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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भार्गवो वैदर्भिः देवता - प्राणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - प्राण सूक्त
    79

    य॒दा प्रा॒णो अ॒भ्यव॑र्षीद्व॒र्षेण॑ पृथि॒वीं म॒हीम्। प॒शव॒स्तत्प्र मो॑दन्ते॒ महो॒ वै नो॑ भविष्यति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒दा । प्रा॒ण: । अ॒भि॒ऽअव॑र्षीत् । व॒र्षेण॑ । पृ॒थि॒वीम् । म॒हीम् । प॒शव॑: । तत् । प्र । मो॒द॒न्ते॒ । मह॑: । वै । न॒: । भ॒वि॒ष्य॒ति॒ ॥६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदा प्राणो अभ्यवर्षीद्वर्षेण पृथिवीं महीम्। पशवस्तत्प्र मोदन्ते महो वै नो भविष्यति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदा । प्राण: । अभिऽअवर्षीत् । वर्षेण । पृथिवीम् । महीम् । पशव: । तत् । प्र । मोदन्ते । मह: । वै । न: । भविष्यति ॥६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (6)

    विषय

    प्राण की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदा) जब (प्राणः) [जीवनदाता परमेश्वर] ने (वर्षेण) वर्षा द्वारा (महीम्) विशाल (पृथिवीम्) पृथिवी को (अभ्यवर्षीत्) सींच दिया, (तत्) तब (पशवः) जीव-जन्तु (प्र मोदन्ते) बड़ा हर्ष मनाते हैं−“(नः) हमारी (महः) बढ़ती (वै) अवश्य (भविष्यति) होगी” ॥५॥

    भावार्थ

    परमेश्वर की शक्ति से वृष्टि होने पर सब प्राणी बलवृद्धि कर के उत्सव मनाते हैं ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(यदा) यस्मिन् काले (प्राणः) म० १। जीवनदाता परमेश्वरः (अभ्यवर्षीत्) अभिषिक्तवान् (पृथिवीम्) भूमिम्। (महीम्) विशालाम् (पशवः) सर्वे जीवजन्तवः (तत्) तदा (प्रमोदन्ते) (प्रहृष्यन्ति) (महः) वर्धनम् (वै) खलु (नः) अस्माकम् (भविष्यति) ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ =  ( यदा ) = जब  ( प्राणः ) = जीवन दाता परमेश्वर ने  ( वर्षेण ) = वर्षा द्वारा  ( महीम् ) = बड़ी  ( पृथिवीम् ) = पृथिवी को  ( अभ्यवर्षीत् ) =  सींच दिया  ( तत् ) = तब  ( पशव: ) ='पश्यन्तीति पशवः' आंखों से देखनेवाले जीवमात्र  ( प्रमोदन्ते ) = बड़ा हर्ष मनाते हैं । 

    भावार्थ

    भावार्थ = प्राणिमात्र का जीवनदाता परमेश्वर जब वर्षा द्वारा पृथिवी को पानी से तर कर देते हैं तो मनुष्यादि प्राणी बड़े हर्ष को प्राप्त होते हैं कि इस वर्षा से अनेक प्रकार के सुन्दर अन्न, फल व फूल उत्पन्न होकर हमें लाभदायक होंगे । 

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    विषय

    वर्षम्-महः

    पदार्थ

    १. (यदा) = जब (प्राण:) = यह प्राणदाता मेघात्मा प्रभु (महीं पृथिवीम्) = इस महती विस्तीर्ण भूमि को (वर्षेण अभ्यवर्षीद्) = वृष्टि द्वारा अभितः सिक्त करता है, (तत्) = तब (पशवः प्रमोदन्ते) = सब पशु प्रसन्न होते हैं कि (न: महः भविष्यति) = हमारा तो अब उत्सव होगा। वृष्टि से पृथिवी पर सर्वत्र खूब सस्य उत्पन्न होंगे और उनके खाने से हमारा समुचित पोषण होगा।

    भावार्थ

    वृष्टि से अन्न व अन्न से प्राणियों का जीवन होता है। इसप्रकार मेघध्वनि होने पर उज्ज्वल उत्सव की कल्पना करके सब पशु प्रसन्न होते हैं।

     

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    भाषार्थ

    (यदा) जब (प्राणः) प्राण (महीम्, पृथिवीम्, अभि) बड़ी तथा विस्तीर्ण भूमि को लक्ष्य करके (वर्षेण) वर्षा द्वारा (अवर्षीत्) सींचता है, (तत्) तब (पशवः प्रमोदन्ते) पशु प्रमुदित अर्थात् प्रसन्न होते हैं कि (वै) निश्चय से (नः) हमारे लिये (महः) महान् अन्न (भविष्यति) होगा।

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    विषय

    प्राणरूप परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (यदा) जब (प्राणः) प्राणस्वरूप सबका प्राणप्रद मेघरूप होकर प्रजापति (वर्षेण) वर्षा द्वारा (महीम् पृथिवीम्) विशाल पृथ्वी पर (अभि अवर्षीत्) बरसता है (तत्) तब (पशवः प्र मोदन्ते) पशु प्रसन्न होते हैं कि (नः) हमारे लिये (महः वै भविष्यति) बड़ा भारी जीवनाधार अन्न उत्पन्न होगा।

    टिप्पणी

    (प्र० द्वि०) ‘यदा प्राणोऽभ्यनन्दी वर्षेणस्तनयित्नुना’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भार्गवी वैदर्भिर्ऋषिः। प्राणो देवता। १ शंकुमती, ८ पथ्यापंक्तिः, १४ निचृत्, १५ भुरिक्, २० अनुष्टुबगर्भा त्रिष्टुप, २१ मध्येज्योतिर्जगति, २२ त्रिष्टुप, २६ बृहतीगर्भा, २-७-९, १३-१६-१९-२३-२५ अनुष्टुभः। षडविंशचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (यदा प्राणः वर्षेण महीं पृथिवीम् अभ्यवर्षीत्) जब समष्टिप्राण वर्षा द्वारा महती पृथिवी को सींच देता है (तत् पशवः प्रमोदन्ते नः वै महः भविष्यति) पशु प्रमोदित होते हैं, निश्चय हमारे लिये महत्-बहुत खाने योग्य होगा ॥५॥

    विशेष

    ऋषिः — भार्गवो वैदर्भिः ("भृगुभृज्यमानो न देहे"[निरु० ३।१७])— तेजस्वी आचार्य का शिष्य वैदर्भि-विविध जल और औषधियां" यद् दर्भा आपश्च ह्येता ओषधयश्च” (शत० ७।२।३।२) "प्रारणा व आप:" [तै० ३।२।५।२] तद्वेत्ता- उनका जानने वाला । देवता- (प्राण समष्टि व्यष्टि प्राण) इस सूक्त में जड जङ्गम के अन्दर गति और जीवन की शक्ति देनेवाला समष्टिप्राण और व्यष्टिप्राण का वर्णन है जैसे व्यष्टिप्राण के द्वारा व्यष्टि का कार्य होता है ऐसे समष्टिप्राण के द्वारा समष्टि का कार्य होता है । सो यहां दोनों का वर्णन एक ही नाम और रूप से है-

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prana Sukta

    Meaning

    When Prana showers with torrents of rain on the great earth, then all living beings rejoice: there is going to be great plenty of food and prosperity, they celebrate.

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    Translation

    When breath hath rained with rain upon the great earth, then the cattle are delighted : "Verily there will be greatness for us."

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    Translation

    When this Prana pours down the flood of rain upon the grand earth the cattle and beasts rejoice and realize that there will be great strength to them.

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    Translation

    When God waters the mighty land with flood of rain; cattle and beasts rejoice thereat: now great will be the production of corn for us, they cry.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(यदा) यस्मिन् काले (प्राणः) म० १। जीवनदाता परमेश्वरः (अभ्यवर्षीत्) अभिषिक्तवान् (पृथिवीम्) भूमिम्। (महीम्) विशालाम् (पशवः) सर्वे जीवजन्तवः (तत्) तदा (प्रमोदन्ते) (प्रहृष्यन्ति) (महः) वर्धनम् (वै) खलु (नः) अस्माकम् (भविष्यति) ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    য়দা প্রাণো অভ্যবর্ষীদ্বর্ষেণ পৃথিবীং মহীম্।

    পশবস্তৎ প্র মোদন্তে মহো বৈ নো ভবিষ্যতি ।।৪৯।।

    (অথর্ব ১১।৪।৫)

    পদার্থঃ (য়দা) যখন (প্রাণঃ) জীবনদাতা পরমেশ্বর (বর্ষেণ) বর্ষা দ্বারা (মহীম্ পৃথিবীম্) বিস্তীর্ণ পৃথিবীকে (অভ্যবর্ষীৎ) সিক্ত করে, (তৎ) তখন (পশবঃ) জীবমাত্র (প্র মোদন্তে) আনন্দিত হয় এই ভেবে- (নঃ) আমাদের (মহঃ বৈ ভবিষ্যতি) এখন অনেক লাভ হবে।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ প্রাণিমাত্রের জীবনদাতা পরমেশ্বর যখন বর্ষা দ্বারা পৃথিবীকে সিক্ত করেন, তখন মনুষ্যাদি প্রাণী আনন্দিত হয় এই ভেবে যে, এই বর্ষার ফলে এখন প্রচুর ফল-ফুল-অন্ন উৎপন্ন হবে ।।৪৯।।

     

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