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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 15
    ऋषिः - नारायणः देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
    84

    को अ॑स्मै॒ वासः॒ पर्य॑दधा॒त्को अ॒स्यायु॑रकल्पयत्। बलं॒ को अ॑स्मै॒ प्राय॑च्छ॒त्को अ॑स्याकल्पयज्ज॒वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क: । अ॒स्मै॒ । वास॑: । पर‍ि॑ । अ॒द॒धा॒त् । क: । अ॒स्य॒ । आयु॑: । अ॒क॒ल्प॒य॒त् । बल॑म् । क: । अ॒स्मै॒ । प्र । अ॒य॒च्छ॒त् । क: । अ॒स्य॒ । अ॒क॒ल्प॒य॒त् । ज॒वम् ॥२.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को अस्मै वासः पर्यदधात्को अस्यायुरकल्पयत्। बलं को अस्मै प्रायच्छत्को अस्याकल्पयज्जवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क: । अस्मै । वास: । पर‍ि । अदधात् । क: । अस्य । आयु: । अकल्पयत् । बलम् । क: । अस्मै । प्र । अयच्छत् । क: । अस्य । अकल्पयत् । जवम् ॥२.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (कः) विधाता [परमेश्वर] ने (अस्मै) इस [मनुष्य] को (वासः) निवासस्थान (परि) सब ओर से (अदधात्) दिया है, (कः) विधाता ने (अस्य) इस [मनुष्य] का (आयुः) आयु [जीवनकाल] (अकल्पयत्) बनाया है। (कः) विधाता ने (अस्मै) इस [मनुष्य] को (बलम्) बल (प्र अयच्छत्) दिया है, (कः) विधाता ने (अस्य) इस [मनुष्य] के (जवम्) वेग को (अकल्पयत्) रचा है ॥१५॥

    भावार्थ

    परमेश्वर ने मनुष्य के पुरुषार्थ अनुसार उसे उन्नति के अनेक साधन दिये हैं ॥१५॥

    टिप्पणी

    १५−(कः) म० ५। विधाता (अस्मै) मनुष्याय (वासः) वसेर्णित्। उ० ४।११८। वस निवासे आच्छादने च-असुन्, णित्। निवासस्थानम्। वस्त्रम् (परि) सर्वतः (अदधात्) धृतवान् (कः) (अस्य) मनुष्यस्य (आयुः) जीवनकालम् (अकल्पयत्) रचितवान् (बलम्) सामर्थ्यम् (कः) परमेश्वरः (प्रायच्छत्) दत्तवान् (कः) (अस्य) (अकल्पयत्) (जवम्) वेगम् ॥

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    विषय

    वास:-जवः

    पदार्थ

    १. (क:) = कौन (अस्मै) = इस पुरुष के लिए (वासः पर्यदधात्) = देहरूप वस्त्र को धारण कराता है? (क:) = कौन (अस्य) = इस पुरुष के (आयुः अकल्पयत्) = आयुकाल को नियत करता है? (अस्मै) = इस पुरुष के लिए (बलम्) = बल को (कः प्रायच्छत्) = कौन देता है? (क:) = कौन (अस्य) = इसके (जवम्) = वेग व (क्रिया) = सामर्थ्य को (अकल्पयत्) = रचता है?

     

    भावार्थ

    किस अद्भुत देव ने हमें शरीररूप वस्त्र, आयु, बल व वेग को प्राप्त कराया है?

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    भाषार्थ

    (कः) किसने (अस्मै) इस जीवात्मा के लिये, (वासः) शरीररूपी वस्त्र (परि अदधात्) इस के चारों ओर स्थापित किया है, (कः) किस ने (अस्य) इस की (आयुः) आयु (अकल्पयत्) रची है। (कः) किस ने (अस्मै) इसे (बलम्) बल (प्रायच्छत्) प्रदान किया है, (कः) किसने (अस्य) इस के (जवम्) वेग को (अकल्पयत्) निर्धारित या समर्पित किया है।

    टिप्पणी

    [कः= प्रश्नार्थक तथा उत्तरार्थक है। मनुष्य के शरीर का वेग भी निर्धारित है। मनुष्य अश्व के, मोटर के, या रेलगाड़ी के बेग वाला नहीं हो सकता]।

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    विषय

    पुरुष देह की रचना और उसके कर्त्ता पर विचार।

    भावार्थ

    (अस्मै) इस पुरुष को (वासः) पहनने के वस्त्र देह रूप चोला (कः परि अदधात्) कौन पहराता है ? (अस्य) इसकी (आयुः) आयुषकाल को (कः कल्पयत्) कौन नियत करता है ? (अस्मे) इसको (बलम्) बल=शारीरिक शक्ति (कः प्र अयच्छन्) कौन प्रदान करता है ? (अस्य) इस शरीर के (जवम्) वेग या क्रिया सामर्थ्य को (कः अकल्पयत्) कौन रचता है।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘को वाससा परिदधात्' (च०) ‘कोऽस्या’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारायण ऋषिः। पुरुषो देवता। पार्ष्णी सूक्तम्। ब्रह्मप्रकाशिसूक्तम्। १-४, ७, ८, त्रिष्टुभः, ६, ११ जगत्यौ, २८ भुरिगवृहती, ५, ४, १०, १२-२७, २९-३३ अनुष्टुभः, ३१, ३२ इति साक्षात् परब्रह्मप्रकाशिन्यावृचौ। त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kena Suktam

    Meaning

    Who brought in and gave man the vestment of body? Who fashions his health and life span? Who gives him strength and courage? Who creates and gives him impulse and enthusiasm for speed and progress? The answer to mantras 7 to 15: The Lord Supreme, Kah.

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    Translation

    Who has clothed him in robes ? who has arranged his lifespan? Who has bestowed strength on him ? Who has granted him the speed ? (Ayu = life-span).

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    Translation

    Who does give him the nervous system? Who does arrange the life to live? Who does grant him the strength and vigor? Who does endow him with the speed in limbs?

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    Translation

    God wrapped the garment of body round him. God has determined the duration of man’s life. God granted him strength. God gave fleetness to his feet.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५−(कः) म० ५। विधाता (अस्मै) मनुष्याय (वासः) वसेर्णित्। उ० ४।११८। वस निवासे आच्छादने च-असुन्, णित्। निवासस्थानम्। वस्त्रम् (परि) सर्वतः (अदधात्) धृतवान् (कः) (अस्य) मनुष्यस्य (आयुः) जीवनकालम् (अकल्पयत्) रचितवान् (बलम्) सामर्थ्यम् (कः) परमेश्वरः (प्रायच्छत्) दत्तवान् (कः) (अस्य) (अकल्पयत्) (जवम्) वेगम् ॥

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