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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 43
    ऋषिः - सरस्वत्यृषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृदतिजगती स्वरः - निषादः
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    दे॒वो वन॒स्पति॑र्दे॒वमिन्द्रं॑ वयो॒धसं॑ दे॒वो दे॒वम॑वर्धयत्।द्विप॑दा॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यं भग॒मिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वेतु॒ यज॑॥४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वः। वन॒स्पतिः॑। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वः। दे॒वम्। अ॒व॒र्ध॒य॒त्। द्विप॒देति॒ द्विऽप॑दा। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। भग॑म्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वे॒तु॒। यज॑ ॥४३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवो वनस्पतिर्देवमिन्द्रँवयोधसन्देवो देवमवर्धयत् । द्विपदा छन्दसेन्द्रियम्भगमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवः। वनस्पतिः। देवम्। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःऽधसम्। देवः। देवम्। अवर्धयत्। द्विपदेति द्विऽपदा। छन्दसा। इन्द्रियम्। भगम्। इन्द्रे। वयः। दधत्। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। वेतु। यज॥४३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 43
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে বিদ্বন্ ! যেমন (বনস্পতিঃ) বনের রক্ষক বটাদি (দেবঃ) উত্তম গুণযুক্ত (বয়োধসম্) অধিক আয়ু যুক্ত (দেবম্) উত্তম গুণযুক্ত (ইন্দ্রম্) ঐশ্বর্য্যকে যেমন (দেবঃ) উত্তম সভ্যজন (দেবম্) উত্তম স্বভাবযুক্ত বিদ্বান্কে তদ্রূপ (অবর্ধয়ৎ) বৃদ্ধি করাইবে (দ্বিপদা) দুই পদযুক্ত (ছন্দসা) ছন্দ দ্বারা (ইন্দ্রে) আত্মায় (ভগম্) ঐশ্বর্য্য তথা (ইন্দ্রিয়ম্) ধনকে (বেতু) প্রাপ্ত হউক তদ্রূপ (বসুধেয়স্য) ধনকোষের (বসুবনে) ধনকে প্রদানকারীর জন্য (বয়ঃ) অভীষ্ট সুখকে (দধৎ) ধারণ করিয়া তুমি (য়জঃ) যজ্ঞ কর ॥ ৪৩ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে বিদ্বান্ মনুষ্যগণ ! তোমাকে যেমন বনস্পতি পুষ্কল জলকে নিম্নে পৃথিবী হইতে আকর্ষণ করিয়া বায়ু ও মেঘমন্ডলে বিস্তার করিয়া সকল তৃণাদির রক্ষা করে এবং যেমন রাজপুরুষ রাজপুরুষদিগের রক্ষা করে তদ্রূপ আচরণ করিয়া ঐশ্বর্য্যের উন্নতি করা উচিত ॥ ৪৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - দে॒বো বন॒স্পতি॑র্দে॒বমিন্দ্রং॑ বয়ো॒ধসং॑ দে॒বো দে॒বম॑বর্ধয়ৎ । দ্বিপ॑দা॒ ছন্দ॑সেন্দ্রি॒য়ং ভগ॒মিন্দ্রে॒ বয়ো॒ দধ॑দ্ বসু॒বনে॑ বসু॒ধেয়॑স্য বেতু॒ য়জ॑ ॥ ৪৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - দেব ইত্যস্য সরস্বতৃ্যষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । নিচৃদতিজগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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