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यजुर्वेद अध्याय - 27

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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 40
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
    82

    कस्त्वा॑ स॒त्यो मदा॑नां॒ मꣳहि॑ष्ठो मत्स॒दन्ध॑सः।दृ॒ढा चि॑दा॒रुजे॒ वसु॑॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः। त्वा॒। स॒त्यः। मदा॑नाम्। मꣳहि॑ष्ठः। म॒त्स॒त्। अन्ध॑सः। दृ॒ढा। चि॒त्। आ॒रुज॒ऽइत्या॒ऽरुजे॑। वसु॑ ॥४० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कस्त्वा सत्यो मदानाँ मँहिष्ठो मत्सदन्धसः । दृढा चिदारुजे वसु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कः। त्वा। सत्यः। मदानाम्। मꣳहिष्ठः। मत्सत्। अन्धसः। दृढा। चित्। आरुजऽइत्याऽरुजे। वसु॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 40
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे विद्वन्! यः कः सत्यो मंहिष्ठो विद्वांस्त्वान्धसो मदानां मध्ये मत्सदारुजे। औषधानि चिदिव दृढा वसु संचिनुयात् सोऽस्माभिः पूजनीयः॥४०॥

    पदार्थः

    (कः) सुखप्रदः (त्वा) त्वाम् (सत्यः) सत्सु साधु (मदानाम्) हर्षाणाम् (मंहिष्ठः) अतिशयेन महत्त्वयुक्तः (मत्सत्) आनन्दयेत् (अन्धसः) अन्नात् (दृढा) दृढानि (चित्) इव (आरुजे) समन्ताद् रोगाय (वसु) वसूनि द्रव्याणि। अत्र सुपां सुलुग् [अ॰७.१.३९] इति जसो लुक्॥४०॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यः सत्यप्रिय आनन्दप्रदो विद्वान् परोपकाराय रोगनिवारणायौषधमिव वस्तूनि संचिनुयात् स एव सत्कारमर्हेत्॥४०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वन्! जो (कः) सुखदाता (सत्यः) श्रेष्ठों में उत्तम (मंहिष्ठः) अति महत्त्व युक्त विद्वान् (त्वा) आप को (अन्धसः) अन्न से हुए (मदानाम्) आनन्दों में (मत्सत्) प्रसन्न करे (आरुजे) अतिरोग के अर्थ ओषधियों को जैसे इकट्ठा करे (चित्) वैसे (दृढ़ा) दृढ़ (वसु) द्रव्यों का सञ्चय करे, सो हम को सत्कार के योग्य होवे॥४०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सत्य में प्रीति रखने और आनन्द देने वाला विद्वान् परोपकार के लिये रोगनिवारणार्थ ओषधियों के तुल्य वस्तुओं का सञ्चय करे, वही सत्कार के योग्य होवे॥४०॥

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    विषय

    इन्द्र नायक का वर्णन।

    भावार्थ

    हे राजन् ! सेनापते ! ( मदानाम् ) इर्षजनक पदार्थों में से (मंहिष्ठः) सब से उत्तम ( अन्धसः) भोग्य योग्य राष्ट्र का (कः) कौनसा अंश या स्वरूप ( त्वा मत्सत् ) तुझे सब से अधिक सुखी करता है । जिससे (दृढा चित् ) दृढ (वसु) वास योग्य पुरों को भी (आरुजे) तोड़ने को समर्थ करता है, वही अंश मुझे भी प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः । इन्द्रो देवता । निचृद् गायत्री । षड्जः ॥

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    विषय

    मदानां मंहिष्ठः

    पदार्थ

    १. वामदेव अपने को ही सम्बोधन करते हुए कहते हैं (त्वा) = तुझे (कः) = अनिर्वचनीय व आनन्दमय प्रभु, (सत्यः) = जो सत्यस्वरूप हैं तथा (मदानाम्) = ज्ञानानन्दों व उल्लासों के (मंहिष्ठ:) = [दातृतम] अधिक-से-अधिक देनेवाले हैं, (अन्धसः) = आध्यायनीय सोम के द्वारा (मत्सत्) = आनन्दित करते हैं। आनन्द प्राप्ति का कारण मन की शुद्धता है 'आनन्द व मनःप्रसाद' पर्यायवाची से हो गये हैं। एवं मन की शुद्धि तो सत्य से होती है और शरीरशुद्धि के लिए सोम की रक्षा आवश्यक है। मन व शरीर की शुद्धि होने पर आनन्द प्राप्ति का न होना असम्भव है। संक्षेप में यह आवश्यक है कि हम [क] सत्य बोलें [ख] प्रसन्न रहें [ग] सोम की रक्षा द्वारा स्वस्थ शरीरवाले बनें। २. हे प्रभो! आप दृढा (चित् वसु) = बड़े दृढ़ व कठोर भी कनक [स्वर्ण] आदि धनों को (आरुजे) = छिन्न-भिन्न कर देते हो, उन्हें चूर्ण करके सबमें बाँटनेवाले होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- वे अनिर्वचनीय, आनन्दमय, सत्यस्वरूप, सर्वाधिक आनन्द के दाता प्रभु सोमरक्षा के द्वारा हमारे जीवन को उल्लास से युक्त करते हैं। वे कठोर स्वर्णादि धनों को बाँट-बाँटकर सबके लिए देते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो विद्वान सत्यावर प्रेम करणारा, आनंद देणारा व परोपकार करून रोग निवारणासाठी औषधांचा संचय करणारा असतो तोच सत्कार करण्यायोग्य असतो.

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    विषय

    पुनश्‍च, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ- हे विद्वान, (क) सुखदाता आणि (अत्यः) श्रेष्ठात सर्वश्रेष्ठ असा जो (मंहिष्ठाः) अति महत्वपूर्ण महान विद्वान आहे, तो (त्वा) तुम्हाला (अन्धसः) अन्न-धान्याची द्वारे (मदानाम्) आनंदात (मत्सत्) मग्न करो (आपणास योग्य अन्नादी देवो) तसेच (आरूजे) दुःसाध्य रोगांच्या निवारणासाठी औषधींचा संचय करो. (चित) तसेच तो आपणांस (दृढा) वा स्थायी द्रव्यादी देवो. असा विद्वान आमच्यासाठी ही सम्माननीय व सत्करणीय असेल ॥40॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. जो सत्याचा प्रेमी, आनंददायक विद्वान परोपकाराकरिता रोगनाशक औषधींचा संचय करतो, तो समाजाद्वारे सत्कार करण्यास वा घेण्यास पात्र असतो ॥40॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person, the giver of happiness, lover of truth, highly dignified, he, who pleases thee with delightful foods ; collects medicines for the elimination of disease, and amasses wealth, deserves our adoration.

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    Meaning

    Indra, the real soothing, genuine and most powerful essence of efficacious soma and herbal food which relieves and exhilarates you, that surely is the valuable and unfailing panacea for the cure of ill-health.

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    Translation

    What genuine and most earnest devotional offerings like nourishing food, would inspirit you to win over evil thoughts and procure formidable treasures? (1)

    Notes

    Satyaḥ, genuine; true. Madänām mamhişthaḥ, most potent intoxicant. Sat andhasaḥ, of good and nourishing food. Dṛḍhā, formidable; strongly guarded.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ– হে বিদ্বন্! যিনি (কঃ) সুখদাতা (সত্যঃ) শ্রেষ্ঠদিগের মধ্যে উত্তম (মংহিষ্ঠঃ) অতিশয় মহত্ত্বযুক্ত বিদ্বান্ (ত্বা) আপনাকে (অন্ধসঃ) অন্ন হইতে উৎপন্ন (মদানাম্) আনন্দগুলির মধ্যে (মৎসৎ) প্রসন্ন করুন (আরুজে) অতিরোগের জন্য ওষধিসকলকে যেমন সংগ্রহ করিবেন (চিৎ) তদ্রূপ (দৃঢা) দৃঢ় (বসু) দ্রব্যদিগের সঞ্চয় করুন সুতরাং আমাদিগের সৎকারের যোগ্য হউন ॥ ৪০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যিনি সত্যপ্রিয় আনন্দপ্রদ বিদ্বান্ পরোপকার হেতু রোগনিবারণার্থ ওষধিসকলের তুল্য বস্তুদিগের সঞ্চয় করিবেন তিনি সৎকারের যোগ্য হইবেন ॥ ৪০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    কস্ত্বা॑ স॒ত্যো মদা॑নাং॒ মꣳহি॑ষ্ঠো মৎস॒দন্ধ॑সঃ ।
    দৃ॒ঢা চি॑দা॒রুজে॒ বসু॑ ॥ ৪০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    কস্ত্বেত্যস্য বামদেব ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । নিচৃদ্ গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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