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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 4
    ऋषिः - नारायणः देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
    111

    कति॑ दे॒वाः क॑त॒मे त आ॑स॒न्य उरो॑ ग्री॒वाश्चि॒क्युः पूरु॑षस्य। कति॒ स्तनौ॒ व्यदधुः॒ कः क॑फो॒डौ कति॑ स्क॒न्धान्कति॑ पृ॒ष्टीर॑चिन्वन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कति॑ । दे॒वा: । क॒त॒मे । ते । आ॒स॒न् । ये । उर॑: । ग्री॒वा: । चि॒क्यु: । पुरु॑षस्य । कति॑ । स्तनौ॑ । वि । अ॒द॒धु॒: । क: । क॒फो॒डौ । कति॑ । स्क॒न्धान् । कति॑ । पृ॒ष्टी: । अ॒चि॒न्व॒न् ॥२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कति देवाः कतमे त आसन्य उरो ग्रीवाश्चिक्युः पूरुषस्य। कति स्तनौ व्यदधुः कः कफोडौ कति स्कन्धान्कति पृष्टीरचिन्वन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कति । देवा: । कतमे । ते । आसन् । ये । उर: । ग्रीवा: । चिक्यु: । पुरुषस्य । कति । स्तनौ । वि । अदधु: । क: । कफोडौ । कति । स्कन्धान् । कति । पृष्टी: । अचिन्वन् ॥२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ते) वे (कति) कितने और (कतमे) कौन से (देवाः) दिव्य गुण (आसन्) थे, (ये) जिन्होंने (पुरुषस्य) मनुष्य के (उरः) छाती और (ग्रीवाः) गले को (चिक्युः) एकत्र किया। (कति) कितनों ने (स्तनौ) दोनों स्तनों को (वि अदधुः) बनाया, (कः) किसने (कफोडौ) दोनों कपोलों [गालों] को [बनाया], (कति) कितनों ने (स्कन्धान्) कन्धों को और (कति) कितनों ने (पृष्टीः) पसलियों को (अचिन्वन्) एकत्र किया ॥४॥

    भावार्थ

    अब यह प्रश्न है कि कितने और किन गुणों के कारण से छाती ग्रीवा आदि अवयवों में अद्भुत गुण रक्खे गये हैं ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(कति) कियन्तः। किंपरिमाणाः (देवाः) दिव्यगुणाः (कतमे) बहूनां मध्ये के (ते) (आसन्) (ये) (उरः) हृदयम् (ग्रीवाः) गलावयवान् (चिक्युः) संचितवन्तः (पुरुषस्य) (कति) (स्तनौ) (व्यदधुः) अकार्षुः (कः) प्रश्ने (कफोडौ) कपिगडिगण्डि०। उ० १।६६। कपि चलने−ओलच्। पस्य फः, लस्य डः। कपोलौ। गल्लौ (कति) (स्कन्धान्) असान् (कति) (पृष्टीः) अ० ४।३।६। पार्श्वास्थीनि (अचिन्वन्) संचितवन्तः ॥

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    विषय

    उर:-पृष्टी:

    पदार्थ

    १.(ते) = वे (कति) = कितने व (कतमे) = कौन-से (देवा:) = दिव्य पदार्थ थे, (ये) = जिन्होंने (पूरुषस्य) = इस पुरुष के (उर:) = छाती को (ग्रीवा:) = और गले की नाड़ियों को (चिक्यु:) = चिन दिया। (कति स्तनौ) = कितनों ने दोनों स्तनों को (व्यदधुः) = बनाया। (कः कफोडौ) = किसने दोनों कपोलों को बनाया। (कति) = कितनों ने (स्कन्धान्) = कन्धों को और (कति) = कितनों ने (पृष्टी: अचिन्वन्) = पसलियों को एकत्र किया।

    भावार्थ

    शरीर में छाती, ग्रीवा, स्तन, कपोल, स्कन्ध व पृष्टियों की रचना अद्भुत ही है|

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    भाषार्थ

    (कति) कितने और (कतमे) कौन से (ते) वे (देवाः आसन्) देव थे (ये) जिन्होंने (पूरुषस्य) पुरुष की (उरः) छाती को (ग्रीवाः) और गर्दन के अवयवों को (चिक्युः) चिना था। (कति) कितनों ने (स्तनौ व्यदधुः) दो स्तनों का विधान या निर्माण किया, (कः) किस ने (कफोडौ) दो कपोलों को, (कति) कितनों ने (स्कन्धान्) कन्धों की अस्थियों को, (पृष्टीः) पीठ की अस्थियों तथा पसलियों को (अचिन्वन्) चिना था।

    टिप्पणी

    [कति और कतमे, में बहुवचन है। सम्भवतः मन्त्र में “देवाः” पद द्वारा या तो दिव्य शक्तियां अभिप्रेत हैं, या रचना में भाग लेने वाली अस्थियां आदि। कः = यह पद एक वचन में है, जो कि अकेले परमेश्वर का बोधक है। कः = कौन, तथा कः= जगत् का कर्त्ता परमेश्वर। करोतीति= कः; कृ +डः (औणादिकः “डः” प्रत्ययः, बाहुलकात्)। चिक्युः, अचिन्वन्— द्वारा, मकान को चिनने वालों के सदृश, परमेश्वर को कारीगर दर्शाया है]।

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    विषय

    पुरुष देह की रचना और उसके कर्त्ता पर विचार।

    भावार्थ

    (कति देवाः) इस शरीर में देव जीवन ज्योति के प्रकाशक कितने हैं। (कतमे ते) उनमें से वे कौनसे कौनसे हैं (ये) जो (पूरुषस्य) पुरुष देह के (उरः) छाती और (ग्रीवाः) गर्दन के मोहरों को (चिक्युः) बना रहे हैं ? और (स्तनौ) स्तनों को (कति) कितने तत्व (वि-अदधुः) विशेष रूप से धारण कर रहे हैं ? और (कः) कौनसा तत्व (कफोडौ) दोनों हसुलियों या कपोल=गालों को धारण करता है। और (स्कन्धान् कति) कन्धों को कितने तत्व धारण कर रहे हैं। और (पृष्टीः) पसुलियों या पीठ के मोहरों को (कति) कितने तत्व (अचिन्वन्) बनाये हुए हैं।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘पौरुषस्य’ (तृ०) ‘निदध्यौ कः कपोलौ’ इति पैप्प सं०। ‘कफेडौ’, ‘कफौजौ’ इत्यादयोऽपि नानाः पाठाः क्वचित् क्वचित्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारायण ऋषिः। पुरुषो देवता। पार्ष्णी सूक्तम्। ब्रह्मप्रकाशिसूक्तम्। १-४, ७, ८, त्रिष्टुभः, ६, ११ जगत्यौ, २८ भुरिगवृहती, ५, ४, १०, १२-२७, २९-३३ अनुष्टुभः, ३१, ३२ इति साक्षात् परब्रह्मप्रकाशिन्यावृचौ। त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kena Suktam

    Meaning

    How many and which ones are those divinities that structured and shaped man’s chest and neck? How many of them formed and fixed the breasts? Who the two elbows, how many the shoulders, and how many structured and formed the ribs?

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    Translation

    How many and which were the enlightened ones, who fastened the breast (uras) and neck of man together ? How many (of them) formed his two teats ? Who formed his two collar-bones ? How many (of them) his shoulders and how many joined the ribs ? (urah = breast; griva = neck; stana = teat; kaphoda = collar-bone; skandha = shoulder; prstih = rib)

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    Translation

    How many and who those physical, and super-physical forces are who fasten the chest of the man and neck together? How many of them fix his breast and who does form his elbows? How many do join his ribs and shoulders?

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    Translation

    Which and how many were those supernatural forces which fastened the chest of man and neck together! How many fixed his breasts! Who formed his cheeks. How many joined together ribs and shoulders.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(कति) कियन्तः। किंपरिमाणाः (देवाः) दिव्यगुणाः (कतमे) बहूनां मध्ये के (ते) (आसन्) (ये) (उरः) हृदयम् (ग्रीवाः) गलावयवान् (चिक्युः) संचितवन्तः (पुरुषस्य) (कति) (स्तनौ) (व्यदधुः) अकार्षुः (कः) प्रश्ने (कफोडौ) कपिगडिगण्डि०। उ० १।६६। कपि चलने−ओलच्। पस्य फः, लस्य डः। कपोलौ। गल्लौ (कति) (स्कन्धान्) असान् (कति) (पृष्टीः) अ० ४।३।६। पार्श्वास्थीनि (अचिन्वन्) संचितवन्तः ॥

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