अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 24
ऋषिः - नारायणः
देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
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केने॒यं भूमि॒र्विहि॑ता॒ केन॒ द्यौरुत्त॑रा हि॒ता। केने॒दमू॒र्ध्वं ति॒र्यक्चा॒न्तरि॑क्षं॒ व्यचो॑ हि॒तम् ॥
स्वर सहित पद पाठकेन॑ । इ॒यम् । भूमि॑: । विऽहि॑ता । केन॑ । द्यौ: । उत्ऽत॑रा । हि॒ता । केन॑ । इ॒दम् । ऊ॒र्ध्वम् । ति॒र्यक् । च॒ । अ॒न्तरि॑क्षम् । व्यच॑: । हि॒तम् ॥२.२४॥
स्वर रहित मन्त्र
केनेयं भूमिर्विहिता केन द्यौरुत्तरा हिता। केनेदमूर्ध्वं तिर्यक्चान्तरिक्षं व्यचो हितम् ॥
स्वर रहित पद पाठकेन । इयम् । भूमि: । विऽहिता । केन । द्यौ: । उत्ऽतरा । हिता । केन । इदम् । ऊर्ध्वम् । तिर्यक् । च । अन्तरिक्षम् । व्यच: । हितम् ॥२.२४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(केन) किस करके (इयम् भूमिः) यह भूमि (विहिता) सुधारी गई है, (केन) किस करके (द्यौः) सूर्य (उत्तरा) ऊँचा (हिता) धरा गया है। (च) और (इदम्) यह (ऊर्ध्वम्) ऊँचा, (तिर्यक्) तिरछा, चलनेवाला (व्यचः) फैला हुआ (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष [आकाश] (हितम्) धरा गया है ॥२४॥
भावार्थ
ब्रह्मजिज्ञासु के लिये इन प्रश्नों का उत्तर अगले मन्त्रों में है ॥२४॥
टिप्पणी
२४−(केन) प्रश्ने (इयम्) (भूमिः) (विहिता) विशेषेण धारिता (केन) (द्यौः) सूर्यः (उत्तरा) उपरिभवा (हिता) धृतः (केन) (इदम्) (ऊर्ध्वम्) उपरिस्थम् (तिर्यक्) वक्रगामि (च) (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (व्यचः) विस्तृतम् (हितम्) धृतम् ॥
विषय
भूमिः, द्यौः, अन्तरिक्षम्
पदार्थ
१. (केन) = किसने (इयं भूमि:) = यह पृथिवीलोक (विहिता) = बनाया है? (केन) = किसने उत्तरा (द्यौ:) = यह धुलोक ऊपर (हिता) = स्थापित किया है? (केन) = किसने (ऊर्ध्वम्) = ऊपर (तिर्यक् च) = और तिरछा-एक सिरे से दूसरे सिरे तक (व्यचः) = फैला हुआ [विस्तारवाला] (इदम् अन्तरिक्षं हितम्) = यह अन्तरिक्ष स्थापित किया है? २. (ब्रह्मणा भूमिः विहिता) = ब्रह्म ने इस पृथिवीलोक को बनाया है। (ब्रह्म) = प्रभु ने ही (उत्तरा द्यौ: हिता) = द्युलोक को ऊपर स्थापित किया है। (ब्रह्म) = प्रभु ने ही (ऊध्वर्म) = ऊपर (तिर्यक् च) = और तिरछे-एक सिरे से दूसरे सिरे तक (व्यच:) = विस्तृत (इदं अन्तरिक्षम्) = यह अन्तरिक्ष (हितम्) = स्थापित किया हैं।
भावार्थ
प्रभु ही इस ब्रह्माण्ड की त्रिलोकी के निर्माता है।
भाषार्थ
(केन) किस ने (भूमिः) भूमि को (विहिता) अलग कर नीचे की ओर रखा है, (केन) किस ने (द्यौः) द्युलोक को (उत्तरा हिता) ऊपर की ओर रखा है। (केन) किस ने (इदम्) इस (व्यचः) विस्तृत (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष को (ऊर्ध्वम्) ऊर्ध्व में और (तिर्यक्) पार्श्वों में (हितम्) स्थापित किया है।
टिप्पणी
[विहिता = विहृत्य, पृथक् कृत्वा, हिता स्थापिता। अथवा "विधिपूर्वक स्थापिता”]।
विषय
पुरुष देह की रचना और उसके कर्त्ता पर विचार।
भावार्थ
(इयं भूमिः) यह भूमि (केन) किसने (विहिता) विशेष रूप से स्थिर की, धारण की या बनाई है ? और (केन) किसने (उत्तरा द्यौः) ऊपर का यह आकाश (हिता) धारण किया, थामा या बनाया ? और (इदम्) यह (ऊर्ध्वं तिर्यक् च) ऊपर का और तिरछा (व्यचः) व्यापक (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष, वातावरण (हितम्) धारण किया, थामा या बनाया है।
टिप्पणी
‘केनेदं भूमिर्निहिता’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नारायण ऋषिः। पुरुषो देवता। पार्ष्णी सूक्तम्। ब्रह्मप्रकाशिसूक्तम्। १-४, ७, ८, त्रिष्टुभः, ६, ११ जगत्यौ, २८ भुरिगवृहती, ५, ४, १०, १२-२७, २९-३३ अनुष्टुभः, ३१, ३२ इति साक्षात् परब्रह्मप्रकाशिन्यावृचौ। त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Kena Suktam
Meaning
By whom is this earth held in order below? By whom is the heaven of light held up in order on high? By whom is this vast middle region held up high and across in space?
Translation
By whom has this earth been put in order ? By whom is the sky set higher up ? Who has put this midspace above and spreading crosswise ? (Tiryak = cross-wise).
Translation
By whom was this earth established, by whom was held firm the heavenly region, by whom this firmament has been raised up high and stretched across.
Translation
By whom was this Earth disposed? By whom was Heaven placed over it? By whom was this expanse of air raised up on high and stretched across?
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२४−(केन) प्रश्ने (इयम्) (भूमिः) (विहिता) विशेषेण धारिता (केन) (द्यौः) सूर्यः (उत्तरा) उपरिभवा (हिता) धृतः (केन) (इदम्) (ऊर्ध्वम्) उपरिस्थम् (तिर्यक्) वक्रगामि (च) (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (व्यचः) विस्तृतम् (हितम्) धृतम् ॥
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