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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - ओदन सूक्त

    दितिः॒ शूर्प॒मदि॑तिः शूर्पग्रा॒ही वातोऽपा॑विनक् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दिति॑: । शूर्प॑म् । अदि॑ति: । शू॒र्प॒ऽग्रा॒ही । वात॑: । अप॑ । अ॒वि॒न॒क् ॥३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दितिः शूर्पमदितिः शूर्पग्राही वातोऽपाविनक् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिति: । शूर्पम् । अदिति: । शूर्पऽग्राही । वात: । अप । अविनक् ॥३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (दितिः) [परमेश्वर की] खण्डन शक्ति (शूर्पम्) सूप [समान] है, (अदितिः) [उसकी] अखण्डन शक्ति ने (शूर्पग्राही) सूप पकड़नेवाले [के समान] (वातः-वातेन) पवन से (अप अविनक्) [शुद्ध और अशुद्ध पदार्थ को] अलग-अलग किया है ॥४॥

    भावार्थ - जैसे लोग सूप से वायु द्वारा अशुद्ध वस्तु को निकालकर शुद्ध वस्तु को ले लेते हैं, वैसे ही परमेश्वर अपने सामर्थ्य से प्रकृति द्वारा परमाणुओं का संयोग-वियोग करके जगत् को रचता है और वैसे ही विवेकी पुरुष विद्या द्वारा अवगुण छोड़कर गुण ग्रहण करता है ॥४॥

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