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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 27
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - एकावसाना त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री सूक्तम् - शाला सूक्त
    61

    प्र॒तीच्या॑ दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्येभ्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒तीच्या॑: । दि॒श: । शाला॑या: । नम॑: । म॒हि॒म्ने । स्वाहा॑ । दे॒वेभ्य॑: । स्वा॒ह्ये᳡भ्य: ३.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रतीच्या दिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाह्येभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रतीच्या: । दिश: । शालाया: । नम: । महिम्ने । स्वाहा । देवेभ्य: । स्वाह्येभ्य: ३.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 27
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

    पदार्थ

    (प्रतीच्याः दिशः) पश्चिम दिशा से... म० २५ ॥२७॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य है कि पूर्वादि सब दिशाओं से पुष्कल अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके शाला में रक्खें, जिस में विद्वान् लोग वेदों का विचार करते रहें ॥२५-३१॥

    टिप्पणी

    २७−(प्रतीच्याः) अ० ३।२६।३। पश्चिमायाः सकाशात् ॥

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    विषय

    प्रभु-नमन-देववन्दन

    पदार्थ

    १. (शालाया:) = इस शाला की (प्राच्याः दिश:) = पूर्व दिशा से (महिने नमः) = उस प्रभु की महिमा के लिए हम नतमस्तक हों और साथ ही (स्वाहोभ्य:) = [सु आह] उत्तम शब्द बोलने योग्य-प्रशस्य (देवेभ्यः) = देववृत्ति के विद्वान् पुरुषों के लिए (स्वाहा) = हम प्रशस्त शब्दों को कहें विद्वानों का समुचित आदर करें। २. इसी प्रकार (शालाया:) = शाला की दक्षिण दिशा से, (प्रतीच्याः दिश:) = पश्चिम दिशा से (उदिच्याः दिश:) = उत्तर दिशा (ध्रुवायाः दिश:) =  ध्रुव [नीचे की] दिशा से (ऊर्ध्वाया: दिश:) = ऊर्ध्वा दिक् से तथा (दिश:दिशः) = सब दिशाओं-प्रदिशाओं से हम उस प्रभु की महिमा के लिए नतमस्तक हों और प्रशंसनीय देवों के लिए प्रशंसा के शब्दों को कहें।

    भावार्थ

    हमारे घरों में सर्वत्र प्रभु की महिमा के प्रति नमन हो तथा वन्दनीय विद्वानों का उचित समादर हो।

    विशेष

    विशेष-घर में ब्रह्म की महिमा के प्रति सदा नतमस्तक होता हुआ तथा देववन्दन करता हुआ यह उन्नत होता हुआ 'ब्रह्मा' बनता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है। यह ऋषभ नाम से प्रभु-स्तवन करता है

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    भाषार्थ

    पश्चिम दिशा से, शाला के महत्व या महिमा१ के लिये हम अन्नाहुतियां देते हैं, अर्थात् स्वाहायोग्य देवों के प्रति स्वाहा पद के उच्चारणपूर्वक अन्नाहुतियां देते हैं।

    टिप्पणी

    [१. शाला परिमाण की दृष्टि से अल्पकाया हो या महाकाया परन्तु उपयोग की दृष्टि से उसकी महिमा।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Good House

    Meaning

    Honour and homage to the west direction’s beauty and grandeur of the home and to all these divinities and nobilities in truth of word and deed.

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    Translation

    From the westem side, let our homage be to the grandeur of the mansion. Svaha to the enlightened ones, to whom Svaha is due.

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    Translation

    May from the west side of this house we attain the grandeur of prosperity. Whatever is uttered herein is true. Let this be the resort of the learned scholars performing yajna and propagating the knowledge of the Vedic speech.

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    Translation

    Now from the west side of the house to the Almighty God be homage paid. Reverence to the learned whom reverence is due.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २७−(प्रतीच्याः) अ० ३।२६।३। पश्चिमायाः सकाशात् ॥

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