अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 2/ मन्त्र 38
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - आर्षी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
इ॒मां मात्रां॑मिमीमहे॒ यथाप॑रं॒ न मासा॑तै। श॒ते श॒रत्सु॑ नो पु॒रा ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒माम् । मात्रा॑म् । मि॒मी॒म॒हे॒ । यथा॑ । अप॑रम् । न । मासा॑तै । श॒ते । श॒रत्ऽसु॑ । नो इति॑ । पु॒रा ॥२.३८॥
स्वर रहित मन्त्र
इमां मात्रांमिमीमहे यथापरं न मासातै। शते शरत्सु नो पुरा ॥
स्वर रहित पद पाठइमाम् । मात्राम् । मिमीमहे । यथा । अपरम् । न । मासातै । शते । शरत्ऽसु । नो इति । पुरा ॥२.३८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 38
भाषार्थ -
आयु की (इमाम्) इस (मात्राम्) मात्रा को, (शते शरत्सु) सौ वर्षों में (मिमीमहे) हम मापते हैं। (यथा) ताकि (अपरम्) इस से कम (न मासातै) न कोई मापे। (पुरा) इस से पहिले (नो) मृत्युकाल नहीं।
टिप्पणी -
[मनुष्य की औसतन आयु १०० वर्षों की कही है। संयमी व्यक्ति इस मात्रा से भी अधिक आयुवाला हो जाता है "भूयसीः शरदः शतात्" (अथर्व० १९।६७।८)। १०० वर्षों की आयु तक मन इन्द्रियां और शरीर स्वस्थ रहने चाहियें।]