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यजुर्वेद अध्याय - 27

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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 15
    ऋषिः - अग्निर्ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - स्वराडुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
    66

    स य॑क्षदस्य महि॒मान॑म॒ग्नेः सऽर्इं॑ म॒न्द्रा सु॑प्र॒यसः॑।वसु॒श्चेति॑ष्ठो वसु॒धात॑मश्च॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। य॒क्ष॒त्। अ॒स्य॒। म॒हि॒मान॑म्। अ॒ग्नेः। सः। ई॒म्। म॒न्द्रा। सु॒प्र॒यस॒ इति॑ सुऽप्र॒यसः॑। वसुः॑। चेति॑ष्ठः। व॒सु॒धात॑म॒ इति॑ वसु॒ऽधात॑मः। च॒ ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स यक्षदस्य महिमानमग्नेः सऽईम्मन्द्रा सुप्रयसः । वसुश्वेतिष्ठो वसुधातमश्च ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः। यक्षत्। अस्य। महिमानम्। अग्नेः। सः। ईम्। मन्द्रा। सुप्रयस इति सुऽप्रयसः। वसुः। चेतिष्ठः। वसुधातम इति वसुऽधातमः। च॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    स मनुष्यः सुप्रयसोऽस्याग्नेर्महिमानं यक्षत्, स वसुश्चेतिष्ठो वसुधातमश्च सन्नीं मन्द्रा यक्षत्॥१५॥

    पदार्थः

    (सः) (यक्षत्) यजेत् सङ्गच्छेत (अस्य) (महिमानम्) महत्त्वम् (अग्नेः) पावकस्य (सः) (ईम्) जलम् (मन्द्रा) आनन्दप्रदानि हवींषि (सुप्रयसः) शोभनानि प्रयांसि प्रीतान्यन्नादीनि यस्मात् तस्य (वसुः) वासयिता (चेतिष्ठः) अतिशयेन चेता संज्ञाता (वसुधातमः) योऽतिशयेन वसूनि दधाति सः (च) समुच्चये॥१५॥

    भावार्थः

    य इत्थमग्नेर्महत्त्वं विजानीयात्, सोऽतिधनी स्यात्॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (सः) वह पूर्वोक्त विद्वान् मनुष्य (सुप्रयसः) प्रीतिकारक सुन्दर अन्नादि के हेतु (अस्य) इस (अग्नेः) अग्नि के (महिमानम्) बड़प्पन को (यक्षत्) सम्यक् प्राप्त हो तथा (सः) वह (वसुः) निवास का हेतु (चेतिष्ठः) अतिशय कर जानने वाला (च) और (वसुधातमः) अत्यन्त धनों को धारण करने वाला हुआ (ईम्) जल तथा (मन्द्रा) आनन्ददायक होमने योग्य पदार्थों को प्राप्त होवे॥१५॥

    भावार्थ

    जो पुरुष इस प्रकार अग्नि के बड़प्पन को जाने, सो अतिधनी होवे॥१५॥

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    विषय

    अग्नि और वाग्मी नाम विद्वानों का वर्णन ।

    भावार्थ

    जो (वसुः) प्रजाओं को बसानेहारा, ( वसिष्ठः) सबसे अधिक ज्ञानवान्, (वसुधातमः) बसी प्रजा का धारक पोषक सबको ऐश्वर्यं देने वाला है, वह (अस्य अग्नेः) इस अग्नि, अग्रणी नामक पद के ( महिमा- नम् ) महान् सामर्थ्य को ( यक्षत् ) प्राप्त करे और (सः) वही (सुप्रयसः) उत्तम अन्नादि भोग्य पदार्थों से सम्पन्न पुरुष के (मन्द्रा) आनन्दप्रद सुखों को ( ईम् यक्षत् ) भी प्राप्त करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वायुः । स्वराड् उष्णिक् । ऋषभः ॥

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    विषय

    चेतिष्ठ बनना

    पदार्थ

    १. (सः) = यह गत मन्त्र में वर्णित साधनों का प्रयोग करके प्रभु के साथ अपना सम्पर्क स्थापित करनेवाला व्यक्ति (अस्य अग्ने:) = इस सर्वाग्रणी, सबकी उन्नतियों के साधक प्रभु की (महिमानम्) = महिमा को (यक्षत्) = अपने साथ संगत करता है। प्रभु सम्पर्क से यह उपासक भी प्रभु जैसा बन जाता है। २. (सः) = वह (ईम्) = निश्चय से (सुप्रयस) [ प्रयस् - अन्न] = उत्तम सात्त्विक अन्न का सेवन करनेवाले की (मन्द्रा) = हर्षजनक वृत्तियों को (यक्षत्) = अपने साथ संगत करता है। सात्त्विक अन्न के सेवन से उसके चित्तम में सदा आह्लादमयी वृत्ति बनी रहती है। राजसी भोजन उसके मन को राग-द्वेष से ही भरेगा और तामसी अन्न के सेवन के परिणामस्वरूप उसे आलस्य, प्रमाद व निद्रा के रोग घेरे रहेंगे। ३. इस प्रकार यह प्रभु- सम्पर्क से प्रभु की महिमा को अपने साथ जोड़नेवाला बनता है और सात्त्विक अन्न के सेवन से मानस प्रसाद को पाने के लिए यनशील होता है, परिणामतः (वसुः) = अत्यन्त उत्तम निवासवाला होता है (चेतिष्ठ:) = अधिक-से-अधिक चेतनावाला होता है, (च) = और [धनानाम् वसुधातमः दातृतम: - उ० ] धनों का अतिशयेन दान देनेवाला होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु- सम्पर्क से हम प्रभु की महिमा को प्राप्त करें। सात्त्विक अन्न के सेवन से मानस आह्लाद का लाभ करें। उत्तम निवासवाले, ज्ञानी व धनों का खुब दान करनेवाले हों।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे पुरुष अग्नीचे महत्त्व जाणतात ते धनवान होतात.

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    विषय

    पुन्हा, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (सः) तो पूर्व मंत्रात वर्णित विद्वान (सुप्रयसः) सुंदर प्रिय अन्नादीच्या प्राप्तीसाठी (अस्य) या (अग्नेः) अग्नीच्या (महिमानम्) मोठेपणाला (त्यापासून मिळणार्‍या लाभासाठी) (यक्षत्) सम्यक प्रकारे प्राप्त करो (त्याचे यत्न यशस्वी व्हावेत, अशी आमची कामना आहे) तसेच (सः) तो विद्वान (वसुः) निवासाचे कारण (घर आदीच्या निर्माणाचे तंत्र (चेतिष्ठाः) पूर्णपणे जाणणारा (च) आणि (वसुधातमः) अत्यंत धनसंपत्ती बाळगणारा होऊन (ईम्) जल आणि (मन्द्रा) आनंदकर हवनीय पदार्थ प्राप्त करणारा होवो (अशी आमची कामना आहे. आपल्या ज्ञान प्राप्तीत तो यशस्वी झाला, तर जल, अग्नी, वायू आदीचे लाभ आम्हालाही मिळू शकतील) ॥15॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जो माणूस अग्नीचे मोठेपण वा महत्व पूर्णपणे जाणतो, तो अत्यंत धनवान होतो. ॥15॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    That learned person, daintily fed, realises the greatness of this fire. He is the best wealth-giver, and wisest protector. He gets water and enjoyable oblations.

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    Meaning

    Let the high-priest, seated and seating others in yajna, conscientious and richest in yajna materials, worship the grandeur of generous Agni and offer fragrant exhilarating oblations into the fire. And he would know and feel and enjoy the gift of bliss.

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    Translation

    Let the sacrificer pay homage to the greatness of this adorable Lord, as He is the provider of pleasing foods; He is the real wealth; He is the awakener; and He is the greatest bestower of wealth. (1)

    Notes

    Vasudhātamaḥ, the greatest bestower of wealth. वसूनां धनानां धातमः दातृतमः । Cetişthaḥ, अतिशयेन चेतयिता, greatest awakener.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–(সঃ) তিনি পূর্বোক্ত বিদ্বান্ মনুষ্য (সুপ্রয়সঃ) প্রীতিকারক সুন্দর অন্নাদির হেতু (অস্য) এই (অগ্নেঃ) অগ্নির (মহিমান্) মহিমাকে (য়ক্ষৎ) সম্যক্ প্রাপ্ত হউন তথা (সঃ) তিনি (বসুঃ) নিবাসের হেতু (চেতিষ্ঠঃ) অতিশয় করিয়া জ্ঞাতা (চ) এবং (বসুধাতমঃ) অত্যন্ত ধন ধারণকারী হইয়া (ঈম্) জল তথা (মন্দ্রা) আনন্দদায়ক হোম করিবার যোগ্য পদার্থসকলকে প্রাপ্ত হউন ॥ ১৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যে পুরুষ এই প্রকার অগ্নির মহিমাকে জানিবে সে অত্যন্ত ধনী হইবে ॥ ১৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    স য়॑ক্ষদস্য মহি॒মান॑ম॒গ্নেঃ সऽর্হÙং॑ ম॒ন্দ্রা সু॑প্র॒য়সঃ॑ ।
    বসু॒শ্চেতি॑ষ্ঠো বসু॒ধাত॑মশ্চ ॥ ১৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    স য়ক্ষদিত্যস্যাগ্নির্ঋষিঃ । বায়ুর্দেবতা । স্বরাডুষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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