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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 21
    ऋषिः - अश्विनावृषी देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    दे॒वं ब॒र्हिर्वारि॑तीनां दे॒वमिन्द्र॑मवर्धयत्।स्वा॒स॒स्थमिन्द्रे॒णास॑न्नम॒न्या ब॒र्हीष्य॒भ्यभूद् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वेतु॒ यज॑॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वम्। ब॒र्हिः। वारि॑तीनाम्। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्द्ध॒य॒त्। स्वा॒स॒स्थमिति॑ सुऽआस॒स्थम्। इन्द्रे॑ण। आस॑न्न॒मित्याऽस॑न्नम्। अ॒न्या। ब॒र्हीषि॑। अ॒भि। अ॒भूत्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वे॒तु॒। यज॑ ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवम्बर्हिर्वारितीनान्देवमिन्द्रमवर्धयत् । स्वासस्थमिन्द्रेणासन्नमन्या बर्हीँष्यभ्यभूद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवम्। बर्हिः। वारितीनाम्। देवम्। इन्द्रम्। अवर्द्धयत्। स्वासस्थमिति सुऽआसस्थम्। इन्द्रेण। आसन्नमित्याऽसन्नम्। अन्या। बर्हीषि। अभि। अभूत्। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। वेतु। यज॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 21
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে বিদ্বন্! যেমন (দেবম্) দিব্য (বারিতীণাম্) গ্রহণীয় পদার্থগুলির মধ্যে বর্ত্তমান (স্বাসস্থম্) সুন্দর প্রকার স্থিতির আধার (ইন্দ্রেণ) পরমেশ্বর সহ (আসন্নম্) নিকটবর্ত্তী (বর্হিঃ) আকাশ (দেবম্) উত্তম গুণসম্পন্ন (ইন্দ্রম্) বিদ্যুৎকে (অবর্ধয়ৎ) বৃদ্ধি করে (অন্যা) এবং (বর্হীষি) অন্তরিক্ষের অবয়বসকলকে (অভি, অভূৎ) সব দিক্ দিয়া ব্যাপ্ত হইবে (বসুধেয়স্য) সকল দ্রব্যের আধার জগতের মধ্যে (বসুবনে) পদার্থবিদ্যাকে কামনাকারী ব্যক্তির জন্য (বেতু) প্রাপ্ত হউক তদ্রূপ আপনি (য়জ) প্রাপ্ত হউন ॥ ২১ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে বিদ্বান্ মনুষ্যগণ! তোমরা যেমন সকল দিক দিয়া ব্যাপ্ত আকাশ সকল পদার্থসকলকে ব্যাপ্ত এবং সকলের সমীপ তদ্রূপ ঈশ্বরের নিকটবর্ত্তী জীবকে জানিয়া এই সংসারে যাচনাকারী সুপাত্রের জন্য ধনাদির দান দাও ॥ ২১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - দে॒বং ব॒র্হির্বারি॑তীনাং দে॒বমিন্দ্র॑মবর্ধয়ৎ । স্বা॒স॒স্থমিন্দ্রে॒ণাস॑ন্নম॒ন্যা ব॒র্হীᳬंষ্য॒ভ্য᳖ভূদ্ বসু॒বনে॑ বসু॒ধেয়॑স্য বেতু॒ য়জ॑ ॥ ২১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - দেবমিত্যস্যাশ্বিনাবৃষী । ইন্দ্রো দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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