अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 24
मा नः॒ पाशं॒ प्रति॑ मुचो गु॒रुर्भा॒रो ल॒घुर्भ॑व। व॒धूमि॑व त्वा शाले यत्र॒कामं॑ भरामसि ॥
स्वर सहित पद पाठमा । न॒: । पाश॑म् । प्रति॑ । मु॒च॒: । गु॒रु: । भा॒र: । ल॒घु: । भ॒व॒ । व॒धूम्ऽइ॑व । त्वा॒ । शा॒ले॒ । य॒त्र॒ऽकाम॑म् । भ॒रा॒म॒सि॒ ॥३.२४॥
स्वर रहित मन्त्र
मा नः पाशं प्रति मुचो गुरुर्भारो लघुर्भव। वधूमिव त्वा शाले यत्रकामं भरामसि ॥
स्वर रहित पद पाठमा । न: । पाशम् । प्रति । मुच: । गुरु: । भार: । लघु: । भव । वधूम्ऽइव । त्वा । शाले । यत्रऽकामम् । भरामसि ॥३.२४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]
पदार्थ
(शाले) हे शाला ! तू (नः) हमारे लिये [अपने] (पाशम्) बन्धन को (मा प्रति मुचः) मत कभी छोड़, (गुरुः) भारी (भारः) बोझ तू (लघुः) हलका (भव) हो जा, (वधूम् इव) वधू के समान (त्वा) तुझको (यत्रकामम्) जहाँ कामना हो, वहाँ (भरामसि) हम पुष्ट करते हैं ॥२४॥
भावार्थ
शिल्पी लोग शाला के जोड़ों को सुदृढ़ मिलावें, और अच्छे प्रकार लम्बी चौड़ी बनाकर सुखदायिनी करें, और कुलवधू के समान आवश्यकीय पदार्थों से उसको परिपूर्ण करें ॥२४॥ यह मन्त्र स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥
टिप्पणी
२४−(नः) अस्मभ्यम् (पाशम्) शालाबन्धनम् (मा प्रति मुचः) मा कदापि त्यज (गुरुः) गॄ शब्दे विज्ञापने-उ, उच्च। गुरुत्ववान् (भारः) गुरुत्ववान् पदार्थः (लघुः) लाघवगुणान्वितः। मनोहरः (भव) (वधूम्) नवोढां भार्याम् (इव) यथा (त्वा) (शाले) (यत्रकामम्) यत्र कामना भवेत् तत्र (भरामसि) पोषयामः। दृढीकुर्मः ॥
विषय
घर, न कि सतत बन्धन
पदार्थ
१. हे (शाले) = गृह ! तू (नः पाशं मा प्रतिमुच:) हमारे लिए बन्धन करनेवाला न हो-हम सदा घर में ही बैंधे न रह जाएँ। (गुरु: भारः) = एक घर का भार बहुत है, (लघुः भव) = प्रभुकृपा से यह हल्का हो जाए। हम गृहस्थ के बोझ को उठाने में समर्थ हों और धीरे-धीरे अपने उत्तरदायित्वों को पूर्ण करते हुए हल्के हो सकें२. हे शाले! इसप्रकार उत्तरदायित्व के बोझ से रहित होकर अब हम इसी प्रकार तुझे (यत्र कामम्) = इच्छानुसार जहाँ-तहाँ (भरामसि) = ले जानेवाले हों, (इव) = जिस प्रकार कि हम एक दिन (वधूम्) = वधू को पितृगृह से इच्छानुसार अपने घर में लाये थे। एक दिन हम गृहस्थ बने थे। अब गृहस्थ के बोझ को सम्यक् उठाने के बाद वनस्थ होते हुए घर के बन्धन से मुक होते हैं तथा इच्छानुसार किसी अन्य स्थान में डेरा डालते हैं।
भावार्थ
घर हमारे लिए सदा के लिए बन्धन न हो जाएँ। गृहस्थ का बोझ धीमे-धीमे हल्का होता जाए। अन्तत: इस बोझ का निर्वहन करके हम बनस्थ होकर इच्छानुसार स्थानान्तर में बसेरा करें।
भाषार्थ
(नः) हमारे (पाशाम्) पाशों को (मा प्रति मुचः) ढीला न कर, (गुरुः भारः) भारी भार (लघुः भव) हल्का हो जाय। (शाले) हे शाला ! (वधूम् इव१) वधू के सदृश (यत्र कामम्) जहां हमारी इच्छा हो वहां (त्वा) तुझे (भरामसि) हम ले जांय।
टिप्पणी
[प्रतिमुचः; प्रतिमुच्= to free, liberate, release, यथा- अमुंतुरङ्गं प्रतिमोक्तुमर्हसि (आप्टे)। लघुर्भव= चूंकि शाला पद्वती है, इस में चक्र अर्थात् पहिये लगे हुए हैं, इसलिये स्थानान्तरित करने में यह भारी प्रतीत नहीं होती अपितु लघु प्रतीत होती है (मन्त्र १७ पद्वती)। नः पाशम्= हमने जो पाश तुझ पर बान्धे हैं उन्हें तू ढीला न कर, जब कि तुझे स्थानान्तरित किया जाय।] [१. वधू की उपमा यह दर्शाने के लिये दी है कि जैसे वधू पद्वती है, पैरों से चलती है, इसी प्रकार शाला भी पद्वती है, और पैरों=चक्रों=पहियों द्वारा चलती है।]
विषय
शाला, महाभवन का निर्माण और प्रतिष्ठा।
भावार्थ
हे (शाले) शाले ! (नः) हमारे लगाए (पाशम्) बंधन को (मा प्रति मुचः) धारण मत कर, अब न रख। हे शाले ! (गुरुः भारः) तेरा भार बहुत अधिक है। तू (लघुः भव) हलकी होजा। हे शाले ! हमारी इच्छा है कि (त्वा) तुझको (वधूम इव) वधु, नवविवाहित कन्या के समान सुसज्जित करें (यत्र कामं) और जहां इच्छा हो (भरामसि) तुझे ले जायँ। इस मंत्र में एक स्थान से स्थानान्तर में ले जाने लायक गृह का वर्णन वेद ने किया है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। शाला देवता। १, ५ , ८, १४, १६, १८, २०, २२, २४ अनुष्टुभः। ६ पथ्यापंक्तिः। ७ परा उष्णिक्। १५ त्र्यवसाना पञ्चपदातिशक्वरी। १७ प्रस्तारपंक्तिः। २१ आस्तारपंक्तिः। २५, ३१ त्रिपादौ प्रजापत्ये बृहत्यौ। २६ साम्नी त्रिष्टुप्। २७, २८, २९ प्रतिष्ठा नाम गायत्र्यः। २५, ३१ एकावसानाः एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Good House
Meaning
Home, sweet home, let not the bond go loose for our sake. Let the burden, even if it be heavy, be light to bear and live with. We bear and build the home wherever we love to be, and love the home as a darling new bride.
Translation
May you not fasten any noose on us. A heavy burden, may you become light. O mansion, we full you to your desire, just like (we decorate) a bride.
Translation
Let not this house cut its ties from us, let the burden of maintaining it be light. We, like bride construct this at the place which we select and choose.
Translation
Lay thou O house no noose or impediment on us; a weighty burden, still be light! Wheresoever be our will, we carry thee, decorating thee like a bride.
Footnote
Swami Dayanand has translated this verse in the Sanskar Vidhi. The house should be constructed in a way, that it be light and portable houses can be made from one place to the other. Such of timber and straw.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२४−(नः) अस्मभ्यम् (पाशम्) शालाबन्धनम् (मा प्रति मुचः) मा कदापि त्यज (गुरुः) गॄ शब्दे विज्ञापने-उ, उच्च। गुरुत्ववान् (भारः) गुरुत्ववान् पदार्थः (लघुः) लाघवगुणान्वितः। मनोहरः (भव) (वधूम्) नवोढां भार्याम् (इव) यथा (त्वा) (शाले) (यत्रकामम्) यत्र कामना भवेत् तत्र (भरामसि) पोषयामः। दृढीकुर्मः ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal