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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शाला सूक्त
    73

    यत्ते॑ न॒द्धं वि॑श्ववारे॒ पाशो॑ ग्र॒न्थिश्च॒ यः कृ॒तः। बृह॒स्पति॑रिवा॒हं ब॒लं वा॒चा वि स्रं॑सयामि॒ तत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ते॒ । न॒ध्दम् । वि॒श्व॒ऽवा॒रे॒ । पाशे॑: । ग्र॒न्थि: । च॒ । य: । कृ॒त: । बृह॒स्पति॑:ऽइव । अ॒हम् । ब॒लम् । वा॒चा । वि । स्रं॒स॒या॒मि॒ । तत् ॥३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्ते नद्धं विश्ववारे पाशो ग्रन्थिश्च यः कृतः। बृहस्पतिरिवाहं बलं वाचा वि स्रंसयामि तत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । ते । नध्दम् । विश्वऽवारे । पाशे: । ग्रन्थि: । च । य: । कृत: । बृहस्पति:ऽइव । अहम् । बलम् । वाचा । वि । स्रंसयामि । तत् ॥३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

    पदार्थ

    (विश्ववारे) हे सब उत्तम पदार्थोंवाली ! (यत्) जिस कारण से (ते) तेरा (नद्धम्) बन्धन, (पाशः) जाल (च) और (ग्रन्थिः) गाँठ (यः) जो (कृतः) बनाई गई है, (तत्) उसी कारण से (बृहस्पतिः इव) बड़े विद्वान् के समान (अहम्) मैं (बलम्) अन्नराशि को (वाचा) वाणी [विद्या] के साथ (वि) विशेष करके (स्रंसयामि) पहुँचाता हूँ ॥२॥

    भावार्थ

    मनष्य शाला के सब अङ्गों को ठीक-ठीक बना के अन्न आदि से भरपूर करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यत्) यस्मात् कारणात् (ते) तव (नद्धम्) बन्धनम् (विश्ववारे) सर्ववरणीयपदार्थयुक्ते (पाशः) जालः (ग्रन्थिः) ग्रन्थ सन्दर्भे-इन्। सन्धिसाधनम् (च) (यः) (कृतः) निष्पादितः (बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाचः पालकः (इव) यथा (अहम्) गृहस्थः (बलम्) बल प्राणने धान्यावरोधने च-अच्। धान्यराशिम् (वाचा) वाण्या। विद्यया सह (वि) विशेषेण (स्रंसयामि) स्रंसु अधःपतने-णिच्। प्रवेशयामि (तत्) तस्मात् कारणात् ॥

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    विषय

    पाशों व ग्रन्थियों की दृढ़ता

    पदार्थ

    १. हे (विश्ववारे) = सब वरणीय पदार्थोंवाली व सब ओर द्वारोंवाली शाले! (यत् ते नद्धम्) = जो तेरा बन्धन (यः पाश:) = जो जाल (ग्रन्थिः च) = और जोड़ (कृत:) = किया गया है, (अहम्) = मैं (तत्) = उसे उसी प्रकार (वाचा) = वेदवाणी के निर्देशानुसार (विस्त्रंसयामि) = [संसु अध:पतने] विगत पतनवाला करता हूँ, (इव) = जैसेकि (बृहस्पतिः) = एक ज्ञानी पुरुष (वाचा) = वेदवाणी के निर्देशानुसार कर्म करता हुआ (बलम्) = बल को विगत पतनवाला करता है।

    भावार्थ

    मैं वेदवाणी के निर्देशानुसार कर्म करता हुआ इस शाला के बन्धनों, जालों व ग्रन्थियों को पतनशून्य व दृढ़ करता हूँ।

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    भाषार्थ

    (विश्ववारे) हे सब ओर द्वारों वाली या सब ओर से आवृत हुई। शाला ! (ते) तेरा (यत् नद्धम्) जो बन्धन है, (च) और (यः) जो (पाशः ग्रन्थिः कृतः) पाश और गांठ की गई है (तत्) उसे (वाचा) निज कथन या आज्ञा द्वारा, (अहम् विस्रंसयामि) ढीलेपन से या गिरने से विगत मैं करता हूं, उसे सुदृढ़ करता हूं, (इव) जैसे कि (बृहस्पतिः) निज सौर मण्डल में बड़ा सूर्य, (बलम्) बलशाली मेघ को, [अन्तरिक्ष में] सुदृढ़ करता है। [पाशः= रस्सी।]

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    विषय

    शाला, महाभवन का निर्माण और प्रतिष्ठा।

    भावार्थ

    हे (विश्ववारे) समस्त वरणीय उत्तम पदार्थों से सम्पन शाले ! (यत्) जो (ते) तेरे (नद्धं) बंधा बन्धन और (यः) जो (पाशः ग्रन्थिः च) पाश और गांठ बनाई गई है (बृहस्पतिः) बृहहरति, वेद का विद्वान् (इव) जिस प्रकार (वाचा) अपनी उपदेशवाणी से (बलम्) आसुर कर्मों के बल को खोलता या ढीला कर देता है उसी प्रकार (अहम्) मैं (वाचा) वेदमन्त्र या अपनी आज्ञा द्वारा (बलम्) शाला के आवरण को (वि स्रंसयामि) पृथक् खोल दूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। शाला देवता। १, ५ , ८, १४, १६, १८, २०, २२, २४ अनुष्टुभः। ६ पथ्यापंक्तिः। ७ परा उष्णिक्। १५ त्र्यवसाना पञ्चपदातिशक्वरी। १७ प्रस्तारपंक्तिः। २१ आस्तारपंक्तिः। २५, ३१ त्रिपादौ प्रजापत्ये बृहत्यौ। २६ साम्नी त्रिष्टुप्। २७, २८, २९ प्रतिष्ठा नाम गायत्र्यः। २५, ३१ एकावसानाः एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Good House

    Meaning

    The joint, bond, connection, fixture, whatever it is of the whole structure of the home, open and all round ventilated, I secure firmly to full strength and balance with detailed instructions of specifications in clear unambiguous words and I do it as a master of the science of architecture.

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    Translation

    O (mansion), full of choicest things, what ceremonial barring net (pasah) and knot (granthih) has been tied to you, that I detach, just as the Lord supreme disperses the opposing forces with the sacred speech (vaca)

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    Translation

    I, the owner of the house, loose whatever knot, whatever knot and whatever cord is attached to build the beautiful house like the atmospheric vault which discloses the firm tic of cloud through the thundering sound of lightning.

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    Translation

    O house, the holder of all precious objects, I untie each knot and band, each cord that is attached to thee, as a scholar of the Vedas wards off all evil propensities with his Vedic knowledge!

    Footnote

    I: A householder.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यत्) यस्मात् कारणात् (ते) तव (नद्धम्) बन्धनम् (विश्ववारे) सर्ववरणीयपदार्थयुक्ते (पाशः) जालः (ग्रन्थिः) ग्रन्थ सन्दर्भे-इन्। सन्धिसाधनम् (च) (यः) (कृतः) निष्पादितः (बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाचः पालकः (इव) यथा (अहम्) गृहस्थः (बलम्) बल प्राणने धान्यावरोधने च-अच्। धान्यराशिम् (वाचा) वाण्या। विद्यया सह (वि) विशेषेण (स्रंसयामि) स्रंसु अधःपतने-णिच्। प्रवेशयामि (तत्) तस्मात् कारणात् ॥

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