Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 29
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - भुरिक्साम्नी बृहती सूक्तम् - ओदन सूक्त

    प्र॒त्यञ्चं॑ चैनं॒ प्राशी॑रपा॒नास्त्वा॑ हास्य॒न्तीत्ये॑नमाह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒त्यञ्च॑म् । च॒ । ए॒न॒म् । प्र॒ऽआशी॑: । अ॒पा॒ना: । त्वा॒ । हा॒स्य॒न्ति॒ । इति॑ । ए॒न॒म् । आ॒ह॒ ॥३.२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रत्यञ्चं चैनं प्राशीरपानास्त्वा हास्यन्तीत्येनमाह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रत्यञ्चम् । च । एनम् । प्रऽआशी: । अपाना: । त्वा । हास्यन्ति । इति । एनम् । आह ॥३.२९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 29

    पदार्थ -
    (च) यदि (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्षवर्ती (एनम्) इस [ओदन] को (प्राशीः) तूने खाया है। (अपानाः) प्रश्वासबल (त्वा) तुझे (हास्यन्ति) त्यागेंगे” (इति) ऐसा वह [आचार्य] (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) कहता है ॥२९॥

    भावार्थ - मन्त्र २६ का उत्तर है। आचार्य उपदेश करता है, जो मनुष्य परमेश्वर को दूरवर्ती वा समीपवर्ती अर्थात् एकस्थानी मानता है, वह श्वास और प्रश्वास से हीन होकर निर्बल हो जाता है ॥२९॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top