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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 28
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    आस्ते॑यीश्च॒ वास्ते॑यीश्च त्वर॒णाः कृ॑प॒णाश्च॒ याः। गुह्याः॑ शु॒क्रा स्थू॒ला अ॒पस्ता बी॑भ॒त्साव॑सादयन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आस्ते॑यी: । च॒ । वास्ते॑यी: । च॒ । त्व॒र॒णा: । कृ॒प॒णा: । च॒ । या: । गुह्या॑: । शु॒क्रा: । स्थू॒ला: । अ॒प: । ता: । बी॒भ॒त्सौ । अ॒सा॒द॒य॒न् ॥१०.२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आस्तेयीश्च वास्तेयीश्च त्वरणाः कृपणाश्च याः। गुह्याः शुक्रा स्थूला अपस्ता बीभत्सावसादयन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आस्तेयी: । च । वास्तेयी: । च । त्वरणा: । कृपणा: । च । या: । गुह्या: । शुक्रा: । स्थूला: । अप: । ता: । बीभत्सौ । असादयन् ॥१०.२८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 28

    भावार्थ -
    (आस्तेयीः* च) ‘अस्ति’ हृदय या मुख में विद्यमान रुधिर या थूक और (वास्तेयीः च) ‘वस्ति’ मूत्राशय में जमा होने वाले मूत्र के जल (त्वरणाः) शरीर में वेग से चलने वाले अथवा प्रवाह से बहने वाले और (याः कृपणाः च) जो मन्दगति अथवा तुच्छ स्वरूप से विद्यमान, (गुह्याः) गुह्य, गुप्त रूप से अंगों में विद्यमान, (शुक्राः) शुक्र, वीर्य रूप में विद्यमान, (स्थूलाः) स्थूल, अन्न रूप में पान करने योग्य समस्त प्रकार के (अपः) जल (ताः) वे सब (बीभत्सौ) इस सुबद्ध शरीर में, सुघटित शरीर में (असादयन्) रखे हुए हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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