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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 25
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    आ॑ला॒पाश्च॑ प्रला॒पाश्चा॑भीलाप॒लप॑श्च॒ ये। शरी॑रं॒ सर्वे॒ प्रावि॑शन्ना॒युजः॑ प्र॒युजो॒ युजः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ऽला॒पा: । च॒ । प्र॒ऽला॒पा: ।च॒ । अ॒भि॒ला॒प॒ऽलप॑: । च॒ । ये । शरी॑रम् । सर्वे॑ । प्र । अ॒वि॒श॒न् । आ॒ऽयुज॑: । प्र॒ऽयुज॑: । युज॑: ॥१०.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आलापाश्च प्रलापाश्चाभीलापलपश्च ये। शरीरं सर्वे प्राविशन्नायुजः प्रयुजो युजः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽलापा: । च । प्रऽलापा: ।च । अभिलापऽलप: । च । ये । शरीरम् । सर्वे । प्र । अविशन् । आऽयुज: । प्रऽयुज: । युज: ॥१०.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 25

    भावार्थ -
    (आलापाः च) समस्त परस्पर के वार्त्तालाप (प्रलापाः च) समस्त व्यर्थ बकवाद और (अभीलापलपः च ये) जो प्रत्यक्ष में दूसरे की बातें सुनकर प्रत्युत्तर में या देखा देखी जो बातें कही जाती हैं और (आयुजः) समस्त आयोजनाएं (प्रयुजः) समस्त प्रयोग, और प्रयोजन और (युजः) समस्त योजनाएं, विधान या परस्पर मेल-जोल या योगक्रियाएं ये (सर्वे) सब (शरीरं प्राविशन्) शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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