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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 31
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - अल्पशः पङ्क्तिरुत याजुषी सूक्तम् - ओदन सूक्त

    ओ॑द॒न ए॒वौद॒नं प्राशी॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओ॒द॒न: । ए॒व । ओ॒द॒नम् । प्र । आ॒शी॒त् ॥३.३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओदन एवौदनं प्राशीत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओदन: । एव । ओदनम् । प्र । आशीत् ॥३.३१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 31

    पदार्थ -
    (ओदनः) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] ने (एव) हि (ओदनम्) ओदन [सुखवर्षक स्थूल जगत्] को (प्र आशीत्) खाया है ॥३१॥

    भावार्थ - परमेश्वर अपने सामर्थ्य से सृष्टि के समय स्थूल जगत् को उत्पन्न करता और प्रलय के समय सबको सूक्ष्म कारण में लीन कर देता है। जीवात्मा के लिये स्थूल जगत् में स्थूल शरीर मुक्ति का साधन है ॥३१॥

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