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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 25
    ऋषिः - नारायणः देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
    75

    ब्रह्म॑णा॒ भूमि॒र्विहि॑ता॒ ब्रह्म॒ द्यौरुत्त॑रा हि॒ता। ब्रह्मे॒दमू॒र्ध्वं ति॒र्यक्चा॒न्तरि॑क्षं॒ व्यचो॑ हि॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॑णा । भूमि॑: । विऽहि॑ता । ब्रह्म॑ । द्यौ: । उत्ऽत॑रा । हि॒ता । ब्रह्म॑ । इ॒दम् । ऊ॒र्ध्वम् । ति॒र्यक् । च॒ । अ॒न्तरि॑क्षम् । व्यच॑: । हि॒तम् ॥२.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्मणा भूमिर्विहिता ब्रह्म द्यौरुत्तरा हिता। ब्रह्मेदमूर्ध्वं तिर्यक्चान्तरिक्षं व्यचो हितम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्मणा । भूमि: । विऽहिता । ब्रह्म । द्यौ: । उत्ऽतरा । हिता । ब्रह्म । इदम् । ऊर्ध्वम् । तिर्यक् । च । अन्तरिक्षम् । व्यच: । हितम् ॥२.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 25
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ब्रह्मणा) ब्रह्म [परमेश्वर] करके (भूमिः) भूमि (विहिता) सुधारी गयी है, (ब्रह्म) ब्रह्म करके (द्यौः) सूर्य (उत्तरा) ऊँचा (हिता) धरा गया है। (च) और (ब्रह्म) ब्रह्म करके (इदम्) यह (ऊर्ध्वम्) ऊँचा, (तिर्यक्) तिरछा चलनेवाला, (व्यचः) फैला हुआ (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष [आकाश] (हितम्) धरा गया है ॥२५॥

    भावार्थ

    ब्रह्म परमेश्वर ने सब ऊँचे, नीचे और मध्यलोक बनाये हैं ॥२५॥

    टिप्पणी

    २५−(ब्रह्मणा) परमेश्वरेण (ब्रह्म) म० २३। ब्रह्मणा। अन्यत् पूर्ववत् मन्त्रे २४ ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( ब्रह्मणा ) = परमात्मा ने  ( भूमि: ) = पृथिवी  ( विहिता ) = बनाई  ( ब्रह्म ) = परमेश्वर ने  ( द्यौः ) = द्युलोक को  ( उत्तरा ) =  ऊपर  ( हिता ) = स्थापित किया ।  ( च ) = और  ( ब्रह्म ) = परमात्मा ने ही  ( इदम् ) = यह  ( अन्तरिक्षम् ) = मध्य लोक  ( ऊर्ध्वम् ) = ऊपर  ( तिर्यक् ) = तिरछा और नीचे  ( व्यचोहितम् ) = व्यापा हुआ रक्खा है।

    भावार्थ

    भावार्थ = एशिया, यूरोप, अमरीका और अफ्रीका आदि खण्डों से युक्त सारी पृथिवी और पृथिवी में रहनेवाले सारे प्राणी परमात्मा ने रचे हैं। उस परमात्मा ने ही सूर्य से ऊपर का हिस्सा जिसको द्युलोक कहते हैं वह भी ऊपर स्थापित किया और मध्यका यह अन्तरिक्ष लोक जो ऊपर और नीचे तिरछा सर्वत्र फैला हुआ है उस परमात्मा ने बनाया है।

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    विषय

    भूमिः, द्यौः, अन्तरिक्षम्

    पदार्थ

    १. (केन) = किसने (इयं भूमि:) = यह पृथिवीलोक (विहिता) = बनाया है? (केन) = किसने उत्तरा (द्यौ:) = यह धुलोक ऊपर (हिता) = स्थापित किया है? (केन) = किसने (ऊर्ध्वम्) = ऊपर (तिर्यक् च) = और तिरछा-एक सिरे से दूसरे सिरे तक (व्यचः) = फैला हुआ [विस्तारवाला] (इदम् अन्तरिक्षं हितम्) = यह अन्तरिक्ष स्थापित किया है? २. (ब्रह्मणा भूमिः विहिता) = ब्रह्म ने इस पृथिवीलोक को बनाया है। (ब्रह्म) = प्रभु ने ही (उत्तरा द्यौ: हिता) = द्युलोक को ऊपर स्थापित किया है। (ब्रह्म) = प्रभु ने ही (ऊध्वर्म) = ऊपर (तिर्यक् च) = और तिरछे-एक सिरे से दूसरे सिरे तक (व्यच:) = विस्तृत (इदं अन्तरिक्षम्) = यह अन्तरिक्ष (हितम्) = स्थापित किया हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ही इस ब्रह्माण्ड की त्रिलोकी के निर्माता है।

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    भाषार्थ

    (ब्रह्मणा) ब्रह्म ने (भूमिः) भूमि (विहिता) विहित की है; [ब्रह्म ने] (ब्रह्म द्यौः) बृहत् द्युलोक को (उत्तरा हिता) ऊपर की ओर रखा है। [ब्रह्म ने] (इदम्) इस (व्यचः) विस्तृत (ब्रह्म अन्तरिक्षम्) बृहद् अन्तरिक्ष को (ऊर्ध्वम्) ऊर्ध्व में, और (तिर्यक्) पार्श्वो में (हितम्) स्थापित किया है।

    टिप्पणी

    [विहिता= अर्थ (मन्त्र २४) के अनुसार। ब्रह्म = यह नियत नपुंसक लिङ्ग में विशेषणरूप पद है। भूमि की अपेक्षा द्युलोक तथा अन्तरिक्ष ब्रह्म हैं, परिमाणों में बृहत् हैं। “बृंहति वर्धते तद् ब्रह्म, ईश्वरो वेदः तत्त्वं तपो वा" (उणा० ४।१४७, म० दयानन्द)। इसी प्रकार "मम योनिर्महद् ब्रह्म१” (गीता १४।३) में ब्रह्म द्वारा महती प्रकृति का ग्रहण किया है। तथा निघण्टु में "ब्रह्म= उदक" (१।१५); अन्न (२।७); धन (२।१०)। इस प्रकार ब्रह्म के अर्थ नाना हैं। इसलिये मन्त्र में ब्रह्म पद विशेषणरूप में प्रयुक्त हुआ है। अथवा ब्रह्म=ब्रह्मणा, विभक्ति विपरिणाम द्वारा]। [१. यथा "मम योनिर्महद् ब्रह्म तस्मिन् गर्भ दधाम्यहम् । संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत" ॥ १४॥३॥ ]

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    विषय

    पुरुष देह की रचना और उसके कर्त्ता पर विचार।

    भावार्थ

    (ब्रह्मणा) उस महान् ब्रह्मशक्ति ने (भूमिः विहिता) यह भूमि बनाई और विशेष रूप से धारण और स्थिर की। (ब्रह्म) उस महान् शक्ति ब्रह्म ने (उत्तरा द्यौः) ऊपर का आकाश भी (हिता) बनाया और स्थिर किया है। (इदं) यह (ऊर्ध्वं तिर्यक् च व्यचः, अन्तरिक्षम्) ऊपर का और तिरछा फैला हुआ अन्तरिक्ष, वातावरण भी उसी (ब्रह्म हितम्) महान् शक्ति ब्रह्म ने धारण किया, बनाया और स्थिर किया है।

    टिप्पणी

    (प्र० द्वि०) ‘ब्रह्मणा भूमिर्नियता, ब्रह्मद्यामुत्तरां दधौ’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारायण ऋषिः। पुरुषो देवता। पार्ष्णी सूक्तम्। ब्रह्मप्रकाशिसूक्तम्। १-४, ७, ८, त्रिष्टुभः, ६, ११ जगत्यौ, २८ भुरिगवृहती, ५, ४, १०, १२-२७, २९-३३ अनुष्टुभः, ३१, ३२ इति साक्षात् परब्रह्मप्रकाशिन्यावृचौ। त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kena Suktam

    Meaning

    By Brahma is the earth held below. By Brahma is the heaven of light held up high. By Brahma is the vast middle region held up high and across.

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    Translation

    The Lord supreme has put the earth in order. The Lord supreme has set the sky higher up. The Lord supreme has put this midspace above and spreading crosswise.

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    Translation

    By the Supreme Spirit was this earth established, by the Supreme spirit this heavenly region was held firm, by the Supreme Spirit the firmament has been raised up high and stretched across.

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    Translation

    By God was this Earth disposed. By God is sky arranged above. By God is this expanse of air lifted on high and stretched across.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २५−(ब्रह्मणा) परमेश्वरेण (ब्रह्म) म० २३। ब्रह्मणा। अन्यत् पूर्ववत् मन्त्रे २४ ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    ব্রহ্মণা ভূমির্বিহিতা ব্রহ্ম দ্যৌরুত্তরা হিতা ৷

    ব্রহ্মেদমূর্ধ্বং তির্যক্চান্তরিক্ষং ব্যচো হিতম।।২৭।।

    (অথর্ব ১০।২।২৫)

    পদার্থঃ (ব্রহ্মণা) পরমাত্মা (ভূমিঃ) পৃথিবী (বিহিতা) বানিয়েছেন, (ব্রহ্ম) পরমাত্মা (দ্যৌঃ) দ্যুলোককে (উত্তরা) উপরে (হিতা) স্থাপিত করেছেন। (ব্রহ্ম) পরমাত্মাই (ইদম্) এই (অন্তরিক্ষম্) মধ্য লোক (ঊর্ধ্বম্) ওপরে, (তির্যক্ চ) তীর্যকভাবে আর নিচে (ব্যচো হিতম্) ব্যাপ্ত করে রেখেছেন।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ সারা পৃথিবী আর পৃথিবীতে থাকা সকল প্রাণীদেরকে পরমাত্মাই রচনা করেছেন। সেই পরমাত্মাই সূর্য থেকেও ওপরের অংশ যাকে দ্যুলোক বলা হয়, তাকে ওপরে স্থাপিত করেছেন আর মধ্যের এই অন্তরিক্ষ লোক যা ওপরে, নিচে ও তীর্যক দিকে সর্বত্র ছেয়ে আছে, সেগুলোকে সেই পরমাত্মাই তৈরি করেছেন ।।২৭।।

     

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