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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - आसुरी गायत्री सूक्तम् - ओदन सूक्त

    तस्यौ॑द॒नस्य॒ बृह॒स्पतिः॒ शिरो॒ ब्रह्म॒ मुख॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्य॑ । ओ॒द॒नस्य॑ । बृह॒स्पति॑: । शिर॑: । ब्रह्म॑ । मुख॑म् ॥३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्यौदनस्य बृहस्पतिः शिरो ब्रह्म मुखम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्य । ओदनस्य । बृहस्पति: । शिर: । ब्रह्म । मुखम् ॥३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (तस्य) उस [प्रसिद्ध] (ओदनस्य) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] का (शिरः) शिर (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े जगत् का रक्षक वायु वा मेघ] और (मुखम्) मुख (ब्रह्म) अन्न है ॥१॥

    भावार्थ - जैसे शरीर के लिये शिर और मुख आदि उपकारी हैं, वैसे ही परमात्मा ने अपनी सत्ता से वायु, मेघ और अन्न आदि रचकर सब संसार के साथ उपकार किया है ॥१॥

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