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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 53
    ऋषिः - ऋजिष्व ऋषिः देवता - लिङ्गोक्ता देवताः छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    उ॒त नोऽहि॑र्बु॒ध्न्यः शृणोत्व॒जऽएक॑पात् पृथि॒वी स॑मु॒द्रः।विश्वे॑ दे॒वाऽऋ॑ता॒वृधो॑ हुवा॒नाः स्तु॒ता मन्त्राः॑ कविश॒स्ताऽअ॑वन्तु॥५३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त। नः॒। अहिः॑। बु॒ध्न्यः᳖। शृ॒णो॒तु॒। अ॒जः। एक॑पा॒दित्येक॑ऽपात्। पृ॒थि॒वी। स॒मु॒द्रः ॥ विश्वे॑। दे॒वाः। ऋ॒ता॒वृधः॑। ऋ॒त॒वृध॒ इत्यृ॑त॒ऽवृधः॑। हु॒वा॒नाः। स्तु॒ताः। मन्त्राः॑। क॒वि॒श॒स्ता इति॑ कविऽश॒स्ताः। अ॒व॒न्तु॒ ॥५३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत नोहिर्बुध्न्यः शृणोत्वजऽएकपात्पृथिवी समुद्रः । विश्वे देवाऽऋतावृधो हुवाना स्तुता मन्त्राः कविशस्ताऽअवन्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत। नः। अहिः। बुध्न्यः। शृणोतु। अजः। एकपादित्येकऽपात्। पृथिवी। समुद्रः॥ विश्वे। देवाः। ऋतावृधः। ऋतवृध इत्यृतऽवृधः। हुवानाः। स्तुताः। मन्त्राः। कविशस्ता इति कविऽशस्ताः। अवन्तु॥५३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 53
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! (বুধ্ন্যঃ) অন্তরিক্ষে ঘটিত (অহিঃ) মেঘতুল্য এবং পৃথিবী তথা (সমুদ্রঃ) অন্তরিক্ষ তুল্য (একপাৎ) একপ্রকারের নিশ্চল অব্যভিচারী বোধযুক্ত (অজঃ) যিনি কখনও উৎপন্ন হন না সেই পরমেশ্বর (নঃ) আমাদের বচনসমূহকে (শৃণোতু) শ্রবণ করুক তথা (ঋতাবৃধঃ) সত্যের বৃদ্ধিকারীগণ (হুবানাঃ) স্পর্দ্ধমান্ (বিশ্বে) সকল (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ (উত) এবং (কবিশস্তাঃ) বুদ্ধিমানদের দ্বারা প্রশংসা কৃত (স্তুতাঃ) স্তুতির প্রকাশক (মন্ত্রাঃ) বিচারসাধক মন্ত্র আমাদের (অবন্তু) রক্ষা করুক ॥ ৫৩ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ ! যেমন পৃথিবী আদি পদার্থ, মেঘ ও পরমেশ্বর সকলের রক্ষা করে সেইরূপই বিদ্যা ও বিদ্বান্গণ সকলকেই পালন করেন ॥ ৫৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - উ॒ত নোऽহি॑র্বু॒ধ্ন্যঃ᳖ শৃণোত্ব॒জऽএক॑পাৎ পৃথি॒বী স॑মু॒দ্রঃ ।
    বিশ্বে॑ দে॒বাऽঋ॑তা॒বৃধো॑ হুবা॒নাঃ স্তু॒তা মন্ত্রাঃ॑ কবিশ॒স্তাऽঅ॑বন্তু ॥ ৫৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - উত ন ইত্যস্য ঋজিষ্ব ঋষিঃ । লিঙ্গোক্তা দেবতাঃ । ভুরিক্ পংক্তিশ্ছন্দঃ । পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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