अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 13
गोभ्यो॒ अश्वे॑भ्यो॒ नमो॒ यच्छाला॑यां वि॒जाय॑ते। विजा॑वति॒ प्रजा॑वति॒ वि ते॒ पाशां॑श्चृतामसि ॥
स्वर सहित पद पाठगोभ्य॑: । अश्वे॑भ्य: । नम॑: । यत् । शाला॑याम् । वि॒ऽजाय॑ते । विजा॑ऽवति । प्रजा॑ऽवति । वि । ते॒ । पाशा॑न् । चृ॒ता॒म॒सि॒ ॥३.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
गोभ्यो अश्वेभ्यो नमो यच्छालायां विजायते। विजावति प्रजावति वि ते पाशांश्चृतामसि ॥
स्वर रहित पद पाठगोभ्य: । अश्वेभ्य: । नम: । यत् । शालायाम् । विऽजायते । विजाऽवति । प्रजाऽवति । वि । ते । पाशान् । चृतामसि ॥३.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]
पदार्थ
(गोभ्यः) गौओं के लिये, (अश्वेभ्यः) घोड़ों के लिये और (यत्) जो कुछ (शालायाम्) शाला में (विजायते) उत्पन्न होवे, [उसके लिये] (नमः) अन्न [होवे]। (विजावति) हे विविध उत्पन्न पदार्थोंवाली ! और (प्रजावति) हे उत्पन्न प्रजाओंवाली ! (ते) तेरे (पाशान्) बन्धनों को (विचृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥१३॥
भावार्थ
मनुष्यों को विविध पोषणसामग्री सुदृढ़ घरों में रखनी उचित है ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(गोभ्यः) गवां रक्षणाय (अश्वेभ्यः) अश्वानां पोषणाय (नमः) अन्नम् (यत्) अपत्यजातम् (शालायाम्) गृहे (विजायते) विविधमुत्पद्यते (विजावति) हे विविधोत्पन्नपदार्थयुक्ते (प्रजावति) हे श्रेष्ठप्रजाविशिष्टे (ते) तव (पाशान्) निर्माणबन्धान् (विचृतामसि) ॥
विषय
'विजावती प्रजावती' शाला
पदार्थ
१. इस घर में होनेवाले (गोभ्यः अश्वेभ्यः) = गौओं व घोड़ों के लिए (नमः) = उचित अन्न दाना-घास प्राप्त कराते हैं [नमः अन्न]। (शालायां विजायते) = इस घर में विशिष्टरूप से (यत्) = जो पदार्थ है, उस सबके लिए हम आदर का भाव रखते हैं, उन सबका समुचित प्रयोग करते हैं। समुचित प्रयोग ही उनका आदर है। २. हे (विजावति) = विविध पदार्थों को उत्पन्न करनेवाली. (प्रजावति) = उत्तम सन्तानोंवाली शाले! (ते पाशान्) = तेरे सब जालों व बन्धनों को (विचृतामसि) = विशेषरूप से ग्रथित करते हैं।
भावार्थ
घर में होनेवाली गौओं और घोड़ों को समुचित दाना-मास प्राप्त कराया जाए। गृह के सब पदार्थों का समुचित प्रयोग हो। गृह के सब बन्धनों को सुदृढ़ बनाया जाए।
भाषार्थ
(गोभ्यः) गौओं के लिये, (अश्वेभ्यः) अश्वों के लिये (नमः) अन्न प्रदान हम करते हैं, (यत्) जोकि (शालायाम्) शाला में (विजायते) जन्म लेता है, उसे भी अन्न प्रदान करते हैं। (विजावति) हे विविध जीवजन्तुओं वाली ! (प्रजावति) हे प्रकृष्ट-सन्तानों वाली शाला ! (ते पाशान्) तेरे फन्दों, रस्सियों को (वि चृतामसि) हम दृढ़ ग्रथित करते हैं।
विषय
शाला, महाभवन का निर्माण और प्रतिष्ठा।
भावार्थ
(गोभ्यः) गौओं और (अक्षेभ्यः) घोड़ों के लिए, और (यत्) जो भी (शालायां वि-जायते) शाला या गृह में अन्य प्राणी उत्पन्न होते हैं (नमः) उनको अन्न दिया जाय। हे (विजावति) नाना प्रकार के प्राणियों को उत्पन्न करने वाली ! हे (प्रजावति) प्रजा पुत्रादि से सम्पन्न शाले ! (ते पाशान्) तेरे पाशों को हम (वितामसि) नाना प्रकार से खोलते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। शाला देवता। १, ५ , ८, १४, १६, १८, २०, २२, २४ अनुष्टुभः। ६ पथ्यापंक्तिः। ७ परा उष्णिक्। १५ त्र्यवसाना पञ्चपदातिशक्वरी। १७ प्रस्तारपंक्तिः। २१ आस्तारपंक्तिः। २५, ३१ त्रिपादौ प्रजापत्ये बृहत्यौ। २६ साम्नी त्रिष्टुप्। २७, २८, २९ प्रतिष्ठा नाम गायत्र्यः। २५, ३१ एकावसानाः एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Good House
Meaning
Let there be food and plenty with love for cows, for horses, and for whosoever is born in the house. O creative home and family, O mistress of your children, we thus define all aspects of the life to be lived in the home.
Translation
Our homage be to cows and to horses, whatever is born in this mansion. O mansion rich in births (vijavati) and full of children (prjavati), we untie your ceremonial barring nets.
Translation
We give water and fodder to cows and houses who are born in this house. We loose the bands and ties of this house which is fortunate with the progeny and children of the persons living in it.
Translation
Food to kine and steeds! to all that shall be born within the house! We strengthen the bonds that fasten thee, O house, full of variety of articles and children!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(गोभ्यः) गवां रक्षणाय (अश्वेभ्यः) अश्वानां पोषणाय (नमः) अन्नम् (यत्) अपत्यजातम् (शालायाम्) गृहे (विजायते) विविधमुत्पद्यते (विजावति) हे विविधोत्पन्नपदार्थयुक्ते (प्रजावति) हे श्रेष्ठप्रजाविशिष्टे (ते) तव (पाशान्) निर्माणबन्धान् (विचृतामसि) ॥
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