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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 21
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ओदन सूक्त

    यस्य॑ दे॒वा अक॑ल्प॒न्तोच्छि॑ष्टे॒ षड॑शी॒तयः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । दे॒वा: । अक॑ल्पन्त । उत्ऽशि॑ष्टे । षट् । अ॒शी॒तय॑: ॥३.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य देवा अकल्पन्तोच्छिष्टे षडशीतयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । देवा: । अकल्पन्त । उत्ऽशिष्टे । षट् । अशीतय: ॥३.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 21

    पदार्थ -
    (यस्य) जिस [परमेश्वर] के (उच्छिष्टे) सबसे बड़े श्रेष्ठ [वा प्रलय में भी बचे] सामर्थ्य में (देवाः) [सूर्य आदि] दिव्य लोक और (षट्) छह [पूर्व आदि चार और नीचे ऊपर की] (अशीतयः) व्यापक दिशाएँ (अकल्पन्त) रची हैं ॥२१॥

    भावार्थ - मन्त्र २२ के साथ ॥२१॥

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