अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 30
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - याजुषी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ओदन सूक्त
नैवाहमो॑द॒नं न मामो॑द॒नः ॥
स्वर सहित पद पाठन । ए॒व । अ॒हम् । ओ॒द॒नम् । न । माम् । ओ॒द॒न: ॥३.३०॥
स्वर रहित मन्त्र
नैवाहमोदनं न मामोदनः ॥
स्वर रहित पद पाठन । एव । अहम् । ओदनम् । न । माम् । ओदन: ॥३.३०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 30
विषय - सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पदार्थ -
(न एव) न तो (अहम्) मैंने (ओदनम्) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] को [खाया है] और (न) न (माम्) मुझको (ओदनः) ओदन [सुख बरसानेवाले परमेश्वर] ने [खाया] है ॥३०॥
भावार्थ - यह मन्त्र २७ का उत्तर है। जीवात्मा और परमात्मा दोनों अनादि, अन्तरहित और अविनाशी हैं ॥३०॥
टिप्पणी -
३०−(न) निषेधे (एव) निश्चयेन (अहम्) प्राणी प्राशिषमिति शेषः म० २७। (ओदनम्) सुखवर्षकमन्नरूपं परमात्मानम् (न) निषेधे (माम्) जीवात्मानम् (ओदनः) अन्नरूपः परमेश्वरः प्राशीदिति शेषः म० २७॥