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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 2/ मन्त्र 46
    सूक्त - भृगुः देवता - अग्निः छन्दः - एकावसाना द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मारोगनाशन सूक्त

    सर्वा॑नग्ने॒ सह॑मानः स॒पत्ना॒नैषा॒मूर्जं॑ र॒यिम॒स्मासु॑ धेहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्वा॑न् । अ॒ग्ने॒ । सह॑मान: । स॒ऽपत्ना॑न्। आ । ए॒षा॒म् । ऊर्ज॑म् । र॒यिम् । अ॒स्मासु॑ । धे॒हि॒ ॥२.४६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वानग्ने सहमानः सपत्नानैषामूर्जं रयिमस्मासु धेहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वान् । अग्ने । सहमान: । सऽपत्नान्। आ । एषाम् । ऊर्जम् । रयिम् । अस्मासु । धेहि ॥२.४६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 2; मन्त्र » 46

    पदार्थ -
    (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप ! [परमेश्वर] (सर्वान्) सब (सपत्नान्) वैरियों को (सहमानः) हराता हुआ तू (एषाम्) इनके (ऊर्जम्) अन्न और (रयिम्) धन को (अस्मासु) हम [धर्मात्माओं] में (आ धेहि) सब प्रकार धारण कर ॥४६॥

    भावार्थ - परमेश्वर के नियम से धर्मात्मा लोग अधर्मियों को सदा नीचा रखते हैं ॥४६॥

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