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यजुर्वेद अध्याय - 27

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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 12
    ऋषिः - अग्निर्ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः
    72

    तनू॒नपा॒दसु॑रो वि॒श्ववे॑दा दे॒वो दे॒वेषु॑ दे॒वः।प॒थो अ॑नक्तु॒ मध्वा॑ घृ॒तेन॑॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तनू॒नपा॒दिति॒ तनू॒ऽनपा॑त्। असु॑रः। वि॒श्ववे॑दा॒ इति॑ वि॒श्वऽवे॑दाः। दे॒वः। दे॒वेषु॑। दे॒वः। प॒थः। अ॒न॒क्तु॒। मध्वा॑। घृ॒तेन॑ ॥१२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तनूनपादसुरो विश्ववेदा देवो देवेषु देवः । पथोऽअनक्तु मध्वा घृतेन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तनूनपादिति तनूऽनपात्। असुरः। विश्ववेदा इति विश्वऽवेदाः। देवः। देवेषु। देवः। पथः। अनक्तु। मध्वा। घृतेन॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 12
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ वायुः किंवत् कार्यसाधकोऽस्तीत्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यो देवेषु देवोऽसुरो विश्ववेदास्तनूनपाद्देवो मध्वा घृतेन सह पथोऽनक्तु, तं यूयं विजानीत॥१२॥

    पदार्थः

    (तनूनपात्) यस्तनूषु शरीरेषु न पतति सः (असुरः) प्रकाशरहितो वायुः (विश्ववेदाः) यो विश्वं विन्दति सः (देवः) दिव्यगुणः (देवेषु) दिव्यगुणेषु वस्तुषु (देवः) कमनीयः (पथः) मार्गान् (अनक्तु) (मध्वा) मधुरेण (घृतेन) उदकेन सह॥१२॥

    भावार्थः

    यथा परमेश्वरो महादेवो विश्वव्यापी सर्वेषां सुखकरोऽस्ति तथा वायुरप्यस्ति, नह्यनेन विना कश्चिदपि कुत्रचिद् गन्तुं शक्नोति॥१२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब वायु किस के समान कार्यसाधक है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जो (देवेषु) उत्तम गुण वाले पदार्थों में (देवः) उत्तम गुण वाला (असुरः) प्रकाशरहित वायु (विश्ववेदाः) सब को प्राप्त होने वाला (तनूनपात्) जो शरीर में नहीं गिरता (देवः) कामना करने योग्य (मध्वा) मधुर (घृतेन) जल के साथ (पथः) श्रोत्रादि के मार्गों को (अनक्तु) प्रकट करे, उस को तुम जानो॥१२॥

    भावार्थ

    जैसे परमेश्वर बड़ा देव सब में व्यापक और सब को सुख करने हारा है, वैसा वायु भी है, क्योंकि इस वायु के बिना कोई कहीं भी नहीं जा सकता॥१२॥

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    विषय

    अग्नि और वाग्मी नाम विद्वानों का वर्णन ।

    भावार्थ

    (तनूनपात्) शरीरों को न गिरने देने वाला, (असुरः) प्राणों में रमण करने वाला, (देव:) शक्ति देने और ज्ञान के देखने वाला जीव '(देवेषु देवः) श्रोत्र आदि पदार्थ द्रष्टा उपकरणों में सबका अध्यक्ष है, वह (मध्वा) ज्ञान से (घृतेन) और प्रकाश से (पथः) अपने जीवन के मार्गों को ( अनक्तु) प्रकाशित करे । (२) वायु शरीरों का रक्षक (असुरः) बलवान् दिव्य गुण वाला, (देवेषु देव:) अग्नि आदि पदार्थों को शक्ति देने वाला, (मध्वा) मधुर (घृतेन) जल से (पथः) मार्गों को ( अनक्तु) सींचे, वृष्टि करे । (३) राजा विस्तृत राष्ट्र का पालक, (विश्ववेदाः) समस्त ऐश्वर्य वाला, (असुर) बलवान्, ऐश्वर्यवान्, (देवेष् देवः) दानशीलों में सबसे अधिक दानशील, (देवः) सबका द्रष्टा, (मध्वा घृतेन) मधुर आकर्षण और तेज से, सौम्यता और प्रखरता दोनों से प्रजा के व्यवस्थापक राजनियमों को प्रकाशित करे । (४) परमेश्वर - सब शरीरों का रक्षक होने से 'तनू- नपात्' है, सर्वज्ञ होने से 'विश्ववेदाः', सब सूर्यादि का प्रकाशक होने से `देवों का देव`, सर्वप्रद होने से 'देव' और ऐश्वर्यों का ज्ञाता होने से [असु-र] 'असुर' है । वह (मध्वा ) मधुर आनन्द से और (घृतेन) प्रकाश- मय ज्ञान से हमारे जीवन के समस्त ऐहिक और पारलौकिक मार्गों को 'वेदोपदेश द्वारा प्रकाशित करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निः तनूनपात् । उष्णिक् । ऋषभः ॥

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    विषय

    माधुर्य, नैर्मल्य व दीप्ति

    पदार्थ

    १. यह 'अग्नि' (तनूनपात्) = अपने शरीर को न गिरने देनेवाला है। सात्त्विक व पौष्टिक भोजनों का सेवन करने से यह शरीर को ढीला नहीं होने देता। २. (असुर:) = [असुमान् प्राणवान् - उ० ] यह प्राणशक्ति सम्पन्न होता है। यह प्राणशक्तिप्रद भोजनों का सेवन करता है और संयमी जीवन बिताता हुआ प्राणशक्ति में कमी नहीं आने देता। ३. (विश्ववेदाः) आवश्यक धनों का अर्जन करता है और सम्पूर्ण ज्ञानवाला होता है। ४. (देवः) = दानादि गुणयुक्त होता है। 5. देवेषु देवः । यह (पथ:) = अपने जीवन मार्गों को (मध्वा) = माधुर्य से और (घृतने) = [घृ क्षरण] मलों के क्षरण, अर्थात् नैर्मल्य से तथा [घृ दीप्ति] ज्ञान की दीप्ति से (अनक्तु) = अलंकृत करे, अर्थात् इसके सारे कार्यों में माधुर्य, नैर्मल्य व दीप्ति का पुट हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम शरीर को स्वस्थ व प्राणशक्ति सम्पन्न बनाएँ, ज्ञानी व धनी बनें, देववृत्ति-वाले, देवों के भी देव बनें। हमारे व्यवहार मुधर, निर्मल व समझदारी को लिये हुए हों।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    परमेश्वर जसा मोठा देव आहे व सर्वत्र व्यापक आहे आणि सर्वांना सुख देणारा आहे तसा वायूही असून त्याच्याखेरीज कोणी कुठेही जाऊ शकत नाही.

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    विषय

    वायू कोणत्या पदार्थाप्रमाणे कार्यसाधक आहे, यावषियी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, जो वायू (देवेषु) द्यि गुणयुक्त पदार्थांत (देवः) उत्तम गुणवान आहे, जो (असुरः) प्रकाशरहित असून (विश्‍ववेदाः) सर्वांना सारखेपणाने प्राप्त होणारा आहे, तो (तनूनपात्) शरीराला सोडत नाही (प्राण, अपानादी रूपाने शरीराला व्यापून असतो) अशा (देवः) कामना करण्यास योग्य (मध्वा) (घृतेन) जलासोबत (राहतो) आणि (पथः) श्रोत्र आदी इंद्रियांच्या मार्गात (अनक्तु) त्यांचा सहाय्यक होतो (वायूमुळे मनुष्य ऐकूं शकतात) अशा वायूच्या सर्व गुणांना, हे मनुष्यांनो, तुम्ही जाणून घ्या. ॥12॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जसा परमेश्‍वर महादेवता, सर्वव्यापी आणि सर्वांना सुख देणारा आहे, तसाच वायूही आहे. कारण की या वायूशिवाय कोणीही प्राणी कुठेही जाऊ शकत नाही. ॥12॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O men, know air as an object of usefulness amongst the useful objects, devoid of lustre, all-possessing, the protector of bodies, highly desirable, and the sprinkler of paths with sweet water through rain.

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    Meaning

    Vayu/Agni, which allows not the body to fall, which is breath of life, replete with universal vitalities, divine among divinities, and most generous, may that Vayu/Agni sprinkle our path of life with the sweetest nectar of ghrta.

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    Translation

    May the adorable Lord, preserver of bodies and bestower of life, omniscient, the supreme Lord, the god among gods, provide our paths of life with honey and butter. (1) (Tanunapat = preserver of bodies).

    Notes

    Tanūnapāt, preserver of bodies. Also, तनूनां अपां नपात्, grandson of waters, i. e. the fire. Asuraḥ, असून् राति ददाति य:, bestower of life. Also, the Lord Divine. Deveşu devaḥ, god among gods. Pathaḥ, paths of life. Madhuna ghṛtena, with sweet butter. Also, with honey and butter, i. e. with all the good and desirable things.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ বায়ুঃ কিংবৎ কার্য়সাধকোऽস্তীত্যাহ ॥
    এখন বায়ু কীসের সমান কার্য্যসাধক, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যাহা (দেবেষু) উত্তম গুণযুক্ত পদার্থসমূহের মধ্যে (দেবঃ) উত্তম গুণযুক্ত (অসুরঃ) প্রকাশরহিত বায়ু (বিশ্ববেদাঃ) সকলকে প্রাপ্ত হওয়ার যোগ্য (তনূনপাৎ) যাহা শরীরে পতিত হয়না (দেবঃ) কামনা করিবার যোগ্য (মধ্বা) মধুর (ঘৃতেন) জল সহ (পথঃ) শ্রোত্রাদির মার্গকে (অনক্তু) প্রকাশ করে তাহাকে তুমি জানিয়া লও ॥ ১২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যেমন পরমেশ্বর বৃহৎ দেব সকলের মধ্যে ব্যাপক এবং সকলকে সুখ দিয়া থাকেন, সেইরূপ বায়ুও, কেননা এই বায়ু বিনা কেহ কোথাও যাইতে পারে না ॥ ১২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    তনূ॒নপা॒দসু॑রো বি॒শ্ববে॑দা দে॒বো দে॒বেষু॑ দে॒বঃ ।
    প॒থো অ॑নক্তু॒ মধ্বা॑ ঘৃ॒তেন॑ ॥ ১২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    তনূনপাদিত্যস্যাऽগ্নির্ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । উষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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