Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 20
    सूक्त - यमः देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त

    त्रयो॑ लो॒काः संमि॑ता॒ ब्राह्म॑णेन॒ द्यौरे॒वासौ पृ॑थि॒व्यन्तरि॑क्षम्। अं॒शून्गृ॑भी॒त्वान्वार॑भेथा॒मा प्या॑यन्तां॒ पुन॒रा य॑न्तु॒ शूर्प॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रय॑: । लो॒का: । सम्ऽमि॑ता: । ब्राह्म॑णेन । द्यौ: । ए॒व । अ॒सौ । पृ॒थि॒वी । अ॒न्तरि॑क्षम् । अं॒शून् । गृ॒भी॒त्वा । अ॒नु॒ऽआर॑भेथाम् । आ । प्या॒य॒न्ता॒म् । पुन॑: । आ । य॒न्तु॒ । शूर्प॑म् ॥३.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रयो लोकाः संमिता ब्राह्मणेन द्यौरेवासौ पृथिव्यन्तरिक्षम्। अंशून्गृभीत्वान्वारभेथामा प्यायन्तां पुनरा यन्तु शूर्पम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रय: । लोका: । सम्ऽमिता: । ब्राह्मणेन । द्यौ: । एव । असौ । पृथिवी । अन्तरिक्षम् । अंशून् । गृभीत्वा । अनुऽआरभेथाम् । आ । प्यायन्ताम् । पुन: । आ । यन्तु । शूर्पम् ॥३.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 20

    पदार्थ -
    (ब्राह्मणेन) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञानी] करके (त्रयः लोकाः) तीनों लोक [उत्तम निकृष्ट और मध्यम अवस्थाएँ] (संमिताः) यथावत् नापे गये हैं, [जैसे] (असा) वह (एव) ही (द्यौः) सूर्यलोक, (पृथिवी) पृथिवीलोक और (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष [मध्यलोक] हैं। [हे स्त्री-पुरुषो !] (अंशून्) सूक्ष्म पदार्थों को (गृभीत्वा) ग्रहण करके [अपना कर्तव्य] (अन्वारभेथाम्) तुम दोनों आरम्भ करते रहो, वे [सूक्ष्म द्रव्य] (आ प्यायन्ताम्) फैलें और (पुनः) फिर-फिर (शूर्पम्) सूप में (आ यन्तु) आवें ॥२०॥

    भावार्थ - जैसे ब्रह्मज्ञानी पुरुष ऊँचा, नीच, मध्य तीनों दशाओं को हस्तामलक कर लेता है, वैसे ही सब स्त्री-पुरुष परीक्षा करके सार पदार्थ ग्रहण करें, जैसे सूप में द्रव्य को बार-बार फैला कर और शुद्ध करके ग्रहण करते हैं ॥२०॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top