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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 10
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - आसुरी पङ्क्तिः सूक्तम् - ओदन सूक्त

    आ॒न्त्राणि॑ ज॒त्रवो॒ गुदा॑ वर॒त्राः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒न्त्राणि॑ । ज॒त्रव॑: । गुदा॑: । व॒र॒त्रा: ॥३.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आन्त्राणि जत्रवो गुदा वरत्राः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आन्त्राणि । जत्रव: । गुदा: । वरत्रा: ॥३.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 10

    पदार्थ -
    (जत्रवः) जोते [बैलों की ग्रावा के रस्से] (आन्त्राणि) [उसकी] आँतें और (वरत्राः) वरत्र [बरन, हल के बैलों के बड़े रस्से] (गुदाः) [उसकी] गुदाएँ [उदर की नाड़ी विशेष] हैं ॥१०॥

    भावार्थ - बैल आदि का बाँधना और उपयोग ईश्वर से सिखाया गया है ॥१०॥

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