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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 24
    ऋषिः - सरस्वती ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - स्वराड् जगती स्वरः - निषादः
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    होता॑ यक्षत्समिधा॒नं म॒हद्यशः॒ सुस॑मिद्धं॒ वरे॑ण्यम॒ग्निमिन्द्रं॑ वयो॒धस॑म्।गा॒य॒त्रीं छन्द॑ऽइन्द्रि॒यं त्र्यविं॒ गां वयो॒ दध॒द् वेत्वाज्य॑स्य होत॒र्यज॑॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। स॒मि॒धा॒नमिति॑ सम्ऽइधा॒नम्। म॒हत्। यशः॑। सुस॑मिद्ध॒मिति॒ सुऽस॑मिद्धम्। वरे॑ण्यम्। अ॒ग्निम्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। गा॒य॒त्रीम्। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। त्र्यवि॒मिति॑ त्रि॒ऽअवि॑म्। गाम्। वयः॑। दध॑त्। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥२४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षत्समिधानम्महद्यशः सुसमिद्धँवरेण्यमग्निमिन्द्रँवयोधसम् । गायत्रीञ्छन्दऽइन्द्रियन्त्र्यविङ्गाँवयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। समिधानमिति समऽइधानम्। महत्। यशः। सुसमिद्धमिति सुऽसमिद्धम्। वरेण्यम्। अग्निम्। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःऽधसम्। गायत्रीम्। छन्दः। इन्द्रियम्। त्र्यविमिति त्रिऽअविम्। गाम्। वयः। दधत्। वेतु। आज्यस्य। होतः। यज॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 24
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (হোতঃ) বিদ্যাদি গ্রহণকারী ব্যক্তি! আপনি যেমন (হোতা) দাতাপুরুষ (অগ্নিম্) অগ্নির তুল্য (সমিধানম্) সম্যক্ প্রকাশমান (সুসমিদ্ধম্) সুন্দর শোভায়মান (বরেণ্যম্) গ্রহণ করিবার যোগ্য (মহৎ) বৃহৎ (য়শঃ) কীর্ত্তি (বয়োধসম্) অভীষ্ট অবস্থার ধারক (ইন্দ্রম্) উত্তম ঐশ্বর্য্যকারী যোগ (গায়ত্রীম্) সত্য অর্থের প্রকাশকারিণী গায়ত্রী (ছন্দঃ) স্বতন্ত্রতা (ইন্দ্রিয়ম্) ধন অথবা শ্রোত্রাদি ইন্দ্রিয়সকল (ত্র্যবিম্) তিন প্রকার রক্ষাকারিণী (গাম্) পৃথিবী এবং (বয়ঃ) জীবনকে (দধৎ) ধারণ করিয়া (য়ক্ষৎ) সঙ্গ করিবে এবং (আজ্যস্য) বিজ্ঞানের রসকে (বেতু) প্রাপ্ত হইবে সেইরূপ আপনিও (য়জ) সঙ্গত করুন ॥ ২৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এইমন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে সব পুরুষ সৎ বিদ্যাদি পদার্থসকলের দান করেন তাঁহারা অতুল কীর্ত্তি লাভ করিয়া স্বয়ং সুখী হন্ এবং অন্যকে সুখী করেন ॥ ২৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - হোতা॑ য়ক্ষৎসমিধা॒নং ম॒হদ্যশঃ॒ সুস॑মিদ্ধং॒ বরে॑ণ্যম॒গ্নিমিন্দ্রং॑ বয়ো॒ধস॑ম্ । গা॒য়॒ত্রীং ছন্দ॑ऽইন্দ্রি॒য়ং ত্র্যবিং॒ গাং বয়ো॒ দধ॒দ্ বেত্বাজ্য॑স্য হোত॒র্য়জ॑ ॥ ২৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - হোতেত্যস্য সরস্বতৃ্যষিঃ । অগ্নির্দেবতা । স্বরাড্ জগতীছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ।

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