Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 2/ मन्त्र 28
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - पुरस्ताद्बृहती सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    अ॒ग्नेः शरी॑रमसि पारयि॒ष्णु र॑क्षो॒हासि॑ सपत्न॒हा। अथो॑ अमीव॒चात॑नः पू॒तुद्रु॒र्नाम॑ भेष॒जम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्ने: । शरी॑रम् । अ॒सि॒ । पा॒र॒यि॒ष्णु । र॒क्ष॒:ऽहा । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽहा । अथो॒ इति॑ । अ॒मी॒व॒ऽचात॑न: । पू॒तुद्रु॑: । नाम॑ । भे॒ष॒जम् ॥२.२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नेः शरीरमसि पारयिष्णु रक्षोहासि सपत्नहा। अथो अमीवचातनः पूतुद्रुर्नाम भेषजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने: । शरीरम् । असि । पारयिष्णु । रक्ष:ऽहा । असि । सपत्नऽहा । अथो इति । अमीवऽचातन: । पूतुद्रु: । नाम । भेषजम् ॥२.२८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 28

    भाषार्थ -
    (अग्ने) अग्नि का (शरीरम्) शरीर (असि) तू है, (पारयिष्णु) रोगों से पार करने वाला (रक्षोहा) रोगकीटाणुओं का हनन करने वाला, (सपत्नहा) रोगशत्रु का हनन करने वाला (असि) तू है। (अथो) तथा (अमीवचातनः) अमीवा नामक रोगकीटाणु का विनाशक तू है (पूतुद्रुः नाम) पूतुद्रु नामक (भेषजम्) औषध तु है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top