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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 20
    ऋषिः - वत्सार काश्यप ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - निचृत् आर्षी जगती स्वरः - निषादः
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    उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽस्याग्रय॒णोऽसि॒ स्वाग्रयणः। पा॒हि य॒ज्ञं पा॒हि य॒ज्ञप॑तिं॒ विष्णु॒स्त्वामि॑न्द्रि॒येण॑ पातु॒ विष्णुं त्वं पा॑ह्य॒भि सव॑नानि पाहि॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। आ॒ग्र॒य॒णः। अ॒सि॒। स्वा॑ग्रयण॒ इति॒ सुऽआग्रयणः। पा॒हि। य॒ज्ञम्। पा॒हि। य॒ज्ञम्। पा॒हि। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽपतिम्। विष्णुः॑। त्वाम्। इ॒न्द्रि॒येण॑। पा॒तु॒। विष्णु॑म्। त्वम्। पा॒हि॒। अ॒भि। सव॑नानि। पा॒हि॒ ॥२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपयामगृहीतोस्याग्रयणो सि स्वाग्रयणः पाहि यज्ञम्पाहि यज्ञपतिँविष्णुस्त्वामिन्द्रियेण पातु विष्णुन्त्वम्पाह्यभि सवनानि पाहि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। आग्रयणः। असि। स्वाग्रयण इति सुऽआग्रयणः। पाहि। यज्ञम्। पाहि। यज्ञम्। पाहि। यज्ञपतिमिति यज्ञऽपतिम्। विष्णुः। त्वाम्। इन्द्रियेण। पातु। विष्णुम्। त्वम्। पाहि। अभि। सवनानि। पाहि॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 20
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    भावार्थ -

     हे सभापते ! तू (उपयामगृहीतः असि ) राष्ट्र के नियम व्यवस्था द्वारा स्वीकृत है। तू ( आग्रयण: असि ) 'आग्रयण' अन्न अर्थात् मुख्य २ पद प्राप्त करने योग्य है ! और तू ( सु-आग्रयणः ) उत्तम पूजा योग्य अग्रपद प्राप्त, सर्वोच्च पदाधिकारी (असि ) है। तू ( यज्ञम् पाहि ) इस व्यवस्थित राष्ट्र का पालन कर और ( यज्ञपतिम् ) यज्ञ या राष्ट्र के पालक स्वामी की भी ( पाहि ) रक्षा कर । हे राष्ट्र ! (विष्णुः ) सब शक्तियों और राष्ट्र के विभागों में समानरूप से व्यापक राजा ( त्वाम् ) तुझको ( इन्द्रियेण ) अपने इन्द्र, ऐश्वर्यभाजन पदयोग्य राजबल से पातु ) पालन करे (त्वम्) तू हे विद्वन् ! या प्रजाजन ! (विष्णुम् ) उस व्यापक शक्तिमान् राजा को ( पाहि ) पालन कर और तू ( सवनानि ) समस्त ऐश्वर्य के द्योतक अधिकार पदों की भी ( पाहि ) रक्षा कर ॥ शत० ४।२।२। ९-१० ॥ 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    यज्ञो देवता । निचृदार्षी जगती । निषादः ॥ 

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