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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 2/ मन्त्र 48
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    उ॑द॒न्वती॒द्यौर॑व॒मा पी॒लुम॒तीति॑ मध्य॒मा। तृ॒तीया॑ ह प्र॒द्यौरिति॒ यस्यां॑ पि॒तर॒आस॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒द॒न्ऽवती॑ । द्यौ: । अ॒व॒मा । पी॒लुऽम॑ती । इति॑ । म॒ध्य॒मा । तृतीया॑ । ह॒ । प्र॒ऽद्यौ: । इति॑ । यस्या॑म् । पि॒तर॑: । आस॑ते ॥२.४८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदन्वतीद्यौरवमा पीलुमतीति मध्यमा। तृतीया ह प्रद्यौरिति यस्यां पितरआसते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उदन्ऽवती । द्यौ: । अवमा । पीलुऽमती । इति । मध्यमा । तृतीया । ह । प्रऽद्यौ: । इति । यस्याम् । पितर: । आसते ॥२.४८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 48

    भाषार्थ -
    (उदन्वती) जलवाली (अवमा) निचली (द्यौः) द्यौ है, (पीलुमती) पीलूओंवाली (मध्यमा) बीच की द्यौ है (तृतीया) तीसरी है (ह) निश्चय से (प्र द्यौः इति) प्रद्यौ, (यस्याम्) जिस में कि (पितरः) पितर (आसते) रहते हैं, या आसन जमाएं रहते हैं।

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