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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 23
    ऋषिः - भार्गवो वैदर्भिः देवता - प्राणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - प्राण सूक्त
    56

    यो अ॒स्य वि॒श्वज॑न्मन॒ ईशे॒ विश्व॑स्य॒ चेष्ट॑तः। अन्ये॑षु क्षि॒प्रध॑न्वने॒ तस्मै॑ प्राण॒ नमो॑ऽस्तु ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । अ॒स्य । वि॒श्वऽज॑न्मन: । ईशे॑ । विश्व॑स्य । चेष्ट॑त: । अन्ये॑षु । क्षि॒प्रऽध॑न्वने । तस्मै॑ । प्रा॒ण॒ । नम॑: । अ॒स्तु॒ । ते॒ ॥६.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो अस्य विश्वजन्मन ईशे विश्वस्य चेष्टतः। अन्येषु क्षिप्रधन्वने तस्मै प्राण नमोऽस्तु ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । अस्य । विश्वऽजन्मन: । ईशे । विश्वस्य । चेष्टत: । अन्येषु । क्षिप्रऽधन्वने । तस्मै । प्राण । नम: । अस्तु । ते ॥६.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    हिन्दी (6)

    विषय

    प्राण की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो [परमेश्वर] (अस्य) इस (विश्वजन्मनः) विविध जन्मवाले और (विश्वस्य) सब (चेष्टतः) चेष्टा करनेवाले [कार्यरूप] जगत् का (ईशे) ईश्वर है, [इनसे] (अन्येषु) भिन्न [परमाणुरूप पदार्थों] पर (क्षिप्रधन्वने) शीघ्र व्यापक होनेवाले (तस्मै) उस (ते) तुझको, (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (नमः अस्तु) नमस्कार हो ॥२३॥

    भावार्थ

    परमेश्वर सब कार्यरूप और कारणरूप जगत् का स्वामी है, उस जगदीश्वर को हमारा नमस्कार है ॥२३॥

    टिप्पणी

    २३−(यः) प्राणः परमेश्वरः (अस्य) दृश्यमानस्य (विश्वजन्मनः) विविधजन्मोपेतस्य (ईशे) तलोपः। ईष्टे। ईश्वरो भवति (विश्वस्य) सर्वस्य (चेष्टतः) व्याप्रियमाणस्य (अन्येषु) भिन्नेषु। कारणरूपेषु। (क्षिप्रधन्वने) कनिन् युवृषितक्षिराजिधन्वि०। उ० १।१५६। धवि गतौ-कनिन्, इदित्वान्नुम्। शीघ्रं गच्छते व्याप्नुवते (तस्मै) तथाविधाय (प्राण) (नमः) (अस्तु) (ते) तुभ्यम् ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( यः ) = जो परमेश्वर  ( अस्य ) = इस  ( विश्वजन्मनः ) = विविध जन्मवाले और  ( विश्वस्य चेष्टत: ) = सब चेष्टा करनेवाले जगत् का  ( ईशे ) =  ईश्वर है। इन से  ( अन्येषु ) = भिन्न कारणरूप परमाणुओं पर  ( क्षिप्रधन्वने ) = व्यापक होनेवाले  ( तस्मै ) = उस  ( ते ) = आपको  ( प्राण ) = जीवनदाता परमेश्वर  ( नमो अस्तु ) = नमस्कार हो । 
     

    भावार्थ

    भावार्थ = जो परमात्मा सब कार्य रूप जगत् और कारण रूप जगत् का स्वामी है उस परमेश्वर को हमारा नमस्कार है ।

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    विषय

    क्षिप्रधन्वा प्राण

    पदार्थ

    १. (यः) = जो प्राण (अस्य) = इस (विश्वजन्मनः) = नानारूप जन्मोंवाले (चेष्टत:) = व्याप्रियमाण चेष्टा करते हुए-(विश्वस्य) = सम्पूर्ण जगत् का (ईशे) = ईश है, और (अन्येषु) = [अन प्राणने] प्राणिशरीरों में (क्षिप्रधन्वने) = [धवि गत्यर्थ:] शीघ्रता से गति व व्यासिवाला है। हे प्राण! (तस्मै ते) = तथाविध तुझे (नमः अस्तु) = नमस्कार हो।

    भावार्थ

    प्राणात्मा प्रभु ही इस सम्पूर्ण संसार के ईश हैं। वे ही सब प्राणिशरीरों में प्राणरूप से व्याप्त हैं। हम उनके लिए नतमस्तक होते हैं।

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    भाषार्थ

    (यः प्राणः) जो प्राण (विश्वजन्मनः) नानाविध जन्मों वाले, (चेष्टतः) और चेष्टा वाले, (अस्य विश्वस्य) इस विश्व का (ईशे) अधीश्वर है, तथा (अन्येषु) अन्य पदार्थों की अपेक्षा (क्षिप्रधन्वने) शीघ्र गति वाला है, (तस्मै ते) उस तेरे प्रति (प्राण) हे प्राण ! (नमः अस्तु) हमारा नम्र भाव हो।

    टिप्पणी

    [जन्मधारी तथा चेष्टावान्, प्राणी होते हैं। उन सब प्राणियों पर प्राणवायु का प्रभुत्व है, क्योंकि विना प्राणवायु के उन का जीवन समाप्त हो जाता है। शरीर में किसी भी अन्य अवयव की गति इतनी शीघ्र नहीं होती जितनी गति कि प्राणापान की होती है। प्राणवायु के प्रतिपादित गुणों की अपेक्षया परमेश्वर में इन गुणों का अतिशय है। परमेश्वर की शीघ्र गति के सम्बन्ध में कहा है कि "तत् धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्" (यजु० ४०।४), अर्थात् परमेश्वर स्थित रहता हुआ ही, दौड़ते हुए अन्यों से आगे निकल जाता है। व्यापक होने से वह तो सदा सर्वत्र पहुंचा हुआ ही है। इस प्रकार प्राणवायु के वर्णन के साथ-साथ परमेश्वर का भी वर्णन मन्त्र में हुआ है। वस्तुतः "नमः" पद परमेश्वर को लक्ष्य करके ही पठित है। क्षिप्रधन्वने=क्षिप्र धवि गतौ।]

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    विषय

    प्राणरूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (यः) जो (अस्य) इस (चेष्टतः विश्वस्य) विश्व, समस्त इस क्रियाशील विश्व के (विश्वजन्मनः) नाना प्रकार की उत्पत्ति पर (ईशे) सामर्थ्यवान् है, अथवा नाना प्रकार से उत्पन्न होने वाले इस क्रियाशील विश्व पर वश कर रहा है और (अन्येषु) अन्य प्राणियों में भी (क्षिप्रधन्वने) अति शीघ्रता से गति दे रहा है। हे (प्राण) हे महान् चैतन्य ! महा प्रभो (तस्मै ते नमः अस्तु) उस तेरे लिये हम नमस्कार करते हैं।

    टिप्पणी

    ‘क्षिप्रधन्वने’ शब्द से भव-शर्वसूक्त अथर्व ० ११। २। ७ में आये ‘अस्त्रा’ शब्द पर प्रकाश पड़ता है। ‘क्षिप्रं गच्छते, व्याप्नुवते’ इति सायणः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भार्गवी वैदर्भिर्ऋषिः। प्राणो देवता। १ शंकुमती, ८ पथ्यापंक्तिः, १४ निचृत्, १५ भुरिक्, २० अनुष्टुबगर्भा त्रिष्टुप, २१ मध्येज्योतिर्जगति, २२ त्रिष्टुप, २६ बृहतीगर्भा, २-७-९, १३-१६-१९-२३-२५ अनुष्टुभः। षडविंशचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (अस्य चेटतः-विश्वजन्मनः-विश्वस्य यः-ईशे ) इस चेष्टा करते हुए-क्रियाशील, एवं सब प्राणिजन्म जिसके अन्दर होते हैं, ऐसे विश्व-जगत का जो स्वामित्व करता है (अन्येषु क्षिप्रधन्वने तस्मै) अन्य प्राणिभिन्न भौतिक पदार्थो चन्द्र शुक आदि पिण्डों में शीघ्रगति कारक हे समष्टि प्राण! उस तेरे लिये स्वागत हो॥२३॥

    विशेष

    ऋषिः — भार्गवो वैदर्भिः ("भृगुभृज्यमानो न देहे"[निरु० ३।१७])— तेजस्वी आचार्य का शिष्य वैदर्भि-विविध जल और औषधियां" यद् दर्भा आपश्च ह्येता ओषधयश्च” (शत० ७।२।३।२) "प्रारणा व आप:" [तै० ३।२।५।२] तद्वेत्ता- उनका जानने वाला । देवता- (प्राण समष्टि व्यष्टि प्राण) इस सूक्त में जड जङ्गम के अन्दर गति और जीवन की शक्ति देनेवाला समष्टिप्राण और व्यष्टिप्राण का वर्णन है जैसे व्यष्टिप्राण के द्वारा व्यष्टि का कार्य होता है ऐसे समष्टिप्राण के द्वारा समष्टि का कार्य होता है । सो यहां दोनों का वर्णन एक ही नाम और रूप से है-

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prana Sukta

    Meaning

    To that Prana which rules this world of infinite variety in existence and, in which, the world of all that thinks, wills and moves, which is the fastest existent dynamic power in all others, to such, O Prana, homage of adoration to you.

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    Translation

    He who is lord of this that has évery (visva) (kind of) birth of every stirring thing -- to thee being such, O breath having a quick bow among the unexausted (? anya), be homage

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    Translation

    Our praise is due to the Prana which possesses very quick movements among others and which has control over all that is born in this world and that which moves.

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    Translation

    Homage to Thee, O God, Who rules over all living beings, and the world that stirs and works, and quickly pervades all atoms.

    Footnote

    God is the Lord of Matter, out of which the world in created and this created world.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २३−(यः) प्राणः परमेश्वरः (अस्य) दृश्यमानस्य (विश्वजन्मनः) विविधजन्मोपेतस्य (ईशे) तलोपः। ईष्टे। ईश्वरो भवति (विश्वस्य) सर्वस्य (चेष्टतः) व्याप्रियमाणस्य (अन्येषु) भिन्नेषु। कारणरूपेषु। (क्षिप्रधन्वने) कनिन् युवृषितक्षिराजिधन्वि०। उ० १।१५६। धवि गतौ-कनिन्, इदित्वान्नुम्। शीघ्रं गच्छते व्याप्नुवते (तस्मै) तथाविधाय (प्राण) (नमः) (अस्तु) (ते) तुभ्यम् ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    য়ো অস্য বিশ্বজন্মন ঈশে বিশ্বস্য চেষ্ঠতঃ।

    অন্যেষু ক্ষিপ্রধন্বনে তস্মৈ প্রাণ নমোস্তুতে ।।৬০।।

    (অথর্ব ১১।৪।২৩)

    পদার্থঃ (য়ঃ) যে পরমেশ্বর (অস্য) এই (বিশ্বজন্মনঃ) নানারূপে জন্ম লাভকারী, (চেষ্ঠতঃ) সতত চেষ্টাশীল, (বিশ্বস্য) সম্পূর্ণ জগতের (ঈশে) ঈশ্বর এবং (অন্যেষু) প্রাণীদের মাঝে (ক্ষিপ্রধন্বনে) ব্যাপ্তিরূপে অবস্থিত; হে (প্রাণ) জীবনদাতা প্রাণস্বরূপ পরমাত্মা! (তস্মৈ তে) সেই তোমাকে (নমঃ অস্তু) নমস্কার করছি।

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ যে পরমাত্মা সমস্ত জগতের ঈশ্বর তথা নিয়ন্ত্রক, যিনি সকলের প্রাণ স্বরূপ; সেই পরমাত্মাকে আমাদের নমস্কার ।।৬০।।

     

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