यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 3
ऋषिः - अग्निर्ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - विराट् त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
97
त्वाम॑ग्ने वृणते ब्राह्म॒णाऽ इ॒मे शि॒वोऽ अ॑ग्ने सं॒वर॑णे भवा नः।स॒प॒त्न॒हा नो॑ अभिमाति॒जिच्च॒ स्वे गये॑ जागृ॒ह्यप्र॑युच्छन्॥३॥
स्वर सहित पद पाठत्वाम्। अ॒ग्ने॒। वृ॒ण॒ते॒। ब्रा॒ह्म॒णाः। इ॒मे। शि॒वः। अ॒ग्ने॒। सं॒वर॑ण॒ इति॑ सं॒ऽवर॑णे। भ॒व॒। नः॒ ॥ स॒प॒त्न॒हेति॑ सपत्न॒ऽहा। नः॒। अ॒भि॒मा॒ति॒जिदित्य॑भिमाति॒ऽजित्। च॒। स्वे। गये॑। जा॒गृहि॒। अप्र॑युच्छ॒न्नित्यप्र॑ऽयुच्छन् ॥३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वामग्ने वृणते ब्राह्मणाऽइमे शिवोऽअग्ने सँवरणे भवा नः । सपत्नहा नोऽअभिमातिजिच्च स्वे गय जागृह्यप्रयुच्छन् ॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वाम्। अग्ने। वृणते। ब्राह्मणाः। इमे। शिवः। अग्ने। संवरण इति संऽवरणे। भव। नः॥ सपत्नहेति सपत्नऽहा। नः। अभिमातिजिदित्यभिमातिऽजित्। च। स्वे। गये। जागृहि। अप्रयुच्छन्नित्यप्रऽयुच्छन्॥३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
जिज्ञासुभिः किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
अग्ने पावकवद्वर्त्तमान य इमे ब्राह्मणास्त्वां वृणते तान् प्रति त्वं संवरणे शिवो भव नोऽस्माकं सपत्नहा भव। हे अग्ने! अप्रयुच्छन्नभिमातिजिच्च त्वं स्वे गये जागृहि, नोऽस्मांश्च जागृतान् कुरु॥३॥
पदार्थः
(त्वाम्) (अग्ने) विद्वन् (वृणते) स्वीकुर्वन्ति (ब्राह्मणाः) ब्रह्मविदः (इमे) (शिवः) मङ्गलकारी (अग्ने) पावकवत् प्रकाशमान (संवरणे) सम्यक् स्वीकरणे (भव) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ॰६.३.१३५] इति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (सपत्नहा) शत्रुदोषहन्ता (नः) अस्मान् (अभिमातिजित्) अभिमानजित् (च) (स्वे) स्वकीये (गये) गृहे (जागृहि) (अप्रयुच्छन्) प्रमादमकुर्वन्॥३॥
भावार्थः
यथा विद्वांसो ब्रह्म स्वीकृत्य मङ्गलमाप्नुवन्ति दोषान् घ्नन्ति तथा जिज्ञासवो ब्रह्मविदः प्राप्य मङ्गलाचरणाः सन्तः कुशीलतां घ्नन्त्वालस्यं विहाय विद्यामुन्नयन्तु च॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
जिज्ञासु लोगों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (अग्ने) तेजस्वी विद्वन्! अग्नि के समान वर्तमान जो (इमे) ये (ब्राह्मणाः) ब्रह्मवेत्ता जन (त्वाम्) आप को (वृणते) स्वीकार करते हैं, उन के प्रति आप (संवरणे) सम्यक् स्वीकार करने में (शिवः) मङ्गलकारी (भव) हूजिये (नः) हमारे (सपत्नहा) शत्रुओं के दोषों के हननकर्त्ता हूजिये। हे (अग्ने) अग्निवत् प्रकाशमान! (अप्रयुच्छन्) प्रमाद नहीं करते हुए (च) और (अभिमातिजित्) अभिमान को जीतने वाले आप (स्वे) अपने (गये) घर में (जागृहि) जागो अर्थात् गृहकार्य करने में निद्रा आलस्यादि को छोड़ो (नः) हम को शीघ्र चेतन करो॥३।
भावार्थ
जैसे विद्वान् लोग ब्रह्म को स्वीकार करके आनन्द मङ्गल को प्राप्त होते और दोषों को निर्मूल नष्ट कर देते हैं, वैसे जिज्ञासु लोग ब्रह्मवेत्ता विद्वानों को प्राप्त हो के आनन्द मङ्गल का आचरण करते हुए बुरे स्वभावों के मूल को नष्ट करें और आलस्य को छोड़ के विद्या की उन्नति किया करें॥३॥
विषय
अग्नि नाम विद्वान् नायक के कर्तव्य और लक्षण ।
भावार्थ
हे (अग्ने) राजन् ! तेजस्वी पुरुष ! ( त्वाम् ) तुझको ( इमे ब्राह्मणाः) ये ब्रह्म के जानने हारे विद्वान् ब्राह्मण लोग (वृणते) वरण करते हैं, हे (अग्ने) अग्ने ! तेजस्विन् ! तू (नः) हमारे (संवरणे) वरण कर लेने पर (शिवः) हमें कल्याण और सुख देने हारा (भव) हो । और (सपलहा ) शत्रुओं का नाशक और (अभिमाति - जित् च) गर्वीले, दुष्ट पुरुषों को विजय - करने हारा होकर (स्वे गये) अपने गृह और विजित राष्ट्र में ( अप्रयुच्छन् ) प्रमाद न करता हुआ (जागृहि ) सदा सावधान हो जगता रह ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्निः । विराट् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
गृह में सतत जागरण
पदार्थ
१. हे (अग्ने) = प्रगतिशील जीव ! (इमे ब्राह्मण:) = ये ब्राह्मण (त्वा वृणते) = तेरा वरण करते हैं, अर्थात् 'कौन व्यक्ति हमारे जाने योग्य हैं?' ऐसा विचार होने पर ये ब्राह्मण लोग तेरा वरण करते हैं। तुझे इस योग्य समझते हैं कि तेरे अन्न को वे स्वीकार कर लें। २. (संवरणे) = इस संवरण के होने पर, अर्थात् जब ये ब्राह्मण तेरे घर पर आने-जानेवालें हों तब हे (अग्ने) = अग्नि के समान प्रकाशमय जीवनवाले! तू (नः) = हमारे लिए (शिवः) = कल्याण करनेवाला (भव) = हो । उत्तम संसर्ग तुझे अधिक प्रकाशमय जीवनवाला बनाये और तू लोगों का और अधिक कल्याण करनेवला हो । ३. तू (नः) = हमारे (सपत्नहा) = शत्रुओं का नाश करनेवाला बन। एक ज्ञानी, प्रगतिशील पुरुष ने अपने काम-क्रोध आदि शत्रुओं को जीतकर अपने सम्पर्क में आनेवालों के काम-क्रोधादि को, ज्ञान के प्रकाश के द्वारा नष्ट करने के लिए यत्नशील होना है, परन्तु इस सारे कार्य को करते हुए इसे (अभिमातिजित् च) = अभिमान को निश्चय से जीतनेवाला बनना है। इसके जीवन में अभिमान होगा, तो इसकी अपनी सारी उन्नति समाप्त हो जाएगी, औरों का क्या कल्याण करेगा ? ४. अत: अग्ने ! तुझे चाहिए कि (स्वे गये जागृहि) = तू अपने घर में सदा जागता रहा । 'हमारे शरीर में रोग न आएँ, मन में वासनाएँ न आएँ, इसका एक ही उपाय है और वह यह कि हम अपने कर्त्तव्य व उद्देश्य का स्मरण करते हुए (अप्रयुच्छन्) = किसी भी प्रकार का प्रमाद न करते हुए अपने जीवनयात्रा के मार्ग पर आगे और आगे बढ़ते ही चलें।
भावार्थ
भावार्थ- हम ब्राह्मणों के लिए वरणीय बनें। ब्राह्मणों से वृत होकर सबका कल्याण करनेवाले हों। काम-क्रोधादि को नष्ट करें, अभिमान को जीतें और इस शरीररूप गृह में सदा सावधान होकर जागरित रहें।
मराठी (2)
भावार्थ
जसे विद्वान लोक मुळापासून दोष नष्ट करतात व ब्रह्माची उपासना करून आनंदी होतात आणि कल्याण करून घेतात. तसे जिज्ञासू लोकांनी ब्रह्मवेत्ते असलेल्या विद्वानांच्या संगतीने आनंदी व्हावे व कल्याणकारी आचरण करावे. वाईट स्वभाव मुळापासून दूर करावा आणि आळस सोडून विद्येचा प्रसार करावा.
विषय
जिज्ञासूजनांनी काय करावे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (अग्ने) तेजस्वी विद्वान, अग्नीप्रमाणे तेजस्वी असलेले (इमे) हे जे (ब्राह्मणाः) ब्रह्मवेत्ताजन (त्वाम्) आपणाला (वृणते) आपला (प्रमुख ब्रह्मवेक्ता) मानतात, (त्यांनी दिलेले हे बहुमान) (संवरणे) स्वीकारण्यात आपण (शिवः) कल्याणकारी (भव) व्हा. (प्रमुखत्व मान्य करा) आणि (नः) आमच्या (सपत्नहा) शत्रूच्या दोषांचे नाश करणारे व्हा. हे (अग्ने) अग्नीप्रमाणे तेजोमय विद्वान, आपण (अप्रयुच्छन्) प्रमाद न करता (च) आणि (अभिमातिजित्) अभिमानावर विजय मिळविलेले आपण (त्ये) स्वतःच्या (गये) घरात (जागृहि) जागृत रहा म्हणजे गृहकार्यें करण्यात सावध व तत्पर रहा, निद्रा वा आलस्य यामधे वेळ वाया घालवू नका. (नः) आणि आम्हा (जिज्ञासू प्रजाजनांना) देखील चैतन्यमय ठेवा. ॥3॥
भावार्थ
भावार्थ - ज्याप्रमाणे विद्वज्जन ब्रह्माचा स्वीकार करून आनंद-मंगल प्राप्त करतात आणि दोषांना निर्मूळ करतात त्याप्रमाणे जिज्ञासूजनांनी ब्रह्मवेत्ताजनांजवळ जाऊन स्वतः आनंद-मंगल साजरे करावे, स्वच्छ आचरण ठेवावे, दुष्ट स्वभाव-प्रवृत्तींचा त्याग करावा आणि आळस त्यागून विद्येविषयी उन्नती साधावी ॥3॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned person, these masters of the Vedas elect thee as their leader. Be thou propitious unto them in this election. Remove thou the errors of our foes. O learned person being free from sloth and pride, watch in thy house, and keep us also conscious.
Meaning
Agni, brilliant lord of light and knowledge, these Brahmanas, dedicated scholars of divinity, choose and elect you as guide and leader. Agni, in this position of eminence, be good to us. Destroyer of negativities, subduer of the proud and insidious, you are watchful, awake and alert in your own home. Keep us too awake, alert and ever watchful.
Translation
O adorable leader, these intellectuals, present here, choose you. May you be auspicious to us in this unanimous choice of ours. Slayer of our rivals and conqueror of our foes, may you be always awake and alert in your place with ceaseless care. (1)
Notes
Samvarane, in this choice of ours. Aprayucchan, अप्रमाद्यन्,without negligence; always aler. . Sapatna, enemy; one who wants to share other's wife. Abhimätih, enemy; one who wants to overwhelm others.
बंगाली (1)
विषय
জিজ্ঞাসুভিঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
জিজ্ঞাসু ব্যক্তিদেরকে কী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (অগ্নে) তেজস্বী বিদ্বান্! অগ্নির সমান বর্ত্তমান যে (ইমে) এই সব (ব্রাহ্মণাঃ) ব্রহ্মবেত্তাগণ (ত্বাম্) আপনাকে (বৃণতে) স্বীকার করেন তাহাদের প্রতি আপনি (সংবরণে) সম্যক্ স্বীকার করিতে (শিবঃ) মঙ্গলকারী (ভব) হউন (নঃ) আমাদের (সপত্নহা) শত্রু দোষ হননকর্ত্তা হউন । হে (অগ্নে) অগ্নিবৎ প্রকাশমান্! (অপ্রয়ুচ্ছন্) প্রমাদ না করিয়া (চ) এবং (অভিমাতিজিৎ) অভিমানজিৎ আপনি (স্বে) নিজ (গয়ে) গৃহে (জাগৃহি) জাগুন অর্থাৎ গৃহকার্য্য করিতে নিদ্রা আলস্যাদি ত্যাগ করুন (নঃ) আমাদিগকে শীঘ্র চেতন করুন ॥ ৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যেমন বিদ্বান্গণ ব্রহ্মকে স্বীকার করিয়া আনন্দ মঙ্গল প্রাপ্ত হন্ এবং দোষগুলিকে নির্মূল নষ্ট করিয়া দেন তদ্রূপ বিদ্বান্গণ ব্রহ্মবেত্তা বিদ্বান্দিগকে প্রাপ্ত হইয়া আনন্দ মঙ্গলের আচরণ করিয়া মন্দ স্বভাবের মূল নষ্ট করিবেন এবং আলস্য পরিত্যাগ করিয়া বিদ্যার উন্নতি করিতে থাকুন ॥ ৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ত্বাম॑গ্নে বৃণতে ব্রাহ্ম॒ণাऽ ই॒মে শি॒বোऽ অ॑গ্নে সং॒বর॑ণে ভবা নঃ ।
স॒প॒ত্ন॒হা নো॑ অভিমাতি॒জিচ্চ॒ স্বে গয়ে॑ জাগৃ॒হ্যপ্র॑য়ুচ্ছন্ ॥ ৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ত্বামিত্যস্যাগ্নির্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । বিরাট্ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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