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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 5
    ऋषिः - नारायणः देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
    113

    को अ॑स्य बा॒हू सम॑भरद्वी॒र्यं करवा॒दिति॑। अंसौ॒ को अ॑स्य॒ तद्दे॒वः कुसि॑न्धे॒ अध्या द॑धौ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क: । अ॒स्य॒ । बा॒हू इति॑ । सम् । अ॒भ॒र॒त् । वी॒र्य᳡म् । क॒र॒वा॒त् । इति॑ । अंसौ॑ । क: । अ॒स्‍य॒ । तत् । दे॒व: । कुसि॑न्धे । अधि॑ । आ । द॒धौ॒ ॥२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को अस्य बाहू समभरद्वीर्यं करवादिति। अंसौ को अस्य तद्देवः कुसिन्धे अध्या दधौ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क: । अस्य । बाहू इति । सम् । अभरत् । वीर्यम् । करवात् । इति । अंसौ । क: । अस्‍य । तत् । देव: । कुसिन्धे । अधि । आ । दधौ ॥२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (कः) कर्ता [परमेश्वर] ने (अस्य) इस [मनुष्य] के (बाहू) दोनों भुजाओं को [इसलिये] (सम् अभरत्) यथावत् पुष्ट किया है कि वह (वीर्यम्) वीर कर्म (करवात् इति) करता रहे। (तत्) इसी लिये (देवः) प्रकाशमान (कः) प्रजापति ने (अस्य) इस [मनुष्य] के (अंसौ) दोनों कन्धों को (कुसिन्धे) धड़ में (अधि) ऐश्वर्य से (आ) यथावत् (दधौ) धारण कर दिया है ॥५॥

    भावार्थ

    यहाँ से गत मन्त्रों का उत्तर है−सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने इस मनुष्य को भुजा आदि अमूल्य अङ्ग पुरुषार्थ करने के लिये दिये हैं ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(कः) अ० ७।१०३।१। अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। डुकृञ्, करणे−ड। मारुते वेधसि ब्रध्ने पुंसि कः कं शिरोऽम्बुनोः-इत्यमरः, व० २३।५। कर्ता। विधाता। प्रजापतिः (अस्य) मनुष्यस्य (बाहू) भुजौ (सम्) सम्यक् (अभरत्) अपोषयत् (वीर्यम्) वीरकर्म। पराक्रमम् (करवात्) कुर्यात् (इति) वाक्यसमाप्तौ (अंसौ) स्कन्धौ (कः) (अस्य) (तत्) तस्मात् (देवः) प्रकाशमानः (कुसिन्धे) म० ३। देहे (अधि) ऐश्वर्येण (आ) समन्तात् (दधौ) धारितवान् ॥

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    विषय

    बाहू-अंसौ

    पदार्थ

    १. (क:) = किस अद्भुत रचयिता ने (अस्य) = इस पुरुष की (बाहू समभरत्) = भुजाओं को संभृत किया है, (वीर्यं करवात् इति) = जिससे यह वीरतापूर्ण कर्मों को करनेवाला बनता है, (तत्) = उसी कर्तव्य-भार को उठाने के उद्देश्य से ही (कः देव:) = किस दिव्य स्रष्टा ने (अस्य कुसिन्धे अधि) = इस पुरुष के धड़ पर (अंसौ आदधौ) = कन्धों को स्थापित किया है।

    भावार्थ

    भुजाएँ शक्तिशाली कर्मों को करने के लिए दी गई हैं और कन्धे कर्तव्यभार को उठाने के लिए प्राप्त कराये गये हैं। हम कर्तव्यभार से घबराएँ नहीं, अपितु वीरता के साथ कर्म करनेवाले बनें।

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    भाषार्थ

    (कः) किस ने (अस्य) इस पुरुष की (बाहू) बाहुओं को (समभरत्) बनाया या उन के लिये संभारों को एकत्रित किया, (वीर्यम्, करवात्, इति) ताकि वीरता के कर्म किये जांय। (क) किस (तत् देवः) प्रसिद्ध देव ने (अस्य) इस पुरुष के (कुसिन्धे अधि) शरीर पर (अंसौ) दो कन्धों का (आदधौ) आधान किया।

    टिप्पणी

    [“कः” को देव कहा है, और उसे “तत्” द्वारा जगत् का कर्त्ता निर्दिष्ट किया है अतः यह परमेश्वर है। गीता के अनुसार “ओ३म्, तत्, सत्” परमेश्वर के निर्देशक हैं। “ओ३म् तत् सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः” (१७।२३)। तथा “तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तदु चन्द्रमाः। तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म ता आपः स प्रजापतिः” (यजु ३२।१) में “तत्, ताः, सः” द्वारा ब्रह्म का ही निर्देश हुआ है। कुसिन्धे (मन्त्र ३)]

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    विषय

    पुरुष देह की रचना और उसके कर्त्ता पर विचार।

    भावार्थ

    (अस्य) इस पुरुष के (बाहू) बाहुओं को (कः) कौनसा देव (समभरत्) पुष्ट करता है कि (इति वीर्यं करवात्) वह वीर्य बल का काम उत्पन्न करे। (अस्य) इसके (अंसौ) भुजाओं के ऊपर के भागों को (कः) कौन बनाता है और (तद्) उनको (कः देवः) कौन देव (कुसिन्धे) शरीर में (आदध्यौ) स्थापित करता है।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘वीर्यं कृणवानिति’ (च०) ‘क्व सिन्धादधादधि’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारायण ऋषिः। पुरुषो देवता। पार्ष्णी सूक्तम्। ब्रह्मप्रकाशिसूक्तम्। १-४, ७, ८, त्रिष्टुभः, ६, ११ जगत्यौ, २८ भुरिगवृहती, ५, ४, १०, १२-२७, २९-३३ अनुष्टुभः, ३१, ३२ इति साक्षात् परब्रह्मप्रकाशिन्यावृचौ। त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kena Suktam

    Meaning

    Who collected the materials and formed the two arms of this man so that he could do heroic deeds? And which divinity was that who fixed the two shoulders on his body?

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    Translation

    Who provided him with two arms, so that he may act with manly strength. Which was the enlightened one who put two shoulders upon his trunk ? (Bahu = arm; aūsa = shoulderblade; kusindha = trunk).

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    Translation

    Who does put together his two arms orders that they should show manly strength? Who is that mighty power who sets the shoulderblades upon the trunk?

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    Translation

    God, the Creator, has put together both his arms, so that he may show manly strength. Hence the Refulgent God has set the shoulder-blades upon the trunk.

    Footnote

    क: कर्ता—Creator, Prajapati र्दव: प्रकाशमान Refulgent. This verse gives a reply to the questions raised in the previous ones.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(कः) अ० ७।१०३।१। अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। डुकृञ्, करणे−ड। मारुते वेधसि ब्रध्ने पुंसि कः कं शिरोऽम्बुनोः-इत्यमरः, व० २३।५। कर्ता। विधाता। प्रजापतिः (अस्य) मनुष्यस्य (बाहू) भुजौ (सम्) सम्यक् (अभरत्) अपोषयत् (वीर्यम्) वीरकर्म। पराक्रमम् (करवात्) कुर्यात् (इति) वाक्यसमाप्तौ (अंसौ) स्कन्धौ (कः) (अस्य) (तत्) तस्मात् (देवः) प्रकाशमानः (कुसिन्धे) म० ३। देहे (अधि) ऐश्वर्येण (आ) समन्तात् (दधौ) धारितवान् ॥

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