कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१८।७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top