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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 22
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ओदन सूक्त

    तं त्वौ॑द॒नस्य॑ पृच्छामि॒ यो अ॑स्य महि॒मा म॒हान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । त्वा॒ । ओ॒द॒नस्य॑ । पृ॒च्छा॒मि॒ । य: । अ॒स्य॒ । म॒हि॒मा । म॒हान् ॥३.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं त्वौदनस्य पृच्छामि यो अस्य महिमा महान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । त्वा । ओदनस्य । पृच्छामि । य: । अस्य । महिमा । महान् ॥३.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 22

    पदार्थ -
    [हे आचार्य !] (त्वा) तुझसे (ओदनस्य) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] की (तम्) उस [महिमा] को (पृच्छामि) मैं पूछता हूँ, (यः) जो (अस्य) उसकी (महान्) बड़ी (महिमा) महिमा है ॥२२॥

    भावार्थ - जिस परमेश्वर के सामर्थ्य में सब लोक और सब दिशाएँ वर्तमान हैं, मनुष्य उसकी महिमा को खोज कर अपना सामर्थ्य बढ़ावे, म० २०-२२ ॥

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