यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 36
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः
देवता - परमेश्वरो देवता
छन्दः - निचृत् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
167
न त्वावाँ॑ २॥ऽ अ॒न्यो दि॒व्यो न पार्थि॑वो॒ न जा॒तो न ज॑निष्यते।अ॒श्वा॒यन्तो॑ मघवन्निन्द्र वा॒जिनो॑ ग॒व्यन्त॑स्त्वा हवामहे॥३६॥
स्वर सहित पद पाठन। त्वावा॒निति॒ त्वाऽवा॑न्। अ॒न्यः। दि॒व्यः। न। पार्थि॑वः। न। जा॒तः। न। ज॒नि॒ष्य॒ते॒। अ॒श्वा॒यन्तः॑। अ॒श्व॒यन्त॒ इत्य॑श्व॒ऽयन्तः॑। म॒घ॒व॒न्निति॑ मघऽवन्। इ॒न्द्र॒। वा॒जिनः॑। ग॒व्यन्तः॑। त्वा॒। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥३६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
न त्वावाँऽअन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते । अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठ
न। त्वावानिति त्वाऽवान्। अन्यः। दिव्यः। न। पार्थिवः। न। जातः। न। जनिष्यते। अश्वायन्तः। अश्वयन्त इत्यश्वऽयन्तः। मघवन्निति मघऽवन्। इन्द्र। वाजिनः। गव्यन्तः। त्वा। हवामहे॥३६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
ईश्वर एवोपासनीय इत्याह॥
अन्वयः
हे मघवन्निन्द्रेश्वर! वाजिनो गव्यन्तोऽश्वायन्तो वयं त्वा हवामहे, यतः कश्चिदन्यः पदार्थो न त्वावान् दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते तस्माद् भवानेवाऽस्माकमुपास्यो देवोऽस्ति॥३६॥
पदार्थः
(न) (त्वावान्) त्वत्सदृशः (अन्यः) भिन्नः (दिव्यः) शुद्धः (न) (पार्थिवः) पृथिव्यां विदितः (न) (जातः) उत्पन्नः (न) (जनिष्यते) उत्पत्स्यते (अश्वायन्तः) आत्मनोऽश्वमिच्छन्तः (मघवन्) परमपूजितैश्वर्य (इन्द्र) सर्वदुःखविदारक (वाजिनः) वेगवन्तः (गव्यन्तः) गां वाणीं चक्षाणाः (त्वा) (हवामहे) स्तुवीमः॥३६॥
भावार्थः
न कोपि परमेश्वरेण सदृशः शुद्धो जातो वा जनिष्यमाणो वर्त्तमानो वाऽस्ति। अत एव सर्वैर्मनुष्यैरेतं विहायान्यस्य कस्याप्युपासनाऽस्य स्थाने नैव कार्या। इदमेव कर्मेहामुत्र चानन्दप्रदं विज्ञेयम्॥३६॥
हिन्दी (3)
विषय
ईश्वर ही उपासना करने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (मघवन्) पूजित उत्तम ऐश्वर्य से युक्त (इन्द्र) सब दुःखों के विनाशक परमेश्वर! (वाजिनः) वेगवाले (गव्यन्तः) उत्तम वाणी बोलते हुए (अश्वायन्तः) अपने को शीघ्रता चाहते हुए हम लोग (त्वा) आप की (हवामहे) स्तुति करते हैं, क्योंकि जिस कारण कोई (अन्यः) अन्य पदार्थ (न) न कोई (त्वावान्) आप के (दिव्यः) शुद्ध (न) न कोई (पार्थिवः) पृथिवी पर प्रसिद्ध (न) न कोई (जातः) उत्पन्न हुआ और (न) न (जनिष्यते) होगा, इससे आप ही हमारे उपास्यदेव हैं॥३६॥
भावार्थ
न कोई परमेश्वर के तुल्य शुद्ध हुआ, न होगा और न है। इसी से सब मनुष्यों को चाहिये कि इस को छोड़ अन्य किसी की उपासना इस के स्थान में कदापि न करें, यही कर्म इस लोक, परलोक में आनन्ददायक जानें॥३६॥
विषय
इन्द्र नायक का वर्णन।
भावार्थ
हे (इन्द्र) परमेश्वर ! ( त्वावान् ) तेरे जैसा ( अन्यः) और कोई (दिव्यः न) द्यौलोक में सूर्यादि तेजस्वी पदार्थ नहीं है । और (न पार्थिवः त्वावान् अन्यः) पृथिवी के पदार्थों में भी तेरे जैसा कोई और नहीं है । ( न जातः) न अभी तक पैदा हुआ है और ( न जनिष्यते) न पैदा होगा । हे (मघवन् ) ऐश्वर्यवन् (इन्द्र) साक्षात् दर्शनीय ! परमेश्वर ! हम ( वाजिनः) ज्ञान, अन्न और ऐश्वर्य वाले होकर (अश्वायन्तः) अश्व और (गव्यन्तः) गौओं, व कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रियों की कामना या वश करते हुए (स्वा हवामहे ) तेरी स्तुति करते हैं । (२) राजा के पक्ष में- तेरे जैसा उत्तम गुणवान्, तेजस्वी कोई न राजसभा में, न पृथिवीवासी प्रजा में कोई पैदा हुआ है, न आगे पैदा होगा । हम ( वाजिनः) ऐश्वर्यवान् होकर भी (गव्यन्तः अश्वायन्तः त्वा हवामहे) गौओं और घोड़ों की इच्छा करते हुए तेरी शरण आते, तुझे राजा स्वीकार करते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः । इन्द्रो देवता । सतोबृहती । मध्यमः ॥
विषय
अश्वायन्तः गव्यन्तः
पदार्थ
१. प्रभु का उपासन करता हुआ 'वसिष्ठ' शान्त जीवनवाला बनता है, अतः 'शंयु' हो जाता है। यह ऊँचा ज्ञानी बनता है, अतः 'बार्हस्पत्यः' कहलाता है। यह कहता है कि हे प्रभो! (त्वावान्) = [त्वत्सदृश:] आप जैसा (अन्यः) = कोई और (न) = न तो (दिव्यः) = द्युलोक में होनेवाला और (न पार्थिव:) = न ही पृथ्वीलोक में होनेवाला है। आपके समान भी कोई नहीं अधिक तो हो ही कैसे सकता है? (न जातः) = न भूतकाल में आपके समान कोई हुआ, (न जनिष्यते) = न भविष्य में आपके समान कोई होगा । २. (मघवन्) = परमपूजित [पापशून्य] ऐश्वर्यवाले ! (इन्द्र) = सर्वदुःखविनाशक प्रभो! (अश्वायन्तः) = उत्तम अश्वों को, कार्यों में व्याप्त होनेवाली इन्द्रियों को चाहते हुए (वाजिनः) = शक्ति का सम्पादन करनेवाले हम (गव्यन्तः) = गौवों को, पदार्थों का निश्चय से ज्ञान देनेवाली ज्ञानेन्द्रियों को चाहते हुए आपको (हवामहे) = पुकारते हैं। आपकी आराधना से [क] हमें उत्तम सशक्त कर्मेन्द्रियाँ प्राप्त हों, [ख] हम शक्तिसम्पन्न बनें तथा [ग] विषयों का निश्चयात्मक ज्ञान देनेवली ज्ञानेन्द्रियाँ हमें प्राप्त हों।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्रभो! आप 'एकमेवाद्वितीयम्' इन शब्दों के अनुसार एक ही अद्वितीय हो । आप हमें सशक्त कर्मेन्द्रियों को शक्ति को व उत्तम ज्ञानेन्द्रियों को प्राप्त कराइए ।
मराठी (2)
भावार्थ
परमेश्वराप्रमाणे कोणी पवित्र नाही व नसणार आणि नव्हते त्यामुळे सर्व माणसांनी त्याला सोडून इतर कुणाची उपासना कधीही करू नये. हेच कर्म इहलोक व परलोकात आनंददायक आहे हे जाणावे.
विषय
ईश्वराची उपासना करणेच उचित आहे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (मघवन्) उत्तम ऐश्वर्यवान, (इन्द्र) सर्व दुःखविनाशक परमेश्वर, (वाजिनः) वेगवान (वा शीघ्र जाणण्यासाठी उत्सुक असे) (गव्यन्तः) उत्तम वाणी बोलत (अश्वायन्तः) आपली उन्नती शीघ्र इच्छिणारे आम्ही (उपासकगण) (त्वा) आपली (हवामहे) स्तुती करतो, कारण की (अन्यः) अन्य कोणी पदार्थ (वा व्यक्ती) (त्वावान्) आपल्यापेक्षा (दिव्यः) शुद्ध (न) नाही. तसेच कोणी (पार्थिवः) पृथ्वीवरील (मनुष्य, प्राणी वा पदार्थ) असा (न) (जातः) झालेला नाही तसेच (न) (जनिष्य ते) उत्पन्न होणार नाही की जो आपल्यासारखा असेल (आपण नित्य, अजर, अमर, आहात, तसा कोणीही प्राणी झाला नाही, व होणार नाही) ॥36॥
भावार्थ
भावार्थ - परमेश्वरासारखा शुद्ध कोणी झाला नाही, होणार ही नाही आणि वर्तमानकाळातही नाही. यामुळे सर्व मनुष्यांकरिता हेच हितकर आहे की त्यानी त्या निराकार ईश्वराची उपासना करावी, अन्य कोणाचीही नको. ही अशी उपासनाच या लोकात व परलोकात माणसासाठी आनंदकर होईल. ॥36॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O Bounteous Lord, none other pure like Thee, hath been or ever will be born on earth. Desiring enterprise and using nice speech, as men of might we call on Thee.
Meaning
Indra, supreme lord of power and glory, destroyer of pain and suffering, there is none other like you on earth or in heaven ever born or yet to be born in future. Blest with horse and speed, food and power, cows and wealth of holy Word, still yearning to move faster and higher, we come and offer homage and worship to you.
Translation
No other such as you are, on the earth and heaven, has been in the past or shall be in future. O bounteous resplendent Lord, we invoke you for possessing vigour, wealth and wisdom. (1)
Notes
Aśvāyanto gavyantaḥ, desirous of having cows and horses, i. e. mental and physical powers.
बंगाली (1)
विषय
ঈশ্বর এবোপাসনীয় ইত্যাহ ॥
ঈশ্বরই উপাসনা করিবার যোগ্য, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ– হে (মঘবন্) পরমপূজিত ঐশ্বর্য্যসম্পন্ন (ইন্দ্র) সকল দুঃখ বিনাশক পরমেশ্বর! (বাজিনঃ) বেগযুক্ত (গব্যন্তঃ) উত্তম বাণী বলিতে থাকিয়া (অশ্বায়ন্তঃ) শীঘ্রতা কামনাকারী আমরা (ত্বা) আপনার (হবামহে) স্তুতি করি কেননা যে কারণে কোন (অন্যঃ) অন্য পদার্থ (ন) না কেহ (ত্বাবান্) আপনার তুল্য (দিব্যঃ) শুদ্ধ (ন) না কেহ (পার্থিবঃ) পৃথিবীর উপর প্রসিদ্ধ (ন) না কেহ (জাতঃ) উৎপন্ন হইয়াছে এবং (ন) না (জনিষ্যতে) হইবে, এইজন্য আপনিই আমাদের উপাস্যদেব ॥ ৩৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ– না কেহ পরমেশ্বর তুল্য শুদ্ধ হইয়াছে, না হইবে এবং না আছে । এইজন্য সকল মনুষ্যদিগের উচিত যে, ইহাকে ত্যাগ করিয়া অন্য কাহারও উপাসনা ইহার স্থানে কদাপি করিবে না । এই কর্ম এই লোক পরলোক আনন্দদায়ক জানিবে ॥ ৩৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ন ত্বাবাঁ॑ ২ ॥ ऽ অ॒ন্যো দি॒ব্যো ন পার্থি॑বো॒ ন জা॒তো ন জ॑নিষ্যতে ।
অ॒শ্বা॒য়ন্তো॑ মঘবন্নিন্দ্র বা॒জিনো॑ গ॒ব্যন্ত॑স্ত্বা হবামহে ॥ ৩৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ন ত্বাবানিত্যস্য শংয়ুর্বার্হস্পত্য ঋষিঃ । পরমেশ্বরো দেবতা । নিচৃৎ পংক্তিশ্ছন্দঃ । পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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