अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 2/ मन्त्र 33
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
अपा॑गूहन्न॒मृतां॒ मर्त्ये॑भ्यः कृ॒त्वा सव॑र्णामदधु॒र्विव॑स्वते।उ॒ताश्विना॑वभर॒द्यत्तदासी॒दज॑हादु॒ द्वा मि॑थु॒ना स॑र॒ण्यूः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒प । अ॒गू॒ह॒न् । अ॒मृता॑म् । मर्त्ये॑भ्य: । कृ॒त्वा । सऽव॑र्णाम् । अ॒द॒धु॒: । विव॑स्वते । उ॒त । अ॒श्विनौ॑ । अ॒भ॒र॒त् । यत् । तत् । आसी॑त् । अज॑हात् । ऊं॒ इति॑ । द्वा । मि॒थु॒ना । स॒र॒ण्यू: ॥२.३३॥
स्वर रहित मन्त्र
अपागूहन्नमृतां मर्त्येभ्यः कृत्वा सवर्णामदधुर्विवस्वते।उताश्विनावभरद्यत्तदासीदजहादु द्वा मिथुना सरण्यूः ॥
स्वर रहित पद पाठअप । अगूहन् । अमृताम् । मर्त्येभ्य: । कृत्वा । सऽवर्णाम् । अदधु: । विवस्वते । उत । अश्विनौ । अभरत् । यत् । तत् । आसीत् । अजहात् । ऊं इति । द्वा । मिथुना । सरण्यू: ॥२.३३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 33
भाषार्थ -
परमेश्वरीय शक्तियों ने (अमृताम्) उषा को (मर्त्येभ्यः) मनुष्यों से (अपागूहन्) छिपा दिया, और (सवर्णाम्) उषासदृश वर्णवाली या सूर्य के समान वर्णवाली सौर-प्रभा को (कृत्वा) प्रकट करके (विवस्वते) सूर्य के लिये, परमेश्वरीय शक्तियों ने (अदधुः) दे दिया, या स्थापित कर दिया। (उत) तदनन्तर (यत्) जो सूर्यारूप (आसीत्) था, (तत्) उसे सूर्या ने (अजहात्) त्याग दिया। तब (सरण्यूः) सरण्यूरूप धारण कर उस ने (अश्विनौ) अश्वियों को (अभरत्) पैदा किया, जो कि (द्वा) दो थे, और (मिथुना) परस्पर में मिथुनरूप थे।
टिप्पणी -
[सरण्यूः= जब सूर्यप्रभा प्रकाशित भूभाग से सरण करनेवाली हो जाती है, तब उसे "सरण्यू" कहते हैं। यह सायं-सन्ध्या का समय है। इस समय पौर्णमासी के दिन, पश्चिम में सूर्यास्त के लगभग, पूर्व दिशा में चन्द्रमा होता है। मानो इस सरण्यू ने सूर्य और चन्द्रमा रूप अश्वियों को पैदा किया है। निरुक्तकार ने "एके" कह कर 'अश्विनौ' पद द्वारा "सूर्याचन्द्रमसौ" को भी सूचित किया है। ये दोनों अश्वों अर्थात् किरणोंवाले हैं। इसलिये 'अश्विनौ' है। 'अश्विनौ' का अर्थ है, "अश्वोवाले" किरणोंवाले। ये दो हैं, और परस्पर में मिथुनरूप हैं। प्रश्नोपनिषद् में सूर्य को प्राण तथा चन्द्रमा को रयि कहकर, इन दोनों को मिथुन कहा है। यथा - स तपस्तप्त्वा मिथुनमुत्पादयते, रयिं च प्राणं च। आदित्यो ह वै प्राणो रयिरेव चन्द्रमाः"। कईयों के मत में "अश्विनौ" अहोरात्र हैं, दिन और रात। दिन में सूर्य की किरणें होती हैं, और रात्रि में चन्द्रमा तथा द्युलोक के नक्षत्रों और तारागणों की किरणें होती हैं। सरण्युकाल में दिन और रात का संगम रहता है।]