अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 6
ऋषिः - भार्गवो वैदर्भिः
देवता - प्राणः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - प्राण सूक्त
79
अ॒भिवृ॑ष्टा॒ ओष॑धयः प्रा॒णेन॒ सम॑वादिरन्। आयु॒र्वै नः॒ प्राती॑तरः॒ सर्वा॑ नः सुर॒भीर॑कः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भिऽवृ॑ष्टा: । ओष॑धय: । प्रा॒णेन॑ । सम् । अ॒वा॒दि॒र॒न् । आयु॑: । वै । न॒: । प्र । अ॒ती॒त॒र॒: । सर्वा॑: । न॒: । सु॒र॒भी: । अ॒क॒: ॥६.६॥
स्वर रहित मन्त्र
अभिवृष्टा ओषधयः प्राणेन समवादिरन्। आयुर्वै नः प्रातीतरः सर्वा नः सुरभीरकः ॥
स्वर रहित पद पाठअभिऽवृष्टा: । ओषधय: । प्राणेन । सम् । अवादिरन् । आयु: । वै । न: । प्र । अतीतर: । सर्वा: । न: । सुरभी: । अक: ॥६.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
प्राण की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(अभिवृष्टाः) सींची हुई (ओषधयः) ओषधें [अन्न आदि] (प्राणेन) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] से (सम्) मिलकर (अवादिरन्) बोलीं−“(नः) हमारी (आयुः) आयु को (वै) निश्चय करके (प्र अतीतरः) तूने बढ़ाया है, (नः सर्वाः) हम सबको (सुरभीः) सुगन्धित (अकः) तूने बनाया है” ॥६॥
भावार्थ
वृष्टि से सब अन्न वृक्ष आदि पदार्थ उत्पन्न और पुष्ट होकर संसार का उपकार करते हुए परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं ॥६॥
टिप्पणी
६−(अभिवृष्टाः) अभिषिक्ताः (ओषधयः) अन्नादिपदार्थाः (प्राणेन) म० १। जीवनप्रदेन परमेश्वरेण (सम्) मिलित्वा (अवादिरन्) भासनोपसंभाषाज्ञानयत्नविमत्युपमन्त्रणेषु वदः। पा० १।३।४७। आत्मनेपदम्। भाषणं कृतवत्यः (आयुः) जीवनम् (वै) अवश्यम् (नः) अस्माकम् (प्रातीतरः) त्वं वर्धितवानसि (सर्वाः) (नः) अस्मान् (सुरभीः) सु+रभ-राभस्ये-इन्। सुगन्धयुक्ताः (अकः) कृतवानसि ॥
विषय
ओषधियों का कृतज्ञता प्रकाशन
पदार्थ
१. प्रभु ने ओषधियों के विकास के लिए वृष्टि की। ये (अभिवृष्टाः ओषधयः) = वृष्टिजल ने सिक्त हुई-हुई ओषधियाँ (प्राणेन समवादिन्) = प्राणात्मा प्रभु से संवाद करती हैं कि हे प्रभो! (वै) = निश्चय से तूने (न: आयु:) = हमारी आयु को (प्रातीतर:) = बढ़ाया है और (न सर्वा:) = हम सबको (सुरभी: अक:) = सुगन्धवाला किया है।
भावार्थ
वे प्राणात्मा प्रभु ही मेघरूप से वृष्टि करके सब ओषधिओं को उत्पन्न करते हैं और इन्हें सुगन्ध से युक्त करते हैं।
भाषार्थ
(अभिवृष्टाः ओषधयः) वर्षा द्वारा सींची गई ओषधियों ने (प्राणेन) प्राण के साथ (समवादिरन्) संवाद किया कि (वै) निश्चय से (नः आयुः) हमारी आयु को (प्रातीतरः) तूने बढ़ा दिया हैं, और (नः सर्वाः) हम सब को (सुरभीः) सुगन्धित (अकः) तूने कर दिया है।
टिप्पणी
[प्राण के साथ ओषधियों का संवाद कवितारूप में है। समग्र सूक्त का वर्णन भी कवितामय है]।
विषय
प्राणरूप परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(अभिवृष्टाः ओषधयः) वर्षा के जल से सिंची हुई ओषधियाँ (प्राणेन सम् अवादिरन्) प्राणरूप प्रजापति के साथ सम्वाद करती हैं कि हे प्रजापते ! (नः) हमें तू (वै) निश्चय से (आयुः प्रातीतरः) जीवन प्रदान करता है। (नः सर्वाः) हम सबको तू (सुरभीः अकः) सुरभि, सुगन्धित अथवा सुरभि, कामधेनु के समान फल, रस आदि उत्पन्न करने में समर्थ बना देता है।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘समवाचिरान्’, (तृ०) ‘नः प्राचीचरत्’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भार्गवी वैदर्भिर्ऋषिः। प्राणो देवता। १ शंकुमती, ८ पथ्यापंक्तिः, १४ निचृत्, १५ भुरिक्, २० अनुष्टुबगर्भा त्रिष्टुप, २१ मध्येज्योतिर्जगति, २२ त्रिष्टुप, २६ बृहतीगर्भा, २-७-९, १३-१६-१९-२३-२५ अनुष्टुभः। षडविंशचं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(अभिवृष्टाः ओषधय: प्राणेन समवादिरन्) अभिषिक्त-वर्षा जल से सींची हुई ओषधियों ने समष्टिप्राण के साथ संवाद किया (नः आयुः वै प्रातीतरः) हमारी आयु को तूने बढाया (नः सर्वाः सुरभी:-श्रकः) हम सब को शोभन गन्ध वाली कर दिया ॥६॥
विशेष
ऋषिः — भार्गवो वैदर्भिः ("भृगुभृज्यमानो न देहे"[निरु० ३।१७])— तेजस्वी आचार्य का शिष्य वैदर्भि-विविध जल और औषधियां" यद् दर्भा आपश्च ह्येता ओषधयश्च” (शत० ७।२।३।२) "प्रारणा व आप:" [तै० ३।२।५।२] तद्वेत्ता- उनका जानने वाला । देवता- (प्राण समष्टि व्यष्टि प्राण) इस सूक्त में जड जङ्गम के अन्दर गति और जीवन की शक्ति देनेवाला समष्टिप्राण और व्यष्टिप्राण का वर्णन है जैसे व्यष्टिप्राण के द्वारा व्यष्टि का कार्य होता है ऐसे समष्टिप्राण के द्वारा समष्टि का कार्य होता है । सो यहां दोनों का वर्णन एक ही नाम और रूप से है-
इंग्लिश (4)
Subject
Prana Sukta
Meaning
When showered over and regaled, herbs and trees speak to Prana together: You have given us life and more, you have given us all the beauty and fragrance of life.
Translation
The herbs, being rained on, have talked with breath; “Verily thou hast extended our life-time; thou hast made us all fragrant."
Translation
The herbaceous plants watered by the rain of Prana show their accordance with Prana as it increases the life of them and makes them flagrant.
Translation
Watered by the rain sent by God, the plants raise their voice in accord! and say "Thou hast prolonged our life, and given fragrance to us all"!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(अभिवृष्टाः) अभिषिक्ताः (ओषधयः) अन्नादिपदार्थाः (प्राणेन) म० १। जीवनप्रदेन परमेश्वरेण (सम्) मिलित्वा (अवादिरन्) भासनोपसंभाषाज्ञानयत्नविमत्युपमन्त्रणेषु वदः। पा० १।३।४७। आत्मनेपदम्। भाषणं कृतवत्यः (आयुः) जीवनम् (वै) अवश्यम् (नः) अस्माकम् (प्रातीतरः) त्वं वर्धितवानसि (सर्वाः) (नः) अस्मान् (सुरभीः) सु+रभ-राभस्ये-इन्। सुगन्धयुक्ताः (अकः) कृतवानसि ॥
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