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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 24
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - त्रिपदा प्राजापत्या बृहती सूक्तम् - ओदन सूक्त

    नाल्प॒ इति॑ ब्रूया॒न्नानु॑पसेच॒न इति॒ नेदं च॒ किं चेति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । अल्प॑: । इति॑ । ब्रू॒या॒त् । न । अ॒नु॒प॒ऽसे॒च॒न: । इति॑ । न । इ॒दम् । च॒ । किम् । च॒ । इति॑ ॥३.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नाल्प इति ब्रूयान्नानुपसेचन इति नेदं च किं चेति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । अल्प: । इति । ब्रूयात् । न । अनुपऽसेचन: । इति । न । इदम् । च । किम् । च । इति ॥३.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 24

    पदार्थ -
    (यः) जो [योगी जन] (ओदनस्य) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] की (महिमानम्) महिमा को (विद्यात्) जानता हो (सः) वह (ब्रूयात्) कहे “(न अल्पः इति) वह [परमेश्वर] थोड़ा नहीं है [अर्थात् बड़ा है], (न अनुपसेचनः इति) वह उपसेचनरहित नहीं है [अर्थात् सेचन वा वृद्धि करनेवाला है], (च) और (न इदम् किम् च इति) न वह यह कुछ वस्तु है [अर्थात् ब्रह्म में अङ्गुली का निर्देश नहीं हो सकता]” ॥२३, २४॥

    भावार्थ - मनुष्य जैसे-जैसे परमेश्वर को खोजता है, उसका सामर्थ्य बढ़ता जाता है, तौ भी उसका परिमाण, आदि सीमा नहीं जानता और न उसका यथावत् वर्णन कर सकता है ॥२३, २४॥

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