Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 2
    ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृदतिजगती स्वरः - निषादः
    5

    होता॑ यक्ष॒त् तनू॒नपा॑तमू॒तिभि॒र्जेता॑र॒मप॑राजितम्। इन्द्रं॑ दे॒वस्व॒र्विदं॑ प॒थिभि॒र्मधु॑मत्तमै॒र्नरा॒शꣳसे॑न॒ तेज॑सा॒ वेत्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। तनू॒नपा॑त॒मिति तनू॒ऽनपा॑तम्। ऊ॒तिभि॒रित्यू॒तिऽभिः॑। जेता॑रम्। अप॑राजित॒मित्यप॑राऽजितम्। इन्द्र॑म्। दे॒वम्। स्व॒र्विद॒मिति॑ स्वः॒ऽविद॑म्। प॒थिभि॒रिति॑ प॒थिऽभिः॑। मधु॑मत्तमै॒रिति॒ मधु॑मत्ऽतमैः। नरा॒शꣳसे॑न। तेज॑सा। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षत्तनूनपातमूतिभिर्जेतारमपराजितम् । इन्द्रन्देवँ स्वर्विदम्पथिभिर्मधुमत्तमैर्नराशँसेन तेजसा वेत्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। तनूनपातमिति तनूऽनपातम्। ऊतिभिरित्यूतिऽभिः। जेतारम्। अपराजितमित्यपराऽजितम्। इन्द्रम्। देवम्। स्वर्विदमिति स्वःऽविदम्। पथिभिरिति पथिऽभिः। मधुमत्तमैरिति मधुमत्ऽतमैः। नराशꣳसेन। तेजसा। वेतु। आज्यस्य। होतः। यज॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (হোতঃ) গ্রহণকারী পুরুষ! আপনি যেমন (হোতা) সুখদাতা (ঊতিভিঃ) রক্ষাদি তথা (মধুমত্তমৈঃ) অতিমিষ্ট জলাদি দ্বারা যুক্ত (পথিভিঃ) ধর্মযুক্ত মার্গ দ্বারা (তনূনপাতম্) শরীরাদির রক্ষক (জেতারম্) জয়শীল (অপরাজিতম্) শত্রু দ্বারা অজেয় (স্বর্বিদম্) সুখকে প্রাপ্ত (দেবম্) বিদ্যা ও বিনয় দ্বারা সুশোভিত (ইন্দ্রম্) পরম ঐশ্বর্য্যকারক রাজার (য়ক্ষৎ) সঙ্গ করিবে (নরাশংসেন) মনুষ্যগণের দ্বারা প্রশংসিত (তেজসা) বুদ্ধিপূর্বক (আজ্যস্য) জানিবার যোগ্য বিষয়কে (বেতু) প্রাপ্ত হউক সেইরূপ (য়জ) সঙ্গ করুন ॥ ২ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে রাজা স্বয়ং রাজ্যের ন্যায় মার্গে চলিয়া প্রজাদিগের রক্ষা করিবে, সে পরাজয় প্রাপ্ত না হইয়া শত্রুদিগের বিজয়ী হয় ॥ ২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - হোতা॑ য়ক্ষ॒ৎ তনূ॒নপা॑তমূ॒তিভি॒র্জেতা॑র॒মপ॑রাজিতম্ । ইন্দ্রং॑ দে॒বᳬंস্ব॒র্বিদং॑ প॒থিভি॒র্মধু॑মত্তমৈ॒র্নরা॒শꣳসে॑ন॒ তেজ॑সা॒ বেত্বাজ্য॑স্য॒ হোত॒র্য়জ॑ ॥ ২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - হোতেত্যস্য বৃহদুক্থো বামদেব ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । নিচৃদতিজগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top