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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 26
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - आर्च्युष्णिक् सूक्तम् - ओदन सूक्त

    ब्र॑ह्मवा॒दिनो॑ वदन्ति॒ परा॑ञ्चमोद॒नं प्राशीः३ प्र॒त्यञ्चा३मिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्र॒ह्म॒ऽवा॒दिन॑: । व॒द॒न्ति॒ । परा॑ञ्चम् । ओ॒द॒नम् । प्र । आ॒शी३: । प्र॒त्यञ्चा३म् । इति॑ ॥३.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्मवादिनो वदन्ति पराञ्चमोदनं प्राशीः३ प्रत्यञ्चा३मिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्मऽवादिन: । वदन्ति । पराञ्चम् । ओदनम् । प्र । आशी३: । प्रत्यञ्चा३म् । इति ॥३.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 26

    पदार्थ -
    (ब्रह्मवादिनः) ब्रह्मवादी [ईश्वर वा वेद को विचारनेवाले] (वदन्ति) कहते हैं−“[हे मनुष्य ! क्या] (पराञ्चम्) दूरवर्ती (ओदनम्) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] को (प्र आशीः ३) तूने खाया है, [अथवा] (प्रत्यञ्चा३म् इति) प्रत्यक्षवर्ती को ?” ॥२६॥

    भावार्थ - प्रश्न है कि क्या परमेश्वर किसी दूर वा प्रत्यक्ष स्थान विशेष में मिलता है ? इसका उत्तर आगे मन्त्र २८ तथा २९ में है ॥२६॥

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