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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 15
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    शिरो॒ हस्ता॒वथो॒ मुखं॑ जि॒ह्वां ग्री॒वाश्च॒ कीक॑साः। त्व॒चा प्रा॒वृत्य॒ सर्वं॒ तत्सं॒धा सम॑दधान्म॒ही ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शिर॑: । हस्तौ॑ । अथो॒ इति॑ । मुख॑म् । जि॒ह्वाम् । ग्री॒वा: । च॒ । कीक॑सा: । त्व॒चा । प्र॒ऽआ॒वृत्य॑ । सर्व॑म् । तत् । स॒म्ऽधा । सम् । अ॒द॒धा॒त् । म॒ही ॥१०.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिरो हस्तावथो मुखं जिह्वां ग्रीवाश्च कीकसाः। त्वचा प्रावृत्य सर्वं तत्संधा समदधान्मही ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिर: । हस्तौ । अथो इति । मुखम् । जिह्वाम् । ग्रीवा: । च । कीकसा: । त्वचा । प्रऽआवृत्य । सर्वम् । तत् । सम्ऽधा । सम् । अदधात् । मही ॥१०.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 15

    भावार्थ -
    (संधा) समस्त अंगों को जोड़ने वाली शक्ति का नाम ‘संधा’ है। (मही) वह बड़ी भारी ‘संघा’ शक्ति है। जिसने (शिरः हस्तौ मुखम् जिह्वां ग्रीवाश्च अथो कीकसाः) शिर, दो हाथ, मुख, जीभ, गर्दन के मोहरे और कीकस = पीठ के मोहरे (तत् सर्वं) इन सब शरीर के अंगों को (त्वचा प्रावृत्य) त्वचा, चमड़े से मढ़ कर (सम् अदधात्) एकत्र जोड़ कर रखा है। वह (मही संधा) बड़ी भारी ‘संधा’ नाम की ईश्वरी शक्ति है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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