Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 2/ मन्त्र 25
    सूक्त - भृगुः देवता - मृत्युः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मारोगनाशन सूक्त

    यथाहा॑न्यनुपू॒र्वं भ॑वन्ति॒ यथ॒र्तव॑ ऋ॒तुभि॒र्यन्ति॑ सा॒कम्। यथा॑ न॒ पूर्व॒मप॑रो॒ जहा॑त्ये॒वा धा॑त॒रायूं॑षि कल्पयै॒षाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । अहा॑नि । अ॒नु॒ऽपू॒र्वम् । भव॑न्ति । यथा॑ । ऋ॒तव॑: । ऋ॒तुऽभि॑: । यन्ति॑ । सा॒कम् । यथा॑ । न । पूर्व॑म् । अप॑र: । जहा॑ति । ए॒व । धा॒त॒: । आयूं॑षि । क॒ल्प॒य॒ । ए॒षाम् ॥२.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथाहान्यनुपूर्वं भवन्ति यथर्तव ऋतुभिर्यन्ति साकम्। यथा न पूर्वमपरो जहात्येवा धातरायूंषि कल्पयैषाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । अहानि । अनुऽपूर्वम् । भवन्ति । यथा । ऋतव: । ऋतुऽभि: । यन्ति । साकम् । यथा । न । पूर्वम् । अपर: । जहाति । एव । धात: । आयूंषि । कल्पय । एषाम् ॥२.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 2; मन्त्र » 25

    पदार्थ -
    (यथा) जैसे (अहानि) दिन (अनुपूर्वम्) एक के पीछे एक (भवन्ति) होते रहते हैं, (यथा) जैसे (ऋतवः) ऋतुएँ (ऋतुभिः साकम्) ऋतुओं के साथ (यन्ति) चलते हैं। [वैसे ही] (यथा) जिस कारण से (अपरः) पिछला [पुत्र आदि] (पूर्वम्) पहिले [पिता आदि] को (न)(जहाति) छोड़े, (एव) उसी कारण से, (धातः) हे विधाता ! [परमेश्वर] (एषाम्) इन के (आयूंषि) जीवनों को (कल्पय) समर्थ कर ॥२५॥

    भावार्थ - जैसे सूर्य आदि पदार्थ ईश्वरनियम से परिपक्व होकर दिन-राति आदि को यथानियम बनाते हैं, वैसे ही जो मनुष्य ब्रह्मचर्य आदि नियमों का यथावत् पालन करते हैं, उन के पुत्र-पौत्र आदि पूर्ण आयु भोगते हुए अपने पूर्वजों की सेवा करते रहते हैं ॥२५॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१८।५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top