Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 27

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 31
    ऋषिः - अजमीढ ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    155

    वा॒युर॑ग्रे॒गा य॑ज्ञ॒प्रीः सा॒कं ग॒न्मन॑सा य॒ज्ञम्।शि॒वो नि॒युद्भिः॑ शि॒वाभिः॑॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒युः। अ॒ग्रे॒गाऽइत्य॑ग्रे॒ऽगाः। य॒ज्ञ॒प्रीरिति॑ यज्ञ॒ऽप्रीः। सा॒कम्। ग॒न्। मन॑सा। य॒ज्ञम्। शि॒वः। नि॒युद्भि॒रिति॑ नि॒युत्ऽभिः॑। शि॒वाभिः॑ ॥३१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायुरग्रेगा यज्ञप्रीः साकङ्गन्मनसा यज्ञम् । शिवो नियुद्भिः शिवाभिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वायुः। अग्रेगाऽइत्यग्रेऽगाः। यज्ञप्रीरिति यज्ञऽप्रीः। साकम्। गन्। मनसा। यज्ञम्। शिवः। नियुद्भिरिति नियुत्ऽभिः। शिवाभिः॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 31
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्भिः किं कार्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे विद्वन्! यथा वायुर्नियुद्भिः शिवाभिर्यज्ञं गन् तथा शिवोऽग्रेगा यज्ञप्रीः संस्त्वं मनसा साकं यज्ञमायाहि॥३१॥

    पदार्थः

    (वायुः) पवनः (अग्रेगाः) योऽग्रे गच्छति सः (यज्ञप्रीः) यो यज्ञं प्राति पूरयति सः (साकम्) सह (गन्) गच्छति (मनसा) (यज्ञम्) (शिवः) मङ्गलमयः (नियुद्भिः) निश्चिताभिः क्रियाभिः (शिवाभिः) मङ्गलकारिणीभिः॥३१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अत्रायाहीति पदं पूर्वमन्त्रादनुवर्त्तते। यथा वायुरनेकैः पदार्थैस्सह गच्छत्यागच्छति तथा विद्वांसो धर्म्याणि कर्माणि विज्ञानेन प्राप्नुवन्तु॥३१॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वन्! जैसे (वायुः) पवन (नियुद्भिः) निश्चित (शिवाभिः) मङ्गलकारक क्रियाओं से (यज्ञम्) यज्ञ को (गन्) प्राप्त होता है, वैसे (शिवः) मङ्गलस्वरूप (अग्रेगाः) अग्रगामी (यज्ञप्रीः) यज्ञ को पूर्ण करने हारे हुए आप (मनसा) मन की वृत्ति के (साकम्) साथ यज्ञ को प्राप्त हूजिये॥३१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। इस मन्त्र में (आ, याहि) इस पद की अनुवृत्ति पूर्व मन्त्र से आती है। जैसे वायु अनेक पदार्थों के साथ जाता-आता है, वैसे विद्वान् लोग धर्मयुक्त कर्मों को विज्ञान से प्राप्त होवें॥३१॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    नियुत्वान् वायु, सेनापति का वर्णन ।

    भावार्थ

    तू (अग्रेगाः) सबके आगे चलनेहारा, अग्रणी और (शिवः) कल्याणकारी होकर ( यज्ञप्रीः ) राष्ट्र को प्रसन्न अनुरञ्जित करके स्वयं (वायुः) वायु के समान बलवान् होकर (मनसा) अपने चित्त से (शिवाभि: नियुद्भिः साकम् ) कल्याणकारिणी, नियुक्त सेनाओं या शक्तियों और नियुक्त पुरुषों सहित (यज्ञम् आ गहि) तू यज्ञ अर्थात् व्यवस्थित राष्ट्र या राष्ट्रपति के माननीय पद को प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अजमीढः । वायुः । गायत्री । षड्जः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुरुमीढ का प्रभु-स्तवन

    पदार्थ

    १. (वायुः) = वे प्रभु सम्पूर्ण गति का स्रोत हैं । २. (अग्रेगाः) = वे प्रभु हमें निरन्तर आगे और आगे ले चलनेवाले हैं। हमारी सब प्रकार की उन्नति प्रभुकृपा से ही तो सिद्ध होती है । ३. (यज्ञप्री:) = यज्ञों के द्वारा वे प्रभु प्रीणित होते हैं। हम यज्ञशील बनकर प्रभु की कृपा के पात्र बनते हैं। ४. वे प्रभु (मनसा साकम्) = मन के साथ (यज्ञम् गत्) = यज्ञ को प्राप्त हों, अर्थात् जब हम यज्ञ करें तब प्रभुकृपा से हमें ऐसा उत्तम मन प्राप्त हो कि हमारी यह यज्ञिय वृत्ति और बढ़ती जाए। ५. वे प्रभु (शिवाभिः नियुद्भिः) = सदा शुभ कार्यों में प्रवृत्त होनेवाले इन्द्रियाश्वों से (शिवः) = हमारा कल्याण करेनवाले हैं। इन्द्रियों की उत्तमता में ही सुख है, सु+ख ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की आराधना के लिए हम यज्ञशील हों। 'यज्ञप्री:' प्रभु को हम यज्ञ से ही आराधित कर सकेंगे।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या मंत्रात (आ याहि) या पदाची अनुवृत्ती पूर्वीच्या मंत्रातून झालेली आहे. जसा वायूचा अनेक पदार्थांबरोबर संयोग व वियोग होतो तसे विद्वान लोकांनी विज्ञानाच्या साह्याने धर्मयुक्त कर्म करावे.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विद्वानांनी काय केले पाहिजे, याविषयी

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे विद्वान, जसे (वायुः) हे पवन, (नियुद्भिः) आपल्या सुनिश्‍चित अशा (शिवाभिः) मंगलकारी कार्यांद्वारे (यज्ञम्) यज्ञाच्या प्रसंगी (गन्) येतो (यज्ञामुळे उष्णतेमुळे वायूचे गमनागमन क्रिया वाढते) तद्वत (शिवः) कल्याणकारी (अग्रेग्राः) अग्रगामी आपण (यज्ञपीः) यज्ञाच्या पुर्णतेसाठी (मनसा) खर्‍या भावने (साकम्) सह यज्ञाच्या वेळी इथे या (अशी आम्हा याज्ञिकांची प्रार्थना आहे) ॥31॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. या मंत्रात (आ. याहि) हे शब्द नाहीत, पण या दोन शब्दांची अनुवृत्ती मागील मंत्रातून घेण्यात आली आहे. जसा वायू अनेक पदार्थांसह यत्र-तत्र जातो-येतो, त्याप्रमाणे विद्वानांनी धर्ममय कर्म वा कार्यक्रमात जावे आपल्या ज्ञान-विज्ञानाचा लाभ जनांस करून द्यावा. ॥31॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person, just as air, with definite propitious motions, comes to the sacrifice, so with noble intentions, as a leader, and nice performer of the yajna, come thou to the yajnashala with a concentrated mind.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Vayu, leader ever in the forefront of the noble activities of life, lover of yajna, come with your heart and soul to the yajna. Blissful you are, come with all your sagely acts and blessed powers.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the wind divine, moving in the forefront, pleased with sacrifices, the auspicious one, come to our sacrifice with a happy frame of mind conveyed by propitious actions. (1)

    Notes

    Niyudbhiḥ śiväbhiḥ, by propitious actions; also by good mares. Yajnaprih, one who is pleased with sacrifice.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    অথ বিদ্বদ্ভিঃ কিং কার্য়মিত্যাহ ॥
    এখন বিদ্বান্দিগকেকী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ– হে বিদ্বন্! যেমন (বায়ুঃ) পবন (নিয়ুদ্ভিঃ) নিশ্চিত (শিবাভিঃ) মঙ্গলকারক ক্রিয়াগুলির দ্বারা (য়জ্ঞম্) যজ্ঞকে (গন্) প্রাপ্ত হইয়া থাকে সেইরূপ (শিবঃ) মঙ্গলস্বরূপ (অগ্রেগাঃ) অগ্রগামী (য়জ্ঞপ্রীঃ) যজ্ঞকে পূর্ণ সম্পাদনকারী আপনি (মনসা) মনের বৃত্তি (সাকম্) সহ যজ্ঞকে প্রাপ্ত হউন ॥ ৩১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । এই মন্ত্রে (আ, য়াহি) এই পদের অনুবৃত্তি পূর্ব মন্ত্র হইতে আইসে, যেমন বায়ু অনেক পদার্থ সহ আসা-যাওয়া করে তদ্রূপ বিদ্বান্গণ ধর্মযুক্ত কর্মকে বিজ্ঞান দ্বারা প্রাপ্ত হউন ॥ ৩১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    বা॒য়ুর॑গ্রে॒গা য়॑জ্ঞ॒প্রীঃ সা॒কং গ॒ন্মন॑সা য়॒জ্ঞম্ ।
    শি॒বো নি॒য়ুদ্ভিঃ॑ শি॒বাভিঃ॑ ॥ ৩১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বায়ুরিত্যস্যাজমীঢ ঋষিঃ । বায়ুর্দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top