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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 2/ मन्त्र 12
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    यौ ते॒ श्वानौ॑यम रक्षि॒तारौ॑ चतुर॒क्षौ प॑थि॒षदी॑ नृ॒चक्ष॑सा। ताभ्यां॑ राज॒न्परि॑ धेह्येनंस्व॒स्त्यस्मा अनमी॒वं च॑ धेहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यौ । ते॒ । श्वानौ॑ । य॒म॒ । र॒क्षि॒तारौ॑ । च॒तु॒:ऽअ॒क्षौ । प॒थि॒सदी॒ इति॑ प॒थि॒ऽसदी॑ । नृ॒ऽचक्ष॑सा । ताभ्या॑म् । रा॒ज॒न् । परि॑ । धे॒हि॒ । ए॒न॒म् । स्व॒स्ति । अ॒स्मै॒ । अ॒न॒मी॒वम् । च॒ । धे॒हि॒ ॥२.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यौ ते श्वानौयम रक्षितारौ चतुरक्षौ पथिषदी नृचक्षसा। ताभ्यां राजन्परि धेह्येनंस्वस्त्यस्मा अनमीवं च धेहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यौ । ते । श्वानौ । यम । रक्षितारौ । चतु:ऽअक्षौ । पथिसदी इति पथिऽसदी । नृऽचक्षसा । ताभ्याम् । राजन् । परि । धेहि । एनम् । स्वस्ति । अस्मै । अनमीवम् । च । धेहि ॥२.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 12

    भाषार्थ -
    (यम) हे जगन्नियामक ! (चतुरक्षौ) चार-चार आंखोंवाले, (पथिषदी) आत्मिकोन्नति के मार्ग में रुकावटरूप में स्थित, (नृचक्षसा) आगे न बढ़ने देने के लिये नर-नारियों पर दृष्टि रखनेवाले, (ते) आपके (यौ श्वानौ) जो दो कुत्ते हैं, (रक्षितारौ) जो मानो नर-नारियों के रक्षक बने हुए हैं, (राजन्) हे जगत्स्वामिन्! (ताभ्याम्) उन कुत्तों के द्वारा, आप ने इस के कर्मानुसार, (एनम्) इस नर-नारी जगत् पर (परि धेहि) घेरा डाल रखा है। (अस्मे) इस नर-नारी जगत् का हे प्रभो ! (स्वस्ति) आप कल्याण (धेहि) कीजिये, (अनमीवं च) और इसे अज्ञान के रोग से रहित कीजिये।

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