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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 27
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    आ॒शिष॑श्च प्र॒शिष॑श्च सं॒शिषो॑ वि॒शिष॑श्च॒ याः। चि॒त्तानि॒ सर्वे॑ संक॒ल्पाः शरी॑र॒मनु॒ प्रावि॑शन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ऽशिष॑: । च॒ । प्र॒ऽशिष॑: । च॒ । स॒म्ऽशिष॑: । वि॒ऽशिष॑: । च॒ । या: । चि॒त्तानि॑ । सर्वे॑ । स॒म्ऽक॒ल्पा: । शरी॑रम् । अनु॑ । प्र । अ॒वि॒श॒न् ॥१०.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आशिषश्च प्रशिषश्च संशिषो विशिषश्च याः। चित्तानि सर्वे संकल्पाः शरीरमनु प्राविशन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽशिष: । च । प्रऽशिष: । च । सम्ऽशिष: । विऽशिष: । च । या: । चित्तानि । सर्वे । सम्ऽकल्पा: । शरीरम् । अनु । प्र । अविशन् ॥१०.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 27

    भावार्थ -
    (आशिषः च) समस्त आशीर्वाद, अभिलषित फलों की आशाएं और (प्रशिषः च) समस्त प्रशासन, अपने से छोटे और निम्न पुरुषों के प्रति आज्ञाएं (संशिषः) समान पुरुषों के प्रति अनुज्ञाएं और सम्मति और (याः विशिषश्च) अन्य नाना प्रकार की जो विशेष रूप से कही गई आज्ञाएं या मनोरथ हैं (चित्तानि) समस्त चित्त, विचार और (सर्वे संकल्पाः) समस्त संकल्प विकल्प (शरीरम् अनु प्राविशन्) शरीर के भीतर प्रविष्ट होते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कौरुपथिर्ऋषिः। अध्यात्मं मन्युर्देवता। १-३२, ३४ अनुष्टुभः, ३३ पथ्यापंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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