अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 2/ मन्त्र 12
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - आयुः
छन्दः - पुरस्ताद्बृहती
सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
आ॒रादरा॑तिं॒ निरृ॑तिं प॒रो ग्राहिं॑ क्र॒व्यादः॑ पिशा॒चान्। रक्षो॒ यत्सर्वं॑ दुर्भू॒तं तत्तम॑ इ॒वाप॑ हन्मसि ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒रात् । अरा॑तिम् । नि:ऽऋ॑तिम् । प॒र: । ग्राहि॑म् । क्र॒व्य॒ऽअद॑ । पि॒शा॒चान् । रक्ष॑: । यत् । सर्व॑म् । दु॒:ऽभू॒तम् । तत् । तम॑:ऽइव । अप॑ । ह॒न्म॒सि॒ ॥२.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
आरादरातिं निरृतिं परो ग्राहिं क्रव्यादः पिशाचान्। रक्षो यत्सर्वं दुर्भूतं तत्तम इवाप हन्मसि ॥
स्वर रहित पद पाठआरात् । अरातिम् । नि:ऽऋतिम् । पर: । ग्राहिम् । क्रव्यऽअद । पिशाचान् । रक्ष: । यत् । सर्वम् । दु:ऽभूतम् । तत् । तम:ऽइव । अप । हन्मसि ॥२.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
(अरातिम्) शक्तिप्रदान न करने वाले शत्रुभूत रोग को, (निर्ऋतिम्) तथा कृच्छ्रापत्ति को (आराद्) दूरतः [हन्मसि] हम आचार्य मार देते हैं, या भगा देते हैं, (ग्राहिम्) अङ्गों को जकड़ देने वाले रोग को, (क्रव्यादः पिशाचान्) मांसभक्षक रोगकीटाणुओं को, और (यत्) जो (दुर्भूतम्) दुःस्थिति पैदा करने वाला (रक्षः) राक्षसी स्वभाव वाला कीटाणु समूह है, (तत् सर्वम् परः) उस सब को दूर करके, (अपहन्मसि) हम उसका हनन कर देते हैं। (तमः इव) जैसे कि अन्धकार को दूर कर दिया जाता है, या उसका हनन कर दिया जाता है।
टिप्पणी -
[ग्राहि = वात रोग, रूमाटिज्म आर्थ्रईटिस। क्रव्याद् और पिशाच का अर्थ है मांसभक्षक “रोग-कीटाणु"। ये रोगकीटाणु रोग द्वारा मांस को सुखा देते हैं, marasmus पैदा कर देते हैं। मांस को सुखा देना ही मांस को खाना है। दुर्भूतम्= दुः स्थितिः ; दूर् + भू (सत्तायाम्)। अपहन्मसि= अपगत करके हनन करते हैं, (हन्= हिसागत्योः, अदादिः)। क्रव्यम्= कृवि हिंसाकरणयोश्च (भ्वादिः)। पिशितम्= पिश अवयवे (तुदादिः)]।